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अगस्त 17, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गिर-गिर संभल गया

गिर-गिर संभल गया ओ मुझे रिन्द कहने वालों मैंने तो सिर्फ शराब पी है ख़ुद कि वाहयात नज़र देखो जिसने छक के शबाब पी है , मैं तो समां का लुत्फ़ लेकर गिर-गिर संभल गया देख खुद नज़र की करामात सरे-राह क्यूँ फिसल गया , थे अश्क़ मय में शामिल सबने जाम का सुरूर देखा मग़र इस खुमार में क्यों नहीं  किसी ने मेरा कोहिनूर देखा , बहक कर नशे में मैं तो कभी खोया नहीं था आपा ना ढोंगी योगी बन किसी नक़ाब डाला कभी था डाका , ग़म भूलाने के लिए मैं तो तिल-तिल जल जा रहा हूँ डर है कहीं जल ना जाए,जो अमानत दिल में छुपा रहा हूँ , इक वो भी वक्त था नजर से पीया,था जमाल उनका साक़ी अब वो वो रहे ना हम हम रहे रह गया मैं और गिलास बाकी । रिन्द --पियक्कड़                                  शैल सिंह 

प्रीति की रेशम डोर वास्ते

प्रीति की रेशम डोर वास्ते नफ़रतें-रुसवाईयाँ जहाँ भी देखो जिस तरफ  पश्चिमी तहज़ीब हमें ले जा रही है किस तरफ  खुदगर्ज़ी सोई है बेफ़िक्र नेकियों की लाश पर  दूर होता जा रहा आदमी,आदमी से हर तरफ। दायरा नफ़रतों की आग का बढ़ता ही जा रहा  सिलसिला बेबाक हादसों का बढ़ता ही जा रहा  ख़ता पर ख़ता इन्सान कर रहा है ईमान बेचकर  वेदना की परवाह किसे एहसास मरता जा रहा ।  गुलिस्ताँ से ख़ुशबूवें भी अब बेज़ार होती जा रहीं  कैसा हुआ ज़माना दामनें दाग़दार होती जा रहीं   धधक रही दुनिया धर्मान्ध हो हैवानियत के हाथों   अमन खो गया कहीं ज़िंदगी लाचार होती जा रही ।  भय,जुल्म,आतंक मुक्त जग के दारुण शोर वास्ते   निडर इब्तिदा करें मिलकर खूबसूरत भोर वास्ते  गिले-शिक़वे ना हो मन मोहब्बत ही मोहब्बत हो       आओ नज़ीर पेश करें प्रीति की रेशम डोर वास्ते ।                     ...