हम बस यही अब चाहते हैं
हम बस यही अब चाहते हैं सिकुड़कर अब सुरक्षा के कवच में सारी ज़िन्दगी हम नहीं रहना चाहते नजरिये सोच फ़ितरत में सभी के अबसे बदलाव हैं हम देखना चाहते । कड़ा भाई का ना हो हमपर पहरा परिजन सभी के चिंतामुक्त हों ना पति बच्चों को हो फ़िकर कोई अकेले हों कहीं भी पर भयमुक्त हों । ना किसी अपराध का हो डर कहीं ना अश्लीलता,भद्दगी का घर कहीं दिन हो या रात हो या गली रिक्त हो नुक्कड़,राह निर्भय,निडर,उन्मुक्त हो । ना हो हावी किसी पर असभ्यता लोक लाज हो,हो हया में मर्यादिता दिखे हर मर्द की आँखों में निपट निज माँ,बहन,बेटियों सी आदर्शिता ना दरिंदों,दनुज की ग्रास बनें बेटियां ना निर्मम दहेज की बलि चढ़ें बेटियां ना कहीं दुष्कर्म,पाप का हो जलजला ऐसा अमन हो देश में सबका हो भला । ना आतंक,जिहाद का हो डर,भय कहीं सफ़र बेफिक्र हो दुर्गम भले हो पथ कहीं असुरक्षा के भाव से ना हो भयभीत कोई साथ किसी मज़हब का हो मनमीत कोई ।