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कोरोना की तीसरी लहर

कोरोना की तीसरी लहर  और कितना प्रकोप ढाओगी  कितनी वर्जनाएं लगाओगी कोहराम मचा है चारों ओर  तीसरी लहर का और है शोर , कितने घोंसले उजड़ गये  कितनों के सपने बिखर गये कितनों का संबल छीन लिया  कितनों को अदृश्य हो लील लिया , सारी कायनात लग रही है विरां  छेद रही मर्मभेदी करूणा है सीना उन्मुक्त हँसी अधरों से गायब  सब कुछ जैसे लग रहा अजायब , किस अमोघ अस्त्र से होगी पस्त  सारी दुनिया हो गई है तुमसे त्रस्त कौन सा दिव्यास्त्र चलाया जाये आतंकित,भयभीत सभी दिशाएं , फ़जाओं में पसरा गहरा सन्नाटा  थमा-थमा कोलाहल दे झन्नाटा आवागमन पर छाया घोर कुहासा भाग रहे सब जब कोई खांसा , निस्तेज हुई है कांति मुखों की ऐसा वज्र गिरा दु:खों की प्रगति पर विराम लगा दी सबका प्रवेश वर्जित करा दी , कितना बरतें एहतियात हम कितना सतर्क रहें बता हम किसकी कितनी सुनें सलाह क्या हालत हो गई या अल्लाह , जी मिचले कड़वा काढ़ा पी भाई नहीं होती कारगर कोई दवाई किसके सम्पर्क से रहें अछूत लगे ज़िन्दे इंसान भी कोई भूत , कैसा अज़ाब ढाई हो कोरोना ऊफनवा रही हो जाबा पहना दहशत से डरा-डरा है मन कि...

याद पर कविता " पराई हो गईं हैं सांसें मुझसे "

मत ख़लल डालो ज़रा ठहरो  रुको सांसों चलो धड़कनों आहिस्ता  खटका रही कुण्डी दिल की,किसी की याद कहीं इस शोर से रूठ जायें न मेरे ख़्वाब आहिस्ता ।    कैसे करें सरेआम शरम आये लगा चाहत का रोग बसे तुम रूह में दवा,दुआ ना आये काम कैसी व्याधि है यह   लगे श्वांसों की ध्वनि बैरन जबसे तुझमें मशरूफ़ मैं ।  वे मधुर कम्पन छुवन के तेरे  करें झंकृत जब याद आ तन-मन को  खिल उठे उर कचनार सा जैसे खड़े सम्मुख  ना जाने कैसा रिश्ता है जो महका जाता चमन को । परायी हो गईं हैं साँसें मुझसे  धड़कन बन धड़कने लगे तुम जबसे नज़र आते नहीं नयनपट पर रैन बसेरा कर  मुस्कुरा निद्रा मेरी आँखों से चुराने लगे तुम जबसे ।  सर्वाधिकार सुरक्षित                   शैल सिंह