सोमवार, 20 अप्रैल 2020

कोरोना पर कविता " ख़ौफ़ इंसा से इंसान खाने लगा है "

 " ख़ौफ़ इंसा से इंसान खाने लगा है "


दूरियां बन  गई हैं  कारगर  दवाई
इस क़दर डर अब  सताने लगा है ,

नन्हीं वायरस  ने क़हर ऐसा ढाया
कि याद सबको ईशा आने लगा है
घर की चारदीवारी महफ़ूज़ कोना
ख़ौफ़ मानव से मानव खाने लगा है ,

गले जान के पड़ी आफ़त कोरोना
लॉकडाउन तारीखें बढ़ाने लगा है
समय औ हालात बदल गये इतने 
वक्त ऐसा आईना दिखाने लगा है ,

समीपता कभी थी प्रेम का प्रतीक
पृथकता के मायने  बताने लगा है
इक दूजे का ग़र है परवाह करना
ये फासला तरकीबें सुझाने लगा है ,

कोविद नाइन्टिन पांव ऐसे पसारा
यत्न कैसा करें जी घबराने लगा है 
जाने कब किसपे गिरें गाज़ इसके
मुंह सन्नाटा भी तो चिढ़ाने लगा है ,

आबोहवा हुई है क़ातिल जहाँ की
मौत जग में तांडव मचाने लगा है
बेमोल ज़िन्दगी सम्भाले है रखना
निकटता बड़ी वैरी बताने लगा है ।

सरवाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह





  

 



 

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