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जुलाई 17, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ   ज़माने की निग़ाहों का तीर सह सकी ना मजबूर इस क़दर हुई कर बैठी बेवफ़ाई कभी आह भरती हूँ  कभी रोती बहुत हूँ दर्द रात भर पिघलता  जाने कैसी बुत हूँ अश्क़ ग़म के खातों में कसकती तन्हाई मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई कभी फूल बन के तुम आते हो ख़्वाबों में कभी पलकों पर आ  बह जाते सैलाबों में क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई मजबूर इस कदर हुई  कर बैठी बेवफ़ाई , अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में भला कैसे हम निभाते वफ़ादारी की रस्में जिधर फेरती निग़ाह दिखती तेरी परछाई मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई , तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना खुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना बेपनाह मोहब्बत  की तुम्हें दे रही  दुहाई मजबूर इस कदर  हुई कर ...

हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही

                    हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही  कश्मीर तेरी प्यारी बहन है क्या जो ससुराल से विदा कराकर ले जाएगा जीतनी बार भेजेगा लावलश्कर कंहार लाशों का ढेर शानों पे ले जायेगा आ जा प्यारे तेरी आवभगत के लिए बेताब यहाँ गोले बारूद बरसने को सीमा पे तैनात तेरे जीजाओं की बन्दूक भरी स्वागत में आग उगलने को इत्ता वैराग भी ठीक नहीं पागलों अब कश्मीर राग अलापना दो भी छोड़ भीतर से खोखला है तूं कितना करना है तो कर भारत की प्रगति से होड़ अभी तो देखी तुमने केवल हमारी शराफ़त ग़र अपने पर हम आ जायेंगे अभी वक़्त है चेत ले वरना तेरे घर में घुस ऐसी कहर क़यामत का ढाएंगे इक-इक को चुन-चुन कर माँ की कसम कश्मीर का भैरवी राग सुनाएंगे जो दहशतगर्दी फैला रखी भारत की जमीं पर उससे तेरा मुल्क़ जलाएंगे पहले देख तूं अपने वतन की जर्जर हालत जो माँ तेरी,उस पे तरस तूं खा मत आँख उठाकर देख पावन धरा मेरी छिछोरेपन से क...