सम्भल जाओ सत्तासीनों
सम्भल जाओ सत्तासीनों सम्भल जाओ सत्तासीनों रोज गिर रहा है राजनीति का स्तर निरन्तर हर कोई आंके इक दूजे को कम से कमतर दिन - दिन हो रहा सभी का चारित्रिक पतन मूल्यों से दुश्मनी , नैतिकता का हो रहा हनन ईमान बेच खा रहे हैं लोग ज़मीर बेच खा रहे मौका परस्त नेता लोग ही , जुबान बेच खा रहे तुच्छ स्वार्थ पूर्ति के लिए खुद को गिरा दिया है मनुष्यता भी अब मर गई आदर्श मिटा दिया है गम्भीर समस्यायें हैं क्या , मुद्दे ज्वलन्त क्या हैं मंहगाई की मार में गरीबी का उपचार क्या है हमारे मत का ले ख़जाना पतली गली दिखाते अब हमने भी ठान लिया कैसे मजा हैं चखाते बदलाव के इस दौर में ज़ुबानी वार कारगर नहीं संभल जाओ सत्तासीनों इस वाणी का असर नहीं राष्ट्र और समाज को राजनेता नीचा दिखा रहे हैं भद्दे - भद्दे तंज कस राजनीति का स्तर गिरा रहे हैं नमो - नमो , कमल के नाम से क्यों नींद उड़ गई है आरोपों के फेहरिस्त स...