शनिवार, 19 जून 2021

कविता " यादें बचपन की "

                   " यादें बचपन की "


अभी तक है घुली नथुनों में सोंधी ख़ुश्बू गांव की   
याद छत पे सोना कथरी बिछा धूल भरे पांव की ।

बारिशों में भींगी मस्ती क़श्ती कागज की बहाना 
गर्मियों की चाँदनी रातें बिछी खाटें खुला आँगना
शरारतें,नदानियां,रुठना,मनाना खिल्ली ठिठोली
याद बालेपन का घरौंदा साथ सखियों का सुहाना ।

खांटी दूध,दही,छाछ,अहरे की दाल चोखा भउरी
ज़ायके घुघुनी रस के रसदार तरकारी में अदउरी
लुत्फ़ खीरा ककड़ी का मकई के खेतों का मचान 
भूली नहीं मेलों की चोटही जलेबी,लक्ठा,फुलउरी ।

कारे मेघा पानी दे घटा से बरस जाने की मनुहार 
माटी में लोट कहना,साथियों के संग की तकरार 
आलाप आल्हा-ऊदल का रासलीला,मदारी खेल
कहाँ गईं वो चीजें  बाइस्कोप,नौटंकी की झन्कार ।

दूसरों के बाग़ों से टिकोरा तोड़ना भरी दुपहरी में 
झगड़े कुट्टी,मिट्ठी करना उंगलियों की कचहरी में
अब क्यों बचपन जैसी सुबह और शाम नहीं होती
मस्ती,हुड़दंग,होंठों पर अल्हड़ मुस्कान नहीं होती ।

हमजोली संग मिल गुड्डे-गुड़ियों का व्याह रचाना
आँखों में जीवन्त है आज भी बचपन  का जमाना
चिंता ना फिकर रंज ,द्वेष कितने न्यारे थे वो दिन 
लौटा दे कोई बचपन दे-दे वो सामान सब पुराना ।

अहरे--उपले और गोहरे की आग 
अदउरी--बड़ी,कोहड़उरी
सर्वाधिकार सुरक्षित
                शैल सिंह

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...