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एक प्यारी सी ग़ज़ल

                 " एक प्यारी सी ग़ज़ल " उसकी यादों को जेवर गढ़ा मैंने तन पर सजा लिया इक वो कि मेरी यादों में इक नया रिश्ता बना लिया , उसके इक लफ़्ज़ के भरोसे पर कायम हूँ आज तक इक वो है बिना मेरे ही इक नवीन दुनिया बसा लिया , शुभ साअत के चाह में रची न कभी मेंहदी हथेली पे  इक वो है बिना बेज़ार हुए सेहरा सर पर सजा लिया , उम्र भर छलती रही ख़ुद को उठाये आसरे का भार  इक वो है बड़ी ख़ामशी से दामन मुझसे छुड़ा लिया , मेरी ही ध्वनि से बजते रहे कानों के कोटर बेख़याल   इक वो है राहे-जुनूं में पागल कर आईना चढ़ा लिया , ख़ुद के आंच से पिघलती रही देख उफ़क़ का चाँद इक वो है मेरी पुरनम आँखों में मल कर नहा लिया , हम मिज़्गाँ पर सजा रखे वरक़ इश्क़ के लमहों का     इक वो है जहां सुख का मुझसे अलहदा जमा लिया , तमन्नाओं को ख़ाक कर मैंने द्वार पे शम्मां जलाई हैैं इक वो है ज...