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अहोभाग्य उत्तर प्रदेश का

योगी जी के मुख्यमन्त्री बनने पर कविता अब होगा उत्तर प्रदेश का उन्नयन कंवल फूल खिला जन-मन के उपवन , इक संत की हुई है ताज़पोशी कितनी हनक,धमक के साथ अरे अहोभाग्य उत्तर प्रदेश तेरा रच डाला जनमत ने इतिहास , हाथी का मद चूर-चूर हुआ चारों खाने चित पड़ी निढाल खिसियानी बिल्ली सी खम्भा नोचे छाती पीटे बना ईवीएम को ढाल , हाय घोंचू पंजा ने कर दिया कैसा साईकिल भैया का बदतर हाल इतनी गहरी खाई में ढकेला कि बिखर गया बिछा शतरंजों का जाल , अस्तित्व झाड़ू का खतरे में  खा-खाकर खुजलीवाले से ख़ार टूटकर बिखर रहा एक-एक सींका जाने अब क्या होगा अगली बार , लालटेन इतना भी मत भभको  आँधी नहीं इस बार  की  बख़्शेगी बाती पर रखना कस लग़ाम [ ज़ुबान पे ] जनाधार की कैंची ही कतरेगी, टकरा-टकरा राष्ट्रवादी ताक़तों से  हवाएं भी गईं चहुँओर की हार सहर्ष लिपट गईं आकर गले पुष्प बन,योगी जी के गले का हार , साहूकार बनकर जो लूट रहे थे धड़ाधड़ सरकारी ख़ज़ानों का माल अकल उनकी भी ठिकाने लगा दिए ख़ुद उनके अपने ही सियासी चाल , और कितने दिन छलते देशद्रोही छद्म पाठ साम्प्रदायिकता का पढ़ाकर ऐसा ज...

वसंत ऋतु पर कविता

वसंत ऋतु पर कविता  बड़ा सुहावन मन भावन लगे वसंत तेरा आना थोड़ी सर्दी थोड़ी गर्मी लगे मौसम बड़ा सुहाना , इंद्रधनुष ने खींची रंगोली सज गई मधुऋतु की डोली बिखरा दी अम्बर ने रोली धरती मांग सजा खुश हो ली छितरी न्यारी सुषमा चहुँदिश कलियाँ घूँघट के पट खोलीं ठूँठों पर आई तरुणाई भर गई उपहारों से झोली, देख हरित धरणी का विजन हुआ मन मयूर मस्ताना सरसों पीत चूनर लहराई उसपर तितली का मंडराना पी मकरंद मस्त भये मधुकर हुए मद में मगन दीवाना गूंजे विहंगों की किलकारी कुञ्ज-कुटीर  मलयानिल का आना , मह-मह महके बौरा अमराई  मधुकंठी मीठी तान सुनाये देख वासन्ती मादकता नाचे वन,वीथिका,नीलकण्ठ बौराये पछुआ-पुरवा की शीतल सुरभि नशीला गन्ध चित्त भरमाये पापी पपीहरा पिउ-पिउ बोले पी की सुध विरहन को सताये , चित चकोर तिरछी चितवन से अपने सजन से करे निहोरा मूक अधर और दृग से चुगली करे दम-दम सिंगार-पटोरा प्रकृति नटी भरे उमंग अंग-अंग  कंगना वाचाल हुआ छिछोरा अनुभाव ना बूझे बलम अनाड़ी कुंदन तन अंगार दहकावे मोरा , वसन्त क...

क्रान्तिकारी कविता शब्दों की परिमिति लांघी रे बहती स्याही की धार

क्रान्तिकारी कविता  हस्त कलम गहते ही दहाड़ कर भरने लगी हुंकार  शब्दों की परिमिति लांघी रे बहती स्याही की धार , तोड़कर बंधन विविध भीति के द्विजिहा ने की वार  चल गया ख़ंजर काग़ज़ पर उर ने जो उगली उद्गार । परिमिति--सीमा       भीति--भय,डर                                         क्रमशः-- जब-जब सांप-सपोलों के,फन हमको फुफकारेंगे ताल ठोंककर कहते जी,हम मौत के घाट उतारेंगे , कबतक मलते रहेंगे हाथ वो घात के पांव पसारेंगे दूध पिलाया ठर्रा तो जूतमपैजारम से भूत उतारेंगे , क्या समझे हो मरदूदों जो जी में आएगा बक दोगे अभिव्यक्ति की आजादी पे  थोबड़ा तोड़ भोथारेंगे , संपोलों शरण में रहने वालों ग़र ऐसे आँख तरेरोगे  ज़रा ना होगी देर आँखों से आग उगल भक्ष डारेंगे  , अगर शहीदों की परिभाषा पड़ी तुम्हें समझानी तो तत्काल जन्नत के रस्ते का सरजाम अनेक संवारेंगे , अपने ही देश से कर...