" पत्नी वियोग में विक्षिप्त एक पति की व्यथा "
मेरे हर साँस की कर ले कोई भी गणना
मेरे हर धड़कन की भी लेले कोई भी तलाशी
मेरी आँखों में भी झाँक कर ले कोई तहक़ीक़ात
रो देगा कोई भी देख,तड़पता किसके लिये दिन-रात ।
बिन तेरे घर सूना-सूना काटती है तन्हाई
जब तुझे सजाऊँ सपनों में मिलती है परछाई
ज़िन्दगी ही हो गई ख़फा है किससे बहलाऊँ दिल
उर के जख़्म हरे हो जाते और जब भी बैठूं महफ़िल ।
हँसी,ख़ुशी सब ग़ायब व्यर्थ लगे जीवन
यादों की तपिश में तेरे निश-दिन जलता तन
किस कुसूर की सजा में दे गईं आँसू औ तड़पन
नींद न आये सारी-सारी रात आँखें रहतीं नम हरदम ।
तुम नहीं जहाँ में कैसे समझाऊँ मन को
कैसे-कैसे ख़्याल हैं आते कैसे बताऊँ तुमको
ज़िन्दगी,मौत की सरहद पर खड़ा संघर्ष जारी है
स्वेच्छामृत्यु की भी चाह लगती ज़िन्दगी भी प्यारी है ।
रोतीं सर्वदा आँखें पर दिखते नहीं आँसू
सफर तुम बिन अकेले कैसे ज़िंदगी का काटूँ
कहने को जीता मरता हर दिन जाने कितनी बार
ऐसे ढो रहा बिछड़ कर तुमसे तनहा ज़िंदगी का भार ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह