वियोग श्रृंगार का गीत "कौन सा हठयोग कर रोकूं पथ परदेशी की "
वियोग श्रृंगार का गीत -- " कौन सा हठयोग कर रोकूं पथ परदेशी की "  क्या जतन कर पिया को रिझाऊँ हे सखी  कौन सा मद पिला के भरमाऊँ हे सखी  बसें नैनन मेरे वो बसूं नैन उनके मैं   कौन सा भंग घिसकर पिलाऊँ हे सखी      मांग भर ली सितारों से उनके लिए    कर ली सोलहो सिंगार सखी उनके लिए    बाँहों पर उनके नाम का गुदवा गोदना    पीर सह ली असह्य सखी उनके लिए      मुझे कर के सुहागन मिला के नैना चार   अपने रंगों में रंग दिए रूप को निखार   चाहूँ पलकों तले रखूँ ढाँप पी को हे सखि                छवि निहारूं अपनी दिखें वोही दर्पण के द्वार,   वो नेपथ्य से निहारें इसका भान मुझको हो उन क्षणों का गवाह दो एकान्त मन को हो अलाव सदृश जलूँ उलीचें पी ओस प्रीत की दम-दम दमकूं गमक से गंध पी के तन की हो,     जादू,टोना ना जानूं ना वशीकरण मंत्र चलाऊं नैनों के बान का कहो तो एक यंत्र   कौन सा हठयोग कर रोकूं पथ परदेशी की  स्वांग में और क्या मिला रचूं सम्मोहनी षड्यंत्र, क्या जतन कर पिया को रिझाऊँ हे सखी ...