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अक्टूबर 18, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गले लग प्रेम का सूता सुलझाओ तो जानें

गले लग प्रेम का सूता सुलझाओ तो जानें ओ भारत के युवा प्रहरी जाबांज़  सिपाही कभी ना होना गुमराह बेतर्कों के झांसों में , बो कर नफ़रत का बीज भीड़ जुटाने वालों प्रेम मोहब्बत की ख़ुश्बू बिखराओ तो जानें क्यूँ निस्प्रयोजन तुम उलझाते हो आपस में गले लगा प्रेम का धागा सुलझाओ तो जानें , जन-मन की पूछ रही हैं सवालिया निग़ाहें  कहाँ गयी पहले वाली रौनक़ त्योहारों की सहमे भय,आतंक से बच्चे,बूढ़े,जवां पूछते  कहाँ गयी पहले वाली धूमधाम बाज़ारों की , कैसे ग्रहण लगा जीवन के मुस्काते रंगों को  कहाँ गया सम्मोहन हरे खेत खलिहानों का  खुद जीओ देश ,समाज ,पड़ोस को जीने दो होली जला,उपद्रवी कुंठित सोच विचारों का  , सपनों का महल बनेगा सजेगा,संवरेगा तब जब रक्षा करना सीखोगे दर औ दीवारों की अनेकता में एकता क्या होती  दिखलाना है    आवश्यकता है बेहतर जीवन में सौहर्द्रों की , प्रेम मोहब्बत इतना प्रगाढ़ बलवान बनायें सामाजिक समरसता के लिए आह्वान करें इंसान,दोस्ती की तस्वीर उजागर कर देखें मिलकर नफ़रत की खाई को शर्मसार करें...

वाह रे मिडिया वाले

वाह रे मिडिया वाले ,तेरी अच्छाई और बुराई दोनों ही चरम पर हैं ,सच्ची बातों के लिए आवाज़ बुलंद करते हो और कभी-कभी तिल का ताड़ बनाने में भी माहिर ,आजाद भारत में व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति भी स्वछंद और स्वतन्त्र रूप में व्यक्त करने की आजादी नहीं है ।किसी के मुँह से वकार क्या निकली कि तोड़-मरोड़कर  गलत तरीके से गुमराह करने और मतलब निकालने का महारत भी पास रख लेते हो । खैर बुद्धिजीवियों और समझदारों पर तो इसका कुप्रभाव नहीं पड़ता । एक बात तो सत्य है की मोदी की लोकप्रियता और प्रसिद्धि विरोधियों के गले की हड्डी बन गई है ,वरोधी पार्टियां तिलमिला-तिलमिला कर जल भून रही हैं । इसीलिए अनाप-शनाप गुद्दी में गुद्दी निकालती रहती हैं ,लालू इतना घटिया स्तर का भाषण देता है किसी पर जूं तक नहीं रेंगता और कोई सही बात भी बोले तो बवाल हो जाता है राबड़ी जैसे लोग विहार की वागडोर थाम सकते है , बोलने के लिए बहुत कुछ है पर बवाल और टीका टिप्पड़ी सहने की क्षमता नहीं है उददंड और उजड्ढ लोगों की की बेसिर पैर बातें सुनने के लिए ।             ...
सोनिया गांधी ……  , अपने घर से रुख़सती क्या ली भारत के राजकाज पर काबिज हो गई दो चार भाई होगी छोड़ी यहाँ भाइयों के रूप में हजारों सेवक पा गई घर की रहगुजर क्या भूली यहाँ हर रहगुजर पर तेरी तस्वीर लग गई ओ चिड़िया तूं जिस शज़र पर बैठी उस शजर पर और चिड़िया नहीं बैठी तुझे भारत में मोहब्बत ही नही मिली बल्कि सर आँखों पर बिठाया लोगों ने हम ये कैसे कहें तुम्हें हुकूमत प्यारी नहीं क्या हुकूमत बिन चाहे ही मिल गई तेरे चहरे ने इस सर जमीं का भाई चारा छिना एक से एक महारथियों का बाड़ा छीना तेरे पास जो था वो तुझसे ज्यादा हमारा था तेरे प्रेम जाल ने हमसे हमारा छिना यहाँ बहुत से बच्चों के सर का साया नंगा है बच्चों को भारत की संतान बनके रहने दे तूने गिरिजा छोड़ दिया जो तेरा था तूं शिवाला का क्या कभी हो पायेगी तकदीर बदलने के और भी रास्ते हैं  भारत की बहू-बेटी बनके रह वरना सम्मान से चूक जाएगी इक तूं ही बेवा नहीं हुई यहाँ हजारों लाखों बेवाएं हैं जो घर छोड़कर कभी मायके नहीं गईं तेरी वजह से नफ़रतों की दीवार खड़ी हुई बस चन्द नासमझों चाटुकारों की मसीहा ब...