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बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,

   ' वीर रस की कविता ' सीमाओं पर तो सब कुछ सहते तुम सेनानी फिर किस आक़ा के ऑर्डर का इन्तजार है आत्म रक्षा के लिए वीरों तुम पूर्ण स्वतंत्र हो हैवानों से निपटने का तुम्हें पूर्ण अधिकार है, स्वयं के जान की कीमत समझो सिपाहियों     दुश्मनों पर दागो गन ,बारूद औ एटमबम कायर बन कर राक्षसों के वंशज करते वार छप्पन गज सीने से टकराने का नहीं है दम,     खद-खद ख़ौल रहा जो आज खून जाबांजों इतना ख़ौफ़ दिखा फट जाए पाकिस्तान की बहुत खोये हैं लाल भारत माँ ने आज तलक बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की, ऐसा उठा बवंडर शान,आन की बात सपूतों घर के मित्र-शत्रु का फर्क भी ध्यान में रखना बहुत हुई गाँधीगिरी मानवीयता बहुत दर्शाये असमंजस क्यों,पैलेटगन हिफ़ाजत में रखना, मुहूर्त बहुत ही अच्छा दुश्मन मार गिराने का मटियामेट इन्हें करना संकल्प ठानो दिग्गज़ों प्रीत पड़ोसी नहीं जानता बार-ब...

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है ।  ' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे, भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले , क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो  किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो , ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले ...