शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

नव वर्ष पर कविता

'' नव वर्ष मुबारक हो सबको ''

नए साल ने दस्तक दी है
नव वर्ष मुबारक हो सबको ,

बीते बरस के खट्टे-मीठे अनुभव
भेदभाव सब बैर बिसारकर  
नव वर्ष का आदर स्वागत करें हम
खुशियों का उपहार लूटाकर ,

दिलों में प्रीत की जोत जलाएं
आत्मीयता का पुष्प बिछाकर
घर,समाज,देश हर रिश्ते संग
आह्लाद,नेह का घन बरसाकर ,

हम सब मिल यह संकल्प करें
नव वर्ष विश्व का मंगलमय हो
बहे जीवन सबके ज़ाफ़रानी बयार
दुःख,दर्द,रोग,शत्रुओं का क्षय हो ,

उमंग,तरंग से पुलकित अन्तर्मन  
हर्ष उल्लास से जीवन सुखमय हो
कल्पनाएं,अभिलाषाएं,आशाओं की
कभी ना राह किसी की कंटकमय हो ,

नव वर्ष नई स्फूर्ति नव किरण बिखेरे
खुशियों के फूल खिले घर आँगन में
हर सुबह सुहानी शुभ संदेशों की
ध्वजा फहराये हर प्रांगण में,

दैन्य,दरिद्रता,दुःख,कष्ट तमस मिटे
नाचे मोरनी कूके कोयल कानन में
साहस,सुयश,सद्ज्ञान,विज्ञान का
परचम लहराये हिन्द के दामन में,

नए साल ने दस्तक दी है
नव वर्ष मुबारक हो सबको ,

जय हिन्द ,जय भारत

                             शैल सिंह 




  

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

'' ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर

  ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर 


दोस्ती के तक़ाजे क्या उसने ना जाना
सरेआम रूसवा हुई दास्ताँ दोस्ती की ,

वफ़ा करते-करते चोट खाई ना होती
मलाल इतना ना होता दिल के नासूर का
तिल-तिल ना जलते यूँ बेवफ़ाई की आग में
आया होता ख़ुदगर्ज को ग़र उल्फ़त का सलीका ,

ग़र जानती दिल में बेवफ़ा के खंजर
करीब दिल के कभी इतना आने ना देती
न गैर को अपना महसूसने की नादानी होती
ना वफ़ाई के एवज में जग में ऐसी रुसवाई होती ,

खुद कुसूरवार वही खार व्यवहार में
बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा किया है घायल
उसकी बेरंग दुनिया से ख़ुश हूँ आज़ाद हो
मेरे तो बिंदास शख़्सियत की दुनिया है क़ायल ,

मुझे तनहा सफ़र में ना समझे कभी वो 
मेरे साथ राहों पे भीड़ सदा चलती रहेगी
ऐसी नाचीज़ खोकर हाथ मलेगी अकेली वो 
उसके मग़रूर ज़ेहन में तस्वीर अखरती रहेगी ,

लब पे मेरे तबस्सुम खिले फूलों सा
उसकी ज़िंदगी में मुबारक़ हों तन्हाईयाँ 
महके संदल की खुश्बू हवा-ए-गुलिस्ताँ मेरे
क़हर ढाएं फ़रामोश के ऊपर मेरी मेहरबानियाँ ,

गरूर इत्ता बेग़ैरत को किस बात का
खुदाया बरबाद चमन उसका गुलचीं करे
गुलों के आब की रौनाई हो मेरे पतझड़ में भी
वो गन्दी फ़ितरत के अहंकार में रब सुलगती रहे ,

दर्द सीने में संगदिल के जब भी उठेगा
बेचैन वो सारी रात करवट बदलती रहेगी
अनमोल पूँजी जो वक़्त की मैंने उसपे लुटाई
उसकी बेकद्री तन्हाईयों में भी उसे डंसती रहेगी ,

मुझे हासिल जहाँ की मुक़म्मल ख़ुशी
मनहूस की डवांडोल तूफां में कश्ती रहे
फिर मुमक़िन नहीं दिल से दिल का मिलन
आफ़ताब से बढ़कर भी मेरी हस्ती औ मस्ती रहे ।

                                             शैल सिंह


                                       

रविवार, 20 नवंबर 2016

अकेलेपन में ख़ुशी की तलाश

अकेलापन भी एक एकान्त साधना है
एकान्तमिकता की मौनता भी अबूझ है
मन को कहाँ से कहाँ भटका ले जाती है
यही एकान्तमिकता कवि मौन मन को
मुक्त रूप से कवितायेँ रचने के लिए शब्दों
की समाधि में लीन कर उदासी को कविता
कहानियों के संसार में ले जा जीवन का
सार सिखा ,जता ,बता देती है । वीतरागी
मन के लिए ,छीजती हुई जिंदगी के लिए
एकान्त किसी विलक्षण औषधि से कम नहीं ,
यही कारण है कि एकान्त वास में मैं अपने
अकेलेपन और उदासी के उत्सव को ,मन रमा
कविताओं की विभिन्न विधाओं में मना लेती हूँ ,
मन होता विराट फ़लक पर रच डालूं ,उदासी
के क्षणों में हुए चुप्पी के करुणा का सागर ,मन
की कातर विह्वलता का संसार ,विलक्षण अनुभवों
का बहाव जिसका माध्यम सारे दर्द की दवा बन
जाये। कभी-कभी तो जैसे शब्दों का अकाल सा
पड़ जाता है ,मन का उद्वेलन व्यक्त करने
के लिए भाव होते हुए भी शब्द विलीन हो
जाते हैं ,भाषा करवट ले ले उकताती है पर
शब्द साथ नहीं देते और फिर निराशा जन्म
लेकर गहन उदासी पैदा कर देती है । ये शब्द
भी क्या धूप-छाँव का खेल खेलते हैं कभी तो
उबार लेते हैं अपनी अमूल्य निधि की ताक़त से
और कभी साथ न देकर विचलित कर देते हैं
रचनाओं के धरातल से । एकान्त ,अकेलापन और
उदासी भी एक अलग ऊर्जा की जमीं तैयार
करते हैं ,जिसमें होता है विशाल सोचों का भंडार
जो देती है किसी भी चीज के विश्लेषण की
क्षमता का अकूत साधन ,कल्पनावों का आसमान ,
अकेलेपन को कोसने से बेहतर है तन्हाईयों में
जिंदगी का उत्सव मना लेना ,स्वरूप जो भी हो ।
हरा-भरा संसार बिखरा-बिखरा ,एक दूजे से दूर
परिवारों का बिखरना ,रोजी-रोटी की जुगत में
घर-गांवों से लोगों का पलायन ,सभी अपने
आप में तनहा अकेले ,आज का जीवन ऐसा ही है ,
इसी में तलाशना है जिंदगी ,जिंदगी के सारे पहलू ।

                                             शैल सिंह






बुधवार, 9 नवंबर 2016

'' काला धन ''

मेरा देश बदल रहा है ,सरकार का यह सराहनीय कदम
सर आँखों पर ,भ्रष्टाचारियों तुम डाल-डाल मोदी जी पात-पात
गद्दे के नीचे,तकिये के नीचे,दीवान में रखी नोटों की गड्डियां मुँह
चिढ़ा रही होंगी ,५०० की १००० की गड्डियां टीसू पेपर के मुकाबले भी
नहीं रहीं,अब इनका क्या करोगे घूसखोरों आग लगाओगे या गंगा में बहाओगे
नहीं-नहीं गंगा भी अपवित्र हो जाएँगी ,ऐसा करो इसे चबा जाओ तुम लोगों की
पाचनशक्ति और हाजमा दुरुस्त हो जाएगी आगे और भी रास्ते अपनाने है काले
धन कमाने को। भ्रष्टाचारी कभी भी बाज नहीं आएंगे। फिर भी परिवर्तन की आंधी
में कुछ तो बदलाव आएंगे ही । सबका साथ सबका विकास ,
जय हिन्द ,जय भारत ,जय मोदी ,स्वच्छ भारत स्वतंत्र भारत ,हर-हर महादेव ,

                   '' काला धन '' 


मुझे कोई गम नहीं ,पास काला धन नहीं
मोदी का जवाब नहीं कितना है कदम सही
उड़ गयी होगी नींद किसी-किसी के आँख की
छीन गया होगा करार धनकुबेर हैं जो बेपनाह की
सुखानुभूति हो रही अपने उजले धन पर
ऐसी गाज गिरा दी है मोदी ने काले धन पर
वाह रे माँ लक्ष्मी तेरी कृपा भी क्या कमाल की
सर चढ़ जिनके बोली उन घर भी क्या धमाल की
अजीब हाल उगल सके ना निगल सके
रख सके न फेंक सके न गोरे में बदल सके
कल घर की लक्ष्मी आज कचरे की ढेर हो गई
शान बघारने वालों तेरे घर कैसी झट अंधेर हो गई ।

                                          शैल सिंह



शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

तमस मिटाऐं अंतर्मन का



कहाँ दीपक की दीपशिखा में दंभ तनिक भी बोलो तो
कहाँ दीपक के प्रज्वलन में है अहं तनिक भी बोलो तो ,

पर्व ज्योति का आया दीप बाल करें सिंगार तिमिर का
अन्तर्मन के तज विकार आओ करें सिंगार तिमिर का ,

मावस की काली रजनी जगमग वर्तिका की ज्योति से
आलस्य,कुंठा,भय,निद्रा मिटे दीप की अमर ज्योति से ,

चेतना का द्वार खोलता माटी का दीप जला अपना तन
अज्ञानता का तिमिर मिटाता दीप लुटा कर अपना धन ,

आकाश जुगनूओं से जगमग दीपों से झिलमिल धरती
साहित्य ,कला,संस्कृति ,ज्ञान दीपशिखा उरों में भरती ,

निज की आहुति दे नित दीपक पथ आलोकित करता
स्वर्ण शिखा सी ज्योति बिखेर संसार सम्मोहित करता ,

दीप जलाएं शिक्षा का मानवता का ऊर्जा भाईचारे का
नेह के घृत में चेतना की बाती तम मिटाऐं अंतर्मन का ,

अन्तर्मन की भावनाएं,संवेदनाएं प्रज्वलित करें प्रकाश
अभिव्यंजना दीप की तब सार्थक जब हिय भरें उजास ,

हमारी संस्कृति के रंग-रंग रचा-बसा दीपों का त्यौहार
आत्म ज्योति दीपित कर मनुज घर मन्दिर दियना बार ।

                                                    शैल सिंह 

सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

तलाक और शरिया

तलाक तलाक तलाक के मसले को ना तो कानून सही कर सकता और ना ही शरीयत ,सिर्फ बहस और वाद प्रतिवाद के दौर में असली मुद्दा ही दबकर रह जायेगा । इस मसले का हल सारी मुस्लिम महिलाओं के हाथ में है यदि वह अपने साथ सदियों से हो रहे अन्याय के प्रति बगावत पर उत्तर जाएँ तो ,पर वो डरती हैं इस लड़ाई से कहीं अलग-थलग न पड़ जाएं ऐसी घड़ी में साथ देना होगा समाज को ,सभी वर्ग के लोगों को तथा हिंदुस्तान के सभी मानवीय संवेदनाओं को,मुस्लिम महिलाओं की सहनशक्ति ने ही बढ़ावा दिया मुस्लिम मर्दों को क्रूर से क्रूरतम अत्याचार और व्यवहार करने को सर से एड़ी तक बुर्का ,खुलकर साँस लेने की भी आजादी नहीं ,फैशन के अनुसार तथा बदलते हुए ज़माने साथ कितनों ने कुरीतियों को छोड़ ज़माने के साथ कदम मिलाया पर मुस्लिम धर्म में कोई बदलाव कभी नहीं आया न आएगा जब तक विचारों में आमूल परिवर्तन नहीं होगा जब तक सोच के फलक पर नई सोच हॉबी नहीं होगी ।  
                                                            shail singh  


                                                     

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

मन इतना आद्र है की बस .... मत पूछिये

     मन इतना आद्र है की बस  ....  मत पूछिये


उरी में शहीद हुए हैं अपने वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में
अभी शपथ लो हिंदुस्तान के नौजवानों डटकर इंतकाम लेने का
सिलसिला तभी थमेगा जब घुसकर तुम भी पाकिस्तान के गढ़ में
ऐसा हश्र करोगे मुँहतोड़ जवाब दे बेगैरत छिनालों के छैले ख़ेमे का ।

मच्छर,मक्खी सी माँऐं पैदा करतीं तादातों में वाहियात औलादें
न तहजीब सीखातीं न कोई संस्कार बस जनती रहतीं हरामजादे
न अफ़सोस उन्हें ना फर्क कोई गोजरों की एक टांग टूट जाने का
गर महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खो जाने का ।

पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में
मेंहदी रचे हाथ भरी चूड़ियाँ जहाँ सिंगार तब्दील हो गए आहों में
हसरत से देखती रस्ता जिन माँओं के आँखों से निर्झर आँसू उमड़े
उन वीर सिपाहियों की शहादत पे नौनिहालों लेने होंगे फैसले तगड़े ।


शीघ्र फतह कर घर लौटो



तुम दुश्मन पर बम फोड़ो
हम दुआ करेंगे तेरी सलामती की
दीवाली नाम तेरे देश के रखवालों
जय वीरों जय माँ भारती की
तुम वीरों के नाम का दीप जला
सजा राखी है थाली आरती की
शीघ्र फतह कर घर लौटो
घर-घर जश्न मने खुशहाली की
ऐ सरहद पर लड़ने वालों
शत-शत नमन और शत-शत प्रणाम
तेरे ज़ज्बों और वतन परस्ती की |
                                                     

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना 



क्यूँ पापों में निर्लिप्त निर्बाध बह रहे अनिर्दिष्ट दिशा में पाकिस्तान ,

क्यों सत्य,अहिंसा की पावन वेदी को हिंसात्मक बनाने पर हो तूले
कश्मीर का तो सवाल नहीं पीओके पर नजर हमारी क्यूँ तुम भूले ,

छोड़िये नवाज़ शरीफ बुरहान वानी की तोतिये रट का सिलसिला
मेरे घर का मामला था वो ग़द्दार,उसे उसके करनी का फल मिला ,

गर कुछ लेहाज बाकी तो पहले निज घर की बिगड़ी तस्वीर संवार
तेरी व्यर्थ कोशिशें काश्मीरियों लिए शाख़ की ढहती दीवार निहार ,

छोड़ दो वानी का कल्ट खड़ा कर कश्मीरी युवाओं को भड़काना
अन्तर्राष्ट्रीय मानकों ने इतना धिक्कारा पर तुझे नहीं आया शर्माना ,

क्यों उसकी फिक्र तुझे इस्लाम अनुसार जन्नत के मजे वो लूट रहा
बहत्तर हुरों के अंगूरी रस का स्वाद इत्मिनान से वानी तो चूस रहा ,

वैश्विक पटल पे इतनी फ़जीहत देखले मक्कार तूं अपने को तनहा
कहाँ गई जनाब की दादागिरी ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना ,

आख़िर क्यूँ हमसे बैर तुम्हें,साज़िश-रंजिश रचते जिन्ना के मरदूदों
पक्के देशभक्त अपने हिंदुस्तानी मुस्लिम यहाँ ना डालो डोरे चूज़ों

पाकिस्तानी हिन्दूओं संग जो किये बर्बरता उन्हें शहीद का दो दर्जा
कहर ढा चुप रखा उन निर्दोषों को कहीं तेरे गुनाहों की ना हो चर्चा

देख तरक्की हिन्दुस्तान की जल-भून क्यूँ खूंखार बन खुंदस रखता
हम मानवता के अंकुर बोते पाकिस्तानी जमीं जिहादी पौधा उगता

मौन तरंगों को करता उद्वेलित तूं हमपे अघोषित प्रहार कर-करके
गरज उठा समंदर अन्तर का भीषण तूफ़ानों के अट्टहासों से भरके ,

पीड़ा और ज्वलन के आरक्त से हुईं शिथिल इन्द्रियाँ भी उन्मादित
तेरे रक्त कणों से उर की प्यास बुझानी,हैं हिंदुस्तानी भी उत्साहित ।

                                                                 शैल सिंह
  

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,


   ' वीर रस की कविता '


सीमाओं पर तो सब कुछ सहते तुम सेनानी
फिर किस आक़ा के ऑर्डर का इन्तजार है
आत्म रक्षा के लिए वीरों तुम पूर्ण स्वतंत्र हो
हैवानों से निपटने का तुम्हें पूर्ण अधिकार है,

स्वयं के जान की कीमत समझो सिपाहियों    
दुश्मनों पर दागो गन ,बारूद औ एटमबम
कायर बन कर राक्षसों के वंशज करते वार
छप्पन गज सीने से टकराने का नहीं है दम,
   
खद-खद ख़ौल रहा जो आज खून जाबांजों
इतना ख़ौफ़ दिखा फट जाए पाकिस्तान की
बहुत खोये हैं लाल भारत माँ ने आज तलक
बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,

ऐसा उठा बवंडर शान,आन की बात सपूतों
घर के मित्र-शत्रु का फर्क भी ध्यान में रखना
बहुत हुई गाँधीगिरी मानवीयता बहुत दर्शाये
असमंजस क्यों,पैलेटगन हिफ़ाजत में रखना,

मुहूर्त बहुत ही अच्छा दुश्मन मार गिराने का
मटियामेट इन्हें करना संकल्प ठानो दिग्गज़ों
प्रीत पड़ोसी नहीं जानता बार-बार उकसाता
देश कुर्बानी मांग रहा राणा प्रताप के वंशजों,

ऐ कश्मीर के बासिन्दों क्यों धुंध नजर पे छाई
क्यों स्वर्ग की नगरी नरक कुण्ड है बना दिया
क्यूँ बो रहे केसर की क्यारी नफरत के अंगारे
क्यों ग़द्दारों की सह पे खुद का चैन उड़ा लिया ,

                                                shail singh



बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है । 

' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे,


भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले
छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले ,

क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो
क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो
संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो 
किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो ,

ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को
हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को
हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना
हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले नेताओं का पर कतरना ,

तुम्हारी अकर्मन्यतायें ही आतंकों की प्रयोगशालाएं हुईं
क्या कभी हुक्मरानों ने जानी क्या तेरी अभिशालाएं हुईं
अपनी औलादो की करें हिफाज़त तुझे ज़िहाद में झोंकें
तूं कुत्तों की मौत मरे तेरे कुन्बों को खुश करने वो भौंकें ,

पत्थरबाजी खेल,खेलते तुम्हीं वर्दी वालों को उकसाते हो
जब वर्दी हरकत में आती क्यों पैलटगन पर चिल्लाते हो
सारी हदें तुम तोड़ते क्यों पागल माफ़िक होश गंवाते हो
खुद आग लगा हाथ क्यों आग की लपटों में झुलसाते हो ,

यह मत सोचो हमें डराकर कश्मीर हमारा हथिया लोगे
दहशतग़र्द गतिवविधियों से दिल्ली का तख़्त हिला दोगे
अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे
रहो चैन से रहने दो वरना हम जन्नत की राह दिखा देंगे ,

मत इस ग़फ़लत में रहना ऐ आतंक जेहाद के उलेमाओं
देश के नक़्शे से काश्मीर मिटा इस्लामी मुल्क़ बना लोगे
हमने खेलीं ना कच्ची गोलियाँ ना तो गट्टों में चूड़ियां पेन्ही
जब कुपित काल बन घहरेंगे नाशपीटों तो दुम दबा लोगे

क्या कभी भड़काने वालों ने शिक्षा रोजग़ार की बातें कीं
पढ़ो-लिखो तुम अच्छा इन्सान बनो कभी ऐसे जुमले कीं
तूं दिमाग से पैदल है या तेरी अक़्ल को लकवा मार गया
क्यों नहीं समझता गिद्धों ने पैदा खूनी खेलों की नस्लें कीं ,

हम कितने पेशेवर हैं देखो बता दिया सही वक़्त आने पर
जब-जब तोड़ेगा सब्र विवश होंगे इच्छाशक्ति दिखाने पर
क्यूँ भड़काते,भाई से भाई के आंगन में दंगल करवाते हो
कितनी हिदायतें देते ओछी हरकत से बाज नहीं आते हो,

क्यों नौजवानों के मस्तिष्क में बोते तुम नफ़रत के अंगारे
पलते हमारी आस्तीन मे लगवाते पाक ज़िन्दाबाद के नारे
अरे जाहिलों लड़वाओ ना भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेगारी से
इत्ते भी अब घाव ना दो वादी वंचित हो जाये किलकारी से ,

घाटी में मरघट फैला,वीरों की शहादत पर जश्न मनाते हो
मुस्टण्डों खाते-पीते हो हिंदुस्तान का हरा रंग फहराते हो
तेरी भाषा में देना आता जवाब आ हम भी सीना तान खड़े
क्यों मधुमक्खी सा भिनभिनाकर तुम छत्तों में घुस जाते हो ,

तुझ माटी के कच्चे घड़ों को मनचाहे आकारों में ढलवाना
मनसूबों के नापाक़ ईरादे तुझे नाकारा निकम्मा बनवाना
ओ कश्मीर के नौनिहालों इन अलगाववादियों से दूर रहो
हिन्दुस्तान लिए जीयो-मरो ऐसा करो के हिन्द के नूर रहो ,

भेदिये का काम करें यही बख़ूबी,यही हैं घुसपैठ करवाते
हम विविधता के बहुरंगों में यह इस्लाम की फ़सल उगाते
देख हिन्द की ताक़त का अन्दाज़ विश्व भी लोहा मान रहा
सरहद पार जो कीर्ति दिखा दी दुनिया भर में सम्मान रहा ,

दहशतग़र्दी की धौंस दिखा खेल न खून भरी पिचकारी से
खलनायक का रोल भूल खुश्बू फैला केसर की क्यारी से
हाथ न डाल मांद में शेरों की हम चीर फाड़ कर रख देंगे
अपनी धर्म,संस्कृति की रक्षा हेतु जान हथेली पर रख देंगे

हुक़्मरानों के बरगलाने पर नाक में दम करना अब छोड़ो
बंद करो ये खूनी खेल प्रसारण अंजाम बहुत घातक होगा
और न उकसाओ हिन्दुस्तानी हृदय के तूफानी ज्वारों को
तेरे कुकर्मी कारख़ानों का रोकथाम बहुत विनाशक होगा ।
                                                 
                                                                    शैल सिंह
                                      

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता '' शत-शत नमन तुम्हें महानायकों

क्रन्तिकारी कविता 
शत-शत नमन तुम्हें महानायकों


ये वानगी तो एक चेतावनी थी
सिंधु जल पर जल्द फैसला लेंगे हम ,

दिल आज ख़ुशी से पागल है
मन रही देश में गली-गली दीवाली  
शहर-नगर फूटे धांय-धांय पटाखे
मिष्ठानों से घर-घर सज गई थाली ,

इंतक़ाम ले लिया उरी की घटना ने
मातमी चेहरों पर फैली ख़ुशहाली
बहादुरों ने ऐसा साहसी रंग बिखेरा
अबीर गुलाल उड़ा होली पर्व मना ली ,

शत-शत नमन तुम्हें महानायकों
रच दी एल ओ सी पे नई कहानी
प्रण किया था खाकर माँ की कसम
सेनाओं की व्यर्थ ना जाने दी क़ुरबानी ,

तेवर ने एक-एक शहादत के बदले 
दस-दस जां लेने की बात कही थी
बता दो नहीं पूरा हुआ मिशन अभी
पीठ पर हमने घात की वार सही थी

आज कलेज़े को मिली है ठण्डक
उरी का मुँहतोड़ जवाब दे देने पर
घर में घुस वीरों ने जो अंजाम दिया
अब नहीं मलाल सुपुत्रों के खोने पर

तेरे शौर्य का अद्द्भुत परचम देख
हल्दीघाटी का भी सीना फूल गया
परमाणु बमो की धमकी देने वाला
शिकश्त खा लाशें गिनना भूल गया।

                                       शैल सिंह




मंगलवार, 27 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता '' शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


उरी हमले पर मेरी लेखनी द्वारा बिफ़रती हुई यह दूसरी कविता है ,उरी के शहीदों को समर्पित मेरी इस वीर रस की कविता की एक वानगी ---

शमशीरें मचल रही हैं चोलों में


प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक
ऐ पाकिस्तान तेरी बर्बादी का
पटकथा,कहानी लिख ली भूमिका
ध्वस्त करना ढाँचा तेरी आबादी का ,  

कितनी बार फेंकी है तूने लुत्ती
हमारे अमन चैन के उपवन  में
कितनी बार तूने भड़काए शोले
हमारे जन-मन के शान्त सदन में ,

विकराल हवा संग मिल चिन्गारी
तेरी चमड़ी पर ऐसा क़हर ढहाएगी
अब अंगारों को चैन तभी मिलेगा,जब 
नमक-मिर्च का खाल पे छौंङ्क लगाएगी ,

अनगिनत नासूर दिए हैं तुमने
अब ये उफान नहीं है रुकने वाला
लालकिले की रणभेरी ने हुंहकार कर 
अब खोल दिया है चुप का ताला  ,

दरियायें भी अब समंदर बन कर
व्याकुल हैं पाक तेरी तबाही को
आँसुओं की छछनाईं नदियां
आकुल हैं तेरी भीषण बरबादी को ,

क्यों तेरी अम्मियाँ बस पैदा करतीं
तुझे आतंक,ज़िहाद में झोंकने को
क्यों शिक्षा,संस्कार,चलन को देतीं
चोला आत्मघाती,फ़िदाईन का ओढ़ने को ,

हमारे असंख्य पीरों की मवाद ने
अचूक औषधि ईज़ाद कर ली है अब 
इसका माकूल शोध अब तुझ पर होगा
सहनशक्ति ने पूरी मियाद कर ली है अब 

तेरा घर आतंकवाद का गढ़ है
आतंकी देश तूं घोषित होने वाला
अब चाहे जितना भी मिमिया ले तूं 
जिहादियों को तूं ही है पोषित करने वाला ,

छप्पन गज छाती की दहाड़ तो
दिल्ली के सिंहासन की तूने भी सूनी होगी
ये आवाज ही काफ़ी है नींद उड़ाने को तेरी 
अब ये हुँकार दिन दूनी रात चौगुनी होगी ,

अरे ओ नक़ाबपोश के धूर्त गलियारों
तेरे पापों का पर्दाफ़ाश हुआ है
तेरे दिग्गज मेहरबानों ने ही खींच लिए हाथ 
तभी तो तूं इतना बदहवास हुआ है ,

गिलगित,बलूचिस्तान भी उफनाए हैं
देखना पीओके भी हम ले लेंगे
तेरा दुनिया के नक़्शे से नाम मिटा
तुझे भी मोहरा बना दांव हम खेलेंगे ,

अपने वीर शहीदों की कुर्बानियां
कभी व्यर्थ नहीं हम जाने देंगे
क़तरे-क़तरे का मोल चुकाएंगे
दस-दस लाश बिछा हम दम लेंगे ,

क्यों इतनी नियति में खोट तेरे रे
इन्सान नहीं हैवान है रे तूं
ज़ुल्मतों का खा-खाकर आहार
राक्षस,नरपिशाच,शैतान है रे तूं ,

तेरी लाशों के ही ढेर पर अब
होली,दीवाली का जशन मनाएंगे
एक-एक शहादत के एवज में
सौ-सौ जानों पर गाज गिराएंगे ,

जब हम भी हो गए चौकन्ना तो 
क्यों बिल में घुस गए ओ केंचुओं
कंटियायें बेताबी से तरस रही हैं
साहिल पर आ जाओ ओ कछुओं ,

छुट्टा बकरी के अरे ओ मेमनों
कहाँ दुबक गए हो खोलों में
बहत्तर हूरों के पास नहीं जाना क्या
शमशीरें मचल रही हैं चोलों में ,

हमीं हुए हैं क़ामयाब हर मोर्चे पर 
अरे क़ायरों मैदान-ए-जंग में तो आओ
कृष्ण,अर्जुन के पराक्रम,पुरुषार्थ पर
एक बार कायराना बल तो आज़माओ ,

नदियों का जल भी सुलभ ना होने देंगे
बेहूदों हो जाओ तैयार आपदा झेलने को
जब प्यास से मरना बिलबिलाकर
तब आना कबड्डी हम संग खेलने को ,

रुख हवा ने भी है अपना मोड़ लिया   
सन्धि,समझौते भी बदल देंगे अन्दाज़
तुझे बूँद-बूँद को तरसायेंगी पापी अब 
झेलम ,रावी ,सतलज ,व्यास ,चिनाब ,

इन विषधर साँपों के फन को
यही है अच्छा वक़्त कुचलने का 
इन डोड़हों के फुफकारने से पहले
इनके नस-नस है ज़हर उड़लने का ,

कुछ भितरघाती जयचंदों की भी
जुबानों पर शीघ्र ही जाबा मखने होंगे
कुछ गद्दारों,देशद्रोही,बड़बोलों की
नाकों में भी शीघ्र नकेल कसने होंगे ।

                         




















रविवार, 25 सितंबर 2016

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

ये आक्रोश भरे शब्द लिखे हैं आँख के पानी से
रोष है उड़ी में हुए अट्ठारह वीर जवानों की कुर्बानी से ,

रण हुंकार से भरी शेरों की शमशीरें दहक रही हैं
बिफ़र रहीं तलवारें भी भुजायें-भुजायें फड़क रही हैं
हर वजूद के रक़्त प्रवाह से सिंह सी गर्जनायें भड़क रही है
विकराल तूफान की लहरें पाक तुझे लीलने के लिए ललक रही हैं

हम आस्मा को धरा पर झुका लेने की ताक़त रखते हैं
तोड़ पर्वतों का गुमां गंगा बहा लेने की हिमाक़त रखते हैं
हमारी एक ही हुंकार जला के ख़ाक कर देगी पाकिस्तान को
हमारे हिन्दुस्तानी स्वेद में दुनिया बहा ले जाने का दुःसाहस रखते हैं

माँ मलिन मन मत करना वीर पूत के शीश कटाने पर
गर्व से सीना तान के रखना रण में विजय केतु फहराने पर
धरा का शीश नहीं झुकने देंगे अरि भी नत मस्तक करेगा अब
रण बांकुरों के कर में देख खंग माँ देखना विश्व भी काँप उठेगा अब

बांध शहादत का सेहरा माँ ग़र वीरगति भी हो जाये
मातृभूमि की रक्षा ख़ातिर माँ मेरा नाम अमर ग़र हो जाये
धन्य मानूँगा ये जीवन,धरती ऋण से प्राण उऋण ग़र हो जाए
सौभाग्यशाली वो दिन होगा क़फ़न तिरंगा ओढ़ चिता ग़र घर जाये ,

माँ ने कोंख से जनम दिया भारत माँ को सौंप दिया
कैसी हिम्मत वाली माँ फ़र्ज की ख़ातिर कुलवंश सौंप दिया
योद्धा पत्नी ने जीवन सुहाग का,आभूषण धैर्यवान हो सौंप दिया
मैं कितना किस्मत वाला वतन लिए निश्चिन्त सांस-सांस है सौंप दिया
,
ऐसा सिंघनाद करना है,तहलका विश्व में मचाने को
रक़्त की काई साफ है करना कायरों की जड़ें हिलाने को
अब कोई संवाद न होगा बस होगा इंकलाब दिल दहलाने को
भटकी तरुणाई में ऐसा घोलना रसायन नपुंसकों का होश उड़ाने को ।

शैल सिंह

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

'' देश भक्ति कविता '' घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर

'' देश भक्ति कविता ''   घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर 


चिता पर दुलारों तेरी श्मशान रो रहा है
कैसे करें अगन हवाले जहान रो रहा है
धरा रो रही है नीला आसमान रो रहा है
जनाज़े पर तिरंगे का अपमान रो रहा है ,

भृकुटी तनी,आपा खोया,त्योरियां चढ़ीं  
लाल किले के बुर्ज़ ने तोड़ दिया संयम
छल-छद्म के बदले मन भड़की चिन्गारी                    
नरम रवैयों का सब्र ने खोल दिया बंधन, 

मौत का पाई-पाई कर्ज़ चुकाने को हम
माँ की सौगंध वर्दी तन पे सजा लिये हैं
कर अश्त्र ले दस-दस लाशें बिछाने का
सरहद पार जाने का वीणा उठा लिये हैं ,

ललकार रहीं उठती चिताओं से लपटें
पाकिस्तान को नेस्तनाबूंद कर देने को
हर आंसू हर आह से भड़क रहा शोला
ब्याज सहित जख़म वसूल कर लेने को ,

दग्ध चीत्कार पर माँ-बहनों परिजनों के
पाषाण हृदय के भी आँसू निर्बाध उमड़े
धाड़-धाड़ कर बरसी घटा भी आज ऐसे 
जब सुहागन के माँग की लालिमा उजड़े ,

तिरंगों में लिपटे अट्ठारह जवां शवों पर
देश कितना संतप्त,विदग्ध,शोकातुर है
किस्तों में मिला दर्द,कलेजे चुभा नश्तर
उर युद्ध की दुन्दुभि बजाने को आतुर है ,

किसी का अमर सुहाग  जला चिता में
गुलशन किसी का ख़ाक हुआ चिता में
कितनी माँ की कोख़ भष्म हुई चिता में
कितनों का आसरा स्वाहा हुई चिता में ,

टह-टह मेंहदी का रंग जिस हथेली पर
जिन केशों का गजरा मुरझाया नहीं था
उस द्वार पर आई सजी अर्थी सजन की
प्रसून जिस सेज का कुम्हलाया नहीं था ,

अब देखना हमारे संग्राम का पाक मंज़र
तोड़ीं उमड़ते सैलाबों ने सबर की सीमाएं
अब तो होगा दिल दहलाने वाला ताण्डव
मौत के साथ सामां हैं जलाने का भी लाए ।

                                           शैल सिंह





रविवार, 18 सितंबर 2016

पागलों का जमावड़ा

उरी में हुए आतंकी हमले और वीरों की शहादत पर लालू यादव के ये श्रद्धांजलि के शब्द हैं ,मोदी जी पर कटाक्ष कि ३६ इंच का सीना सिकुड़ गया ,इस उजड्ड गंवार की अक्ल को कौन ठिकाने लगाएगा सारा देश शोक संतप्त है ,इस शोक की घड़ी में तो सारे देशवासियों को घर के अन्तर्कलह को किनारे कर भारतीय एकता का सन्देश देना चाहिए ,लालू यादव के इस कथ्य पर भी बवाल मचाना चाहिए ,किस सरकार के कार्यकाल में इस तरह के घातक हमले नहीं हुए ,आशंका तो हो रही कहीं सरकार को बदनाम करने के लिए राजगद्दी की लालसा के लिए कहीं इन विरोधी तत्वों का हाथ तो नहीं ,यदि आतंकी हमलों पर, देश पर मंडराते हुए खतरों पर राजनितिक पार्टियां ऐसी बयानबाजी करती हैं तो पूरे देश से मेरा अनुरोध है की बेहूदे जुबानी हमलों पर उन्हें भी सबक अवश्य सिखाएं,धर्म,जाति-पांति को परे पखकर ऐसे हालात पर एक शब्द भी बेतुका बोलने वाले की जीभ काटकर उसके हाथों में रख देना होगा ,घर के बहरूपियों की उलटीसीधी ,अंट-शंट बयानबाजी से दुश्मनों को हिम्मत मिलती है ,कहाँ देशवासियों, जवानों का हौसला बढ़ाना चाहिए और कहाँ ताना और छींटाकसी केरना ,अरे लालू भी तो देश का नागरिक है क्यों नहीं ७२ इंच का सीना लेकर आगे आते कि प्रधानमंत्री बनकर ही देश का कल्याण करेंगे,शिवसेना की भी बयानबाजी रास नहीं आई,कौन जानबूझकर मौत को बुलावा देगा इन सनकी बरखुरदारों को जिहाद ,आतंक से निपटने की रणनीति पे चर्चा नहीं करनी है बस चूक कैसे हुई ,इनका कहने का मतलब साफ ,सैनिकों ने अपनी मौत का सामान खुद तैयार किया ,पागलों का जमावड़ा है इस देश में दुःख की घड़ी में भी ये लुच्चे एकजुट कभी नहीं हो सकते ,कितना गलत सन्देश जाता है आपसी दुराग्रह का,कभी सोचा है।

                                                                                                                                  शैल सिंह 

रत्ती भर परवाह नहीं ,

उरी कश्मीर में अपने १७ जवानों की शहादत और घायल हुए जवानों की खबर से आत्मा दुःख से चीत्कार रही है ,आक्रोश इतना कि चुन-चुन-कर गिन-गिन कर एक-एक को मन हो रहा है चुटकी से मसल-मसल कर इनकी जन्नत जाने वाली अछूत शरीर को आग लगाकर उस पर मैला डाल दें , जवानों के माँ,बाप,बहन,पत्नी बेटी का क्या हाल हो रहा होगा ,हम सिर्फ प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं लिख,बोलकर भड़ास निकालते हैं फिर कुछ दिन बाद ऐसा दर्द भूल जाते हैं लेकिन फिर ऐसी ही वारदात दुहराई जाती है ,जहर का घूंट कब तक पीते रहेंगे हिंदुस्तान का वह तबका कहाँ गया जो हमेशा विरोधाभाषी बातें करता रहता है कहाँ गए ओवैसी और कश्मीर के अलगाववादी नेता वो विरोधी पार्टियां जिनकी लंबी-लंबी जुबानें चार हाथ बाहार निकलकर भड़काने वाली बातें करती हैं ,यदि आज अभी कोई कारगर कदम उठाया जाय तो चों-चों करने के लिए सभी पार्टियां दुश्मनों की तरह एक मंच पर आ जाते हैं मोदी जी के ख़िलाफ़ आवाज उठाने  के लिए ,यदि सभी हिंदुस्तानी एक मत से ऐसी घटनाओं के निराकरण के लिए आवाज बुलंद करें सभी अराजक तन्तुओं के आचरण का बहिष्कार करें ,देश के प्रति सब एकजुट हो जाएँ तो क्या मजाल कोई आँख दिखाए ,बहुत ही आहत हृदय हुआ है ,सभी सीमाओं पर अपोजिट बोलने वाले नेताओं के दुलारों को तैनात कर उनके जनाजे का नजारा देखना चाहिए ,दाल,पेट्रोल,किराया भाड़ा पर बोलना गरीबों को अनपढ़ों को भड़काना तो बड़ा अच्छा लगता है शहीदों और सेनाओं के लिए क्या होना चाहिए उसकी रत्ती भर परवाह नहीं ,सारे मिडिया वालों और पत्रकारों की कलम और जुबान भी शहीद हो गई शहीदों के साथ ।
         
                                                                                 शैल सिंह 

शनिवार, 3 सितंबर 2016

नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है

'' नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है ''


सोने वालों उठो नींद से आँखें खोलो
आलस्य उबासी छोड़ो मुँह तो धो लो ,

अँधेरे की तिजोरी अलकें खोलीं
देखो सप्तरंगों की खींच रंगोली
अम्बर ने बिखरा दी रोली
खेत चले किसान ले बैलों की टोली
बूढ़ी अम्मा मक्ख़न बिलोल रही है ,

धरा पे बिखरी सूरज की लाली
मन आभा मण्डल से हुआ विभोर
गहमा-गहमी हुई प्रारम्भ प्रात की
गह-गह फैली कृत्रिम छटा चहुँओर
हरियर दूब पर ओस ठिठोल रही है ,

हिम शिखर की चोटी चूम-चूम
स्वर्णिम ऊषा पट खोल रही है
प्रात की पहली रुपहली किरण
सिन्दूरी घूँघट के ओट से बोल रही है
नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है

मंगल गीत सुना रहे हैं सुर में
दहियल,बुलबुल,कोयल,कलहांस
गुलमुहर पर छितरी लाली
पीली ओढ़नी ओढ़े अमलतास
चिड़ियाँ चह-चह किल्लोल रही हैं ,

दिन चढ़ आया रवि लाया देखो
नव जोश उजास की भरी टोकरी
तिमिर चीर फूट रहा उजाला
पुरईनियां खिल गईं ताल,पोखरी
पुरवईया झूर-झूर डोल रही है ,

दिन की सारी तेजी खोकर सूरज 
जाने कब गोधूलि में जाये समा
श्याम-सलोनी सन्ध्या आँचल फहरा
जाने फिर कब ले तुझको भरमा
समय ठगिनी तक़दीर टटोल रही है ,

नई सुबह लेकर आई है नई प्रेरणा
देने जीवन का तुझे अनमोल उपहार
समय अहेरी कर लो मुट्ठी में बंद
बुन लो अनुपम स्वपनों का संसार
जागो अवसर वरदान दे तोल रही है ।

                                  शैल सिंह



शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

देखो अश्रु की धारा

देखो अश्रु की धारा


दुश्मन पतित बाज ना आएगा
कभी भी अपनी बेशर्मी से
जला दो शत्रुओं की लंका
लहू की ख़ौलती गर्मी से ,

इतिहास के पन्नों में होगी दर्ज़
वीरों तुम्हारे शौर्य की गाथा
चुका दो क़र्ज़ निभा कर फ़र्ज
चूमें माँ भारती गर्व से माथा ,

इक बलिदानी की विधवा
तुझसे ही न्याय है मांगे
शहीदों के यतीम बच्चे भी
तुझसे ही इंसाफ़ हैं मांगे ,

उन माँ-बाप के आँखों में देखो
अश्रु की बहती अविरल धारा
जिनने अपने ज़िगर का टुकड़ा
वतन की आन-बान पर वारा ,

कोई बांका वार ना जाये खाली 
रायफ़ल की दुनालों का
हो तुम तो बहादुर वीर सिपाही
मिटा दो नाम नक़्क़ालों का ,

गिन-गिन शहादतों का तुम्हें अब  
वीरों ज़ल्द इंतक़ाम लेना होगा 
तुम्हें क़सम भारत माता की
बैरियों का सर क़त्लेआम करना होगा ,

घर के गद्दारों का भी है ख़तरा
कहीं कम ना आंकना शमशीरों
पैलटगन भी संभालन कर रखना
तुम अपनी भी सुरक्षा में शूरवीरों ,

हायतौबा मच जाये भले ही 
इसका ग़म नहीं है करना
क़ौम के संग तुम्हारे सभी लोग
बांध लो गिरह नहीं है डरना ।

                    शैल सिंह

बुधवार, 24 अगस्त 2016

फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि

   फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि


मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

प्राचीर से लाल किले ने फोड़ दी है चिंगारी
पाकिस्तान में धुवां उठ रहा सुलग-सुलग जल रहा नर संहारी
पड़ गया उल्टा पासा भारी ,ईंट को मार पत्थर ने दी करारी
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

दिखा आईना गिलगित,बल्टिस्तान का ठोंका '' पीओके '' पे दावा 
ज़ालिमों हमने सहा है घाव बहुत फूट रहा भीतर का लावा
खुद के ही जाल में फंसा मदारी ,आगे देखो क्या सुलूक हमारी 
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी , बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

अभी तो केवल गरजे हैं जब बरसेंगे फिर क्या होगा
बदल दिया रक्षात्मक रवैया देखना अब तेवर का रंग क्या होगा
करेंगे सिट्टी-पिट्टी गुम तुम्हारी ,हुई आक्रामक नीति हमारी 
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

जम्मू-कश्मीर का राग ना छेड़ो गुलाम कश्मीर भी हम लेंगे हथिया
अपने घर की आग बुझा तूं बेमतलब उधेड़ा ना कर बेतुकी बखिया
नक्शा विश्वपटल पे कर दिया जारी, देख तूं अब उल्टी चाल हमारी
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी,

नम्रता नरम बरतना छोड़ दिया तेरे बार-बार उकसाने पर
चीन-फीन के बल पर रहा उछल तूं ठान लिया है मजा चखाने पर
धूर्त किया तूं कितनी बार गद्दारी ,कीमत चुका दोहन की भारी
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी , बंध गई घिग्घी गिद्धों की  सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी,

तूं कपटी अन्याय का पोषक हम शांति अमन के दूत
हम भारत माँ के महान सपूत तूं पापी पाक का पूत कपूत
आतंक की फैलाता है महामारी ,देख तेरा क्या होगा हाल शिकारी 
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी , बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी,

कभी भी अपनी दोगली हरकत से जब बाज नहीं तूं आया
साम,दाम,दंड पड़ा अपनाना तब ऊंट पहाड़ के नीचे आया
ज़ुल्म-जिहाद-सितम का पुजारी ,बनता कश्मीरियों का हमदर्द भिखारी
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ,

मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी
होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि ।
बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी 
                                                                     

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

अभिव्यक्ति की आजादी है इसीलिए अभिव्यक्त किया है

अभिव्यक्ति की आजादी है 

इसीलिए अभिव्यक्त किया 

हम ध्वज चाँद पर फहरायेंगे क्षितिज का चाँद हमारा है
देखो तीन रंगों के बीच चक्र अभिप्राय बड़ा ही प्यारा है ,

तूं झंडे पर चित्र बना चाँद का,ध्यान रहे आधा अधूरा हो
आधे चाँद के बीचो-बीच में बस एक ही टंका सितारा हो  ,

पवन नीर सब अपना सूरज पर भी अधिकार हमारा है
आस्मा सहित चाँद के जुगनूँ तारे,सबपर राज हमारा है ,

जल ज़मज़म का पीकर भी तेरे मन का सोता ख़ारा है
यहाँ हर मन के सोते से फूटती गंगा की पावन धारा है ,

अपराध की फ़ेहरिस्तों से गदगद होता ख़ुदा तुम्हारा है
सद्गगुण,सुमार्ग,सत्कर्म से अभिभूत होता नाथ हमारा है ।

                                                 शैल सिंह 

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

अपनों से ही ठोकर खाई

अपनों से ही ठोकर खाई

यह कविता उनके लिए जो परिश्रमी मेधावी होने के बावजूद भी लोगों के अन्याय का शिकार होते है ,फिर भी हारते टूटते नहीं ,गिर के फिर संभल जाते है अगली लड़ाई के लिये और पुनः संकल्प की टहनियों को संजीवनी दे पुनर्जीवित करते हैं मंजिल तक पहुँचने के हर प्रयास को ,बार-बार परास्त हो साहस को और शक्तिशाली बना विरोधियों को मजबूर कर देते हैं सत्य की ठोस जमीं पर उतरने को। संकटों में घिरकर भी लक्ष्य को सकारात्मक
बना लेते हैं सामर्थ्यवान की गलत नीति को धराशाई कर देते हैं और सत्य की जीत पर वो कभी-कभी छलांगे भी लगा लेते हैं,जो भी कुर्सी का गलत उपयोग करते हैं उनके लिए भी मेरी ये कविता है ,किसी के पक्षपात के लिए किसी योग्य का अहित नहीं करना चाहिए ।



तूं भी कश्ती पे सवार है कश्ती मेरी डूबाने वाला
तूं भी धरती पे इंसान है भगवान नहीं कहलाने वाला
डर तूफ़ां की मौन हलचल से ज्वार उफ़ान पे आने वाला
ईश्वर की लाठी बेआवाज़ सुन वही तुझे तेरी औक़ात बताने वाला ,

इतना गुरूर हस्ती पे हस्ती ही सबक सिखाएगी
जिस चाबुक से किया वार अक़्ल वही ठिकाने लाएगी
बरसा शब्दों के ज़हर बूझे कोड़े चैन क़रार है छीन लिया
पूर्वाग्रह से ग्रसित क्यूँ हिस्से का,दिन का उगता सूरज लील लिया ,

देर है अंधेर नहीं तुझपे भी वक़्त क़हर ढहायेगी
तड़पा-तड़पा कर करनी का,तुझे भी मज़ा चखाएगी
अपनों ने ही छला बहुत पग-पग अपनों से ही ठोकर खाई
धर्मपरायण हो भी भटक रही लड़नी पड़ी है हक़ के लिए लड़ाई ,

बहुत आँधियों ने तोला बहुत बवण्डरों संग खेला
बदनीयत बलायें दृढ़ इरादों की चट्टानें हिला ना पाईं
बुझा न पाईं दीये की लौ का अडिग मनोबल हठी हवाएं 
औंधे लौट गईं सनकी लहरें लक्ष्य के साहिल से जब आ टकराईं ।

                                                         शैल सिंह

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

फर्ज बताने हम निकलें हैं


कारगिल दिवस पर 




















कारगिल दिवस पर 


अखण्ड भारत का अखण्ड दीप जलाने हम निकले हैं
करें हिन्द पर प्राणउत्सर्ग अलख जगाने हम निकले हैं
ज्योति से ज्योति बिखेरने की मुहीम पर हम निकले हैं
साथ कारवां का निभाने की अपील पर हम निकले हैं

जागो भारतवंशी एकता का हार पिराने हम निकले हैं
शहादतों का कर्ज उतारना फर्ज बताने हम निकलें हैं
ग़द्दारों की विकृत ज़मीर को धिक्कारने हम निकले हैं
रचनाधर्मिता की मशाल से तुम्हें जगाने हम निकले हैं

                                                  शैल सिंह 

सोमवार, 25 जुलाई 2016

क्या भाव हृदय के जाने

क्या भाव हृदय के जाने 


तूं पत्थर तेरा दिल पत्थर
क्या भाव हृदय के जाने
क्यों लहूलुहान विश्वास करे
कभी आस्था नहीं पहचाने

मनकों की माला फेरूँ क्या
कैसे नाम रटूं तेरा जिह्वा पर
क्या पुष्पों का हार चढाऊँ
और क्या-क्या वारूं दीया पर

सच्चरित्रता,सत्कर्म,ईमान,कर्मठता का
ग़र तुझे फल देना घातक इतना
तो फिर सन्मार्ग चलें क्यों तेरे लिए   
जियें चल कुमार्ग पर जीवन अपना

कितना धैर्य का लेगा इम्तिहान तूं
कितनी बार करेगा नाइंसाफ़ी 
भक्ति-भावना छोड़ दी अब तो
करले जितनी करनी वादाख़िलाफ़ी 

तेरी दिव्य दृष्टि किस काम की जब
उचित-अनुचित अनर्थ ना देख सके
तूं पाखंडी पाषाण की निष्ठुर मूरत
होता कितना अन्याय ना रोक सके

ग़र तेरी लाठी में दम है इतना
तो कर वार मेरे दुश्मन पर
जिसने इतना गहरा घाव दिया
कर बेआवाज़ प्रहार उस तन पर। 



                     शैल सिंह

शनिवार, 23 जुलाई 2016

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ  

ज़माने की निग़ाहों का तीर सह सकी ना
मजबूर इस क़दर हुई कर बैठी बेवफ़ाई

कभी आह भरती हूँ  कभी रोती बहुत हूँ
दर्द रात भर पिघलता  जाने कैसी बुत हूँ
अश्क़ ग़म के खातों में कसकती तन्हाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई

कभी फूल बन के तुम आते हो ख़्वाबों में
कभी पलकों पर आ  बह जाते सैलाबों में
क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई
मजबूर इस कदर हुई  कर बैठी बेवफ़ाई ,

अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में
भला कैसे हम निभाते वफ़ादारी की रस्में
जिधर फेरती निग़ाह दिखती तेरी परछाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,

तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से
यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से
क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई

बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना
खुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना
बेपनाह मोहब्बत  की तुम्हें दे रही  दुहाई
मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,

तोहमत की बिजली न बेचारगी पे गिराना
जब भी दूँ सदा सुन फ़रिस्ता बनके आना
टूटा दिल का आबगीना फिर भरने रौनाई
मजबूर इस कदर  हुई कर  बैठी बेवफ़ाई

आबगीना --शीशा

                           शैल सिंह 

हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही

                   

हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही 

कश्मीर तेरी प्यारी बहन है क्या जो ससुराल से विदा कराकर ले जाएगा
जीतनी बार भेजेगा लावलश्कर कंहार लाशों का ढेर शानों पे ले जायेगा

आ जा प्यारे तेरी आवभगत के लिए बेताब यहाँ गोले बारूद बरसने को
सीमा पे तैनात तेरे जीजाओं की बन्दूक भरी स्वागत में आग उगलने को

इत्ता वैराग भी ठीक नहीं पागलों अब कश्मीर राग अलापना दो भी छोड़
भीतर से खोखला है तूं कितना करना है तो कर भारत की प्रगति से होड़

अभी तो देखी तुमने केवल हमारी शराफ़त ग़र अपने पर हम आ जायेंगे
अभी वक़्त है चेत ले वरना तेरे घर में घुस ऐसी कहर क़यामत का ढाएंगे

इक-इक को चुन-चुन कर माँ की कसम कश्मीर का भैरवी राग सुनाएंगे
जो दहशतगर्दी फैला रखी भारत की जमीं पर उससे तेरा मुल्क़ जलाएंगे

पहले देख तूं अपने वतन की जर्जर हालत जो माँ तेरी,उस पे तरस तूं खा
मत आँख उठाकर देख पावन धरा मेरी छिछोरेपन से कायर बाज तूं आ

अरे उचक्कों तुम्हारी नौटंकी का दृश्य देखने हम तैनात नहीं सीमाओं पे
हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही जो जान लुटाया करते अपनी माँओं पे।

                                                                               shail shingh

    

रविवार, 10 जुलाई 2016

मत करो न साधना घायल मेरी

मंदिर-मंदिर चौखट-चौखट
दीया बाल कर रही याचना
नैवेद्य पुष्प की थाल सजाये
घण्टी बजा कर रही प्रार्थना ,

मन्दिर के परमपूज्य पुजारी
अर्जी देकर कह दो शिव से
भजन,कीर्तन में लीन निमग्न
कर जोड़े बैठी कबसे दर पे ,

मन तेरा द्रवित नहीं है होता 
क्यों देख जगत की पीर प्रभु
हहाकार रुदन,चीत्कार नहीं
क्यों देता सीना तेरा चिर प्रभु ,

मांग अमन की भीख विकल
क्या ऐसा अपराध किया मैंने
सर्वत्र विराजमान तूं दयानिधे
नहीं देखता क्यों क़हर घिनौने ,

तुझे रिझाने को निष्ठुर भगवन
जाने कितने उपक्रम कर डाले
नयनों से घटा बरसा-बरसाकर
अगणित  बार फेरे हैं मैंने माले ,

क्या तुझे समर्पित और करूँ मैं
तेरा ये गर्वित रूप पिघलाने को
रीती गागर आँचल सूखा सावन
सिवा श्रद्धा ना कुछ बरसाने को ,

कहो ना चाँद से शीतल बनकर
दहक मिटा दे तपती धरती का
मटमैली ना हो रजनी की चादर 
ना तृष्णा,मुस्कान हरे जगती का ,

जलती सांसों पर बोल गीतों के
सुमधुर स्वर ताल में कैसे लाऊँ
ऊषा बदली सभी सितारे बदले
उलझे हालात मैं कैसे सुलझाऊँ  ,

मत करो न साधना घायल मेरी
ना अवहेलना अर्चन-वन्दन की
भगवन तूं तो अगम-अगोचर है
हृदय पीर सुनो हम भक्तन की ।

                            शैल सिंह






,





गुरुवार, 7 जुलाई 2016

आखिर लिखूं तो क्या लिखूं

आखिर लिखूं तो क्या लिखूं


मुरझा से गए हैं अल्फ़ाज मेरे
सुख गई है मन की तलहटी
पैठ इनमें ढूँढूँ तो क्या ढूँढूँ 
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूँ तो क्या लिखूँ ,

ताजी खुश्बुओं का झोंका
कब आकर चला गया
हुनर आशिकी का मेरे
कहाँ लेकर चला गया
सदा दूं तो किसको दूं
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ,

अब न हाथ में आती कलम
ले भावों का सुन्दर समन्वय
ना ही दर्द देते शब्द कुछ
करूँ कागजों पे कोई बवंडर 
रिक्तता में भरूं तो क्या भरूं
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ,

ऐसी तो न थी हालत कभी
कैसे तबियत बिगड़ गई
ऐसा हुआ क्या माज़रा
फन से रंगत उतर गई
बैठी करूँ तो क्या करूँ
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ,

ना वो मधुर पल-छिन रहे
ना सुहानी गुनगुनाती रात
ना उमड़-घुमड़ सौहार्द्र बरसे
ना स्वच्छन्द गूंजे अट्टहास
वक़्त से कहूँ तो क्या कहूँ 
कुछ आता नहीं दिमाग में
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ।

                      शैल सिंह


सोमवार, 4 जुलाई 2016

द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे जालिम

द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे ज़ालिम

बर्बर आतंकों से दहला हुआ है विश्व भी
ख़ौफनाक सायों में गुजरे सहमी ज़िदगी

दहशतगर्दों के इरादों की अज़ीब दास्ताँ
इंसानियत को मार जी रहे कैसी ज़िदगी   
बनके अमानुष गिराते रोज ही क्रूर ग़ाज 
झुलसा रहे निर्दयता से दुनियावी ज़िदगी 

मौत का बरपा क़हर पसरा हुआ मातम 
सांसों के अहसानों पर जी रहे हैं ज़िदगी 
देख यह मन्जर मेरा होता है दिल घायल 
पी-पी के घूँट ज़हर का जी रहे हैं ज़िदगी ,

यह कैसी सनक है धुन,उपद्रव किसलिए
ऐसे खिलवाड़ से करोगे कबतक दरिंदगी
ग़र न ज़मीर जागा न फूटा सोता स्नेह का 
इक दिन तुम्हें भी लील लेगी तेरी दरिंदगी ,

हाय तुम्हारी हैवानियत को मैं क्या नाम दूँ 
जन्नतेहूर की ख़ाहिश बनाई सस्ती ज़िदगी  
द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे ज़ालिम
तेरी बेरहमी बेगुनाहों की ले रही है ज़िदगी , 

जिस ख़ुदा वास्ते बरपाता बेख़ौफ़ तूं कहर
वही ख़ुदा देख सुन रहा है मेरी भी बन्दग़ी
कभी न कभी फूटेगा ये तेरे पापों का घड़ा
हज़म तुझे भी करेगी हर आहों की बन्दग़ी ।

                                शैल सिंह



गुलाब से सीख

गुलाब से सीख 


तेरी सुवासित कोमल पंखुड़ियाँ
पर काँटों भरी टहनियाँ क्यों हैं    
ऐ गुलाब बता तेरे ताबों के संग
शूलों की इतनी लड़ियाँ क्यों हैं '



     

इन शूलों के भी बीच अकड़कर
कैसे सुर्ख सिंगार कर मुस्काता है
दुनिया को जरा यह रहस्य बता दे
शूलों में घिर कैसे सुगंध फैलाता है  ।

                                 शैल सिंह

बुधवार, 8 जून 2016

अभी करना काम बहुत है बाकी








अभी करना काम बहुत है बाकी


अभी तो पग हैं धरे डगर पे
चलना दूर बहुत है बाकी
सफ़र अभी तो शुरू हुआ है
तय करना सफ़र बहुत है बाकी
अल्प समय में कर दिया बहुत कुछ
अभी करना काम बहुत है बाकी
पल-पल का हिसाब अभी क्या दूँ
अभी हल करना काम बहुत है बाकी
सबका साथ सबका विकास हो
बस हाथ में हाथ मिलाना साथी
घर में रोशनी की बहुत जरुरत
तुम सब बनो दीया जलूं मैं बन बाती
अभी विश्व फ़लक पर नाम है चमका
अभी भारत को स्वर्ग बनाना है बाकी

                          शैल सिंह


रविवार, 29 मई 2016

आँखें खोलो पथभ्रमितों

आँखें खोलो पथभ्रमितों 


सीमाओं पर डटे सिपाही कभी भेदभाव नहीं करते
अपना जान जोख़िम में डाल महफूज़ हमें हैं रखते

मौसम की परवाह न करते धूप,ताप गलन हैं सहते
माँ रज का कण शीश लगा,हमवतन लिए हैं लड़ते

जो कश्मीर का सुर अलापे जुबां काट रखें हाथों में
कभी ना आना भाई मेरे कैसी भी बहकाई बातों में

राम ख़ुदा में बांटा किसने क्यों नहीं समझ में आता
क्यूँ नहीं इस माँ के लिए हृदय में कोई भाव जगाता

जो माँ आँचल में आत्मसात की सदा तुम्हारा जीवन
उस माँ के लिए भरा क्यों मन में बदबू सा है सीलन

आँखें खोलो पथभ्रमितों दूजी 'जहाँ' की देखो तस्वीर
जहाँ इन्सानों का मोल नहीं खींची हुई देखो शमशीर

हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई का देश पुरातन ये भारत
यहाँ सब धर्मों का होता पूजन देश सनातन ये भारत

मत करो बग़ावत माँ से,नहीं जहाँ में कोई ऐसा देश
जहाँ स्वर्ग उतर स्वयं हिन्द का चूमा करता है केश

भेदभाव,मतभेद मिटा भाईचारे की अलख़ जगाओ
हम हिंदुस्तानी एक कुटुम्ब हैं दहशत मत फैलाओ ।

                                               शैल सिंह






बुधवार, 25 मई 2016

किसने किस्तों में लूटा है देश सबको है पता

           " नमो-नमो को समर्पित "




किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता


[ १ ]

ऐसा कोहिनूर हीरा कभी ना मिलेगा
अरे देश वालों क़दर करना जानों
सत्ता की लोलुपता में मसीहा ना नकारो
महान इस विभूति की शिखा तो पहचानो
अंतर्मन के द्वार खोलो और देखो उजाला
क्यों तमस का आँखों पर परदा है डाला
जिसने विश्व की जुबान पर हिंदी हिंदुस्तान का
फूंक दिया है मन्त्र अपने गीता और पुराण का ।

[ २ ]

सियासत के दांव-पेंच से अब उतर रहा नशा
बदल रहा हमारा देश और सुधर रही दशा
गा रहीं फिजाएं मुस्करा रही दिशा
छंटी मन पर छाई बदरी,दीप्त हो रही निशा
बहारों को भी है भा गई खिज़ां की हर अदा
नदी,बावड़ी,तालाब हुईं कंवल-कंवल फ़िदा
किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता
किसके चमके हुनर पर विश्व भी है दे रहा सदा ।

                                   शैल सिंह


मंगलवार, 24 मई 2016

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक                                                                                                                       

निर्जन रजनी का तूं पथप्रदीप है
अन्तर्मन आलोकित करने वाला
जगमगाता दीप तूं पर्व पुनीत है

चाहे जितने जुगनूँ तारे चमकें
बजता हो आसमां में डंका चाँद का
पर दीपक की परिभाषा अभिन्न
तमकारा चीर सुख देता आनंद का

हरने को तिमिर का हर पीर तुम्हें
जलना दीपक तुम्हें निरन्तर
लिखा बदा में मालिक ने तेरे
नहीं कभी भी सुस्ताना पल भर ,

तुम द्वैत-अद्वैत के मिलन के दीपक
तुम्हीं हो तम् के वाहक दीपक
तुम्हीं हो मन के साधक दीपक
नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक ,

बिन तेरे हर अनुष्ठान अधूरा
तुम बिन हर विधि-विधान अधूरा
तुम ही धरती के अमरपुत्र हो
हे माटी के राजवंश तुम जीवनसूत्र हो ,

माटी गुण से जीवन परिपूरित तेरा
सारी रात तपा देह,नेह आलोक विखेरा
जग का तमस निगल सलोने तूने
दिया सूर्योउदय के हाथ सिन्होरा ।

                           शैल सिंह

मंगलवार, 3 मई 2016

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का



जहाँ सुबह होती अजान से कान गूंजे हनुमान चालीसा
जिस धरती पे राम-रहीम बसते गुरु गोविन्द और ईसा
जहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में भाई-भाई का नाता
जहाँ की पवित्र आयतें बाईबिल ग्रन्थ कुरान और गीता ,

हम करते हैं नाज़ जिस वतन की नीर,समीर माटी पर
हम करते हैं नाज़ जिस चमन की खुशबूदार घाटी पर
जिसकी आन वास्ते शहीद हुए न जाने कितने नौजवाँ
उस मुल्क़ के मुखालफ़त गद्दार हुए बदजात बद्जुबां ,

पतित पावनी धरा पर भूचाल मचाया उपद्रवी तत्वों ने
अभिव्यक्ति की आज़ादी में पाजी अक़्ल लगी सनकने
भारत के टुकड़े होंगे कहते हैं कश्मीर नहीं भारत का
बेलगाम नामुराद देशद्रोहियों की मति गई है मारी का ,

                                             

इक दिन बिखर जायेंगे अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले दहर में
देखना टूटे हुए जंजीर की कड़ियों की तरह
उठेंगी दश्त में घृणा भरी निग़ाहें बस इन सब पर
कर्ण बेंधेंगी हिक़ारत की आवाज़ें,चिमनियों की तरह  ,

अरे हम नहीं ख़ामोश बैठने वालों में से हैं
वामपंथियों की हवा निकालने वालों में से है
ये खुशबयानी और ख़ुशख़यालियाँ पाले रखो
हम नहीं तुम्हारे मंसूबे क़ामयाब होने देने वालों में से हैं ,

हम सदा मोहब्बत बांटने की बात करते है
कुछ लोग अहले सियासत की बात करते हैं
हमारा पैग़ाम सवा सौ करोड़ देश की जनता को है
चलो देशद्रोहियों को मुल्क़ से खदेड़ने की बात करते है ।

                                                             
  

रविवार, 1 मई 2016

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद 


नित देख जगत का आहत दर्पण
पन्नों पर मन का दर्द उगलतीं हूँ
अब जाने कब होगा जग प्रफुल्ल 
सोच कविता में मर्म विलखती हूँ ,

काश करतीं व्यथित शोहदों को
आतंक की चरम घृणित क्रीड़ाएं
कोई मुक्तिदूत बनकर आ जाता
हर लेता जग की क्रन्दित पीड़ाएँ ,

कभी ग़र घोर निराशा के क्षण में
कहीं से छुप झांक पुरनिमा जाती
पुनः अगले पल कुछ घट जाता रे
जैसे ही सुख भर पलकें झपकाती ,

जब-जब हँस उषा की लाली देखा
कलह की सुख पर चल गई आरी
फिर काली निशा हो गई डरावनी
सुनकर कुत्सित षड्यंत्र की क्यारी ,

भाटे जैसी उठती हिलोर हृदय में
व्यूह तोड़  लहरों में बह जाने को
जग का दुर्दिन हश्र देख मचलता
विवश कंगन कटार बन जाने को ,

रुख रहेगा अलग-थलग भावों का 
ग़र आपस में ही लड़ते रह जायेंगे
जो भी आदि बची जी दीन दशा में
विष सुधा विद्वेष कलुष कर जायेंगे ,

सुरभित जीवन में मची कोलाहल
सर्वत्र चीत्कार रहीं गलियाँ-गलियाँ
भय से भूल गए खग,पक्षी कलरव
दहशत में उषा,ख़ौफ़ में है दुनिया 

ख़लल,शांति अमन को निगल गई
निर्जन नीड़ों में डोल रहे चमगादड़
नभ कण भी बरसा रहे हैं अश्रु बिंदु
मची हुई चहुँओर है भीषण भगदड़ ,

यदि होता बस में ग़र कुछ भी मेरे
भरती जग आँचल सुख का सागर
मिटा तमिस्रा उर-उर की,धर देती
हर अधरों पर  किसलय का गागर ,

सुख समरसता ठिठक गई मानो
पथभ्रष्टों की निर्भीक निर्दयता से
हो रही प्रकम्पित धरणी,अणु भी
मस्तिष्क की दुर्भिक्ष दानवता से ,

विक्षिप्त मानसिकता की ज़द में
जगत की दिनचर्या धधक रही है
लगता बहुत अनर्थ है होने वाला
निर्बाध आँख दाईं फड़क रही है ,

चैतन्य हो जाओ अरे सोने वालों
नव प्राण फूंकना मृत स्पन्दन में
समता की करनी है मुखर वाणी
शंखनाद गूंजे निस्सीम गगन में ,

बेवजह दहक रही सारी दुनिया
आतंकवाद की भीषण लपटों से
कहीं 'तू-तू ' 'मैं-मैं' के विलास में
मिट न जाएँ रे आपसी कलहों से ।

सुधा--अमृत

                               शैल सिंह 
















मंगलवार, 15 मार्च 2016

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं ''

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं  ''

जाविदाँ ,जहाँ आफरीं हिन्द मेरा वतन
जहाँगीर जाविदाँ मेरा ज़न्नत सा चमन
नहीं ऐसा जहाँपनाह कहीं भी जहाँ में
सारा जहाँआरा बाअदब करता नमन ,

जाके देखो जहांगिर्द नहीं कहीं पाओगे
ऐसा जमील अौ जमाल है गुलशन मेरा
ज़फ़ा जालसाजी छोड़ो ना गद्दारी करो
जवान स्वालिह बनो मत किताली करो ,

आँखें दिखाने की जुर्रत ,जसारत करो
ना वतन से मेरे जुलसाजी,गद्दारी करो
पल में करेंगे जिलावतन सुनो काफिरों
हम जाँनिसार वतन  पर सुनों जाहिलों ,

हम जाविरों को कभी माफ़ करते नहीं
हम हैं कितने जलाली ये जरा जान लो
हम हैं जाबांज जब्बार करने लेने वाले
छोड़ो  जब्र जबरन कहा जरा मान लो ,

जम्हूरी सल्तनत नहीं हिन्द जैसी कहीं
मेरे भारत माँ की जन्नत सी है सरजमीं
जवाँ दौलत,जवाहरों का मेरा ये देश है
जवांसाल,जवाँमर्दों का यहाँ समावेश है ,

जाविदाँ --शाश्वत ,अविनाशी
जहाँआफरीं --संसार को रचने वाला
जहाँगीर--चक्रवर्ती ,विश्वविजयी
जहाँपनाह--संसार की सुरक्षा करने वाला
जहाँआरा--संसार प्रशंसक
जहांगिर्द--दुनिया भ्रमण कर
जमील अौ जमाल--मनोहारी सौन्दर्य
जफा--अत्याचार  , जवान स्वालिह--नेक इंसान
किताली --रक्तपात,युद्ध
जसारत --दुस्साहस ,धृष्टता
जुलसाजी--धोखेबाजी , जिलावतन---देश निकाला
जाँनिसार---जान न्योछावर ,  जाविरों---अन्यायी ,अत्याचारी
जलाली --प्रतापी शान वाला ,  जब्बार--विजय प्राप्त
जब्र ज़बरन --जोर,जुल्म,उत्पीड़न
जवांदौलत जवाहरों--ऐश्वर्यवान ,रत्नमणि
जवांसाल,जवाँमर्दों---नवयुवा,साहसी,हौसलामंद  ।

                                                  शैल सिंह 

रविवार, 6 मार्च 2016

'' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''

                             '' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''

             एक इंदिरागांधी थीं कि अपनी दूरदर्शिता से पाकिस्तान का विभाजन कर दो राष्ट्रों का निर्माण कर भारत को अक्षुण्ण बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ीं , मुझे तरस आता है राहुल गांधी की बुद्धि और विवेक पर जो इस देश को इस देश के लोगों को अभी तक नहीं समझ पाये और समझने का प्रयास भी नहीं कर रहे अपनी दादी का नाम तो भुनाते हैं पर उनके उसूलों,आदर्शों ,सिद्धांतों का अनुसरण नहीं करते ,जिस देश को हमारी महान नेता श्रीमती इंदिरागाँधी ने अपने खून पसीने से सींचा हो उसी दूरदर्शी महिला का अपना नाती इतना घृणित और राजनैतिक गुंडेपन का परिचय दे रहा हो और उस बहरूपिये का समर्थन कर रहा है जो ये कहता है कि रोहित वेमुला मेरा आदर्श है मैं उस मंदबुद्धि से ये पूछना चाहती हूँ कि हमारे संविधान में आत्महत्या का क्या स्थान है हमारे संविधान में आत्महत्या को एक जघन्य अपराध माना गया है अरे आत्महत्या करने वाले तो कायर होते हैं और ये कायर लोग ही जब तुम्हारे मार्गदर्शक है तो बात ही क्या कहने ,हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या इसी कृत्य के लिए देश सेवा में खुद को कुर्बान किया । हमारे संविधान निर्माता बाबासाहब अम्बेडकर कभी भी ऐसे कायरों को इस देश में नहीं देखना चाहते थे वे तो सभी वर्गों को शक्तिशाली और खुशहाल देखना चाहते थे ,पर आज उनके नाम का दुरुपयोग कर कुछ चन्द लोग शक्तिशाली और धनवान बनना चाहते हैं जैसे इन्हीं चंद लोगों के ही बाबा साहब अम्बेडकर थे देश की और जनता के वे कुछ भी नहीं लगते थे कुछ लोग उनपर अपना कितना हक़,अधिकार जताते हैं सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए  ।
   मैं सीताराम येचुरी से ये पूछना चाहती हूँ कि जब इस देश से आप लोगों के शाख की बलि चढ़ गई तो एकमात्र आशा की किरण कन्हैया में दिखाई देने लगी ,आप के जिन सिद्धांतों ने पैंतीस वर्षों में बंगाल को अत्यंत पिछड़े राज्यों की श्रेणी मैं खड़ा कर दिया ,अब पुनः उसी छिछोरी विचार धारा को स्थापित करने के लिए कन्हैया के कन्धों का सहारा दिखाई दे रहा है पर याद रखिये उसी बंगाल के लोग अब बुद्धिमान हो गए हैं अब वे अपनी पुरानी भूलों को नहीं दुहरायेंगे । आप और आप जैसे अन्य लोग ढोल,तासे पीटते रहिये देश जागरूक हो चुका है आप लोग जितनी ही विवादस्पद बातें बातें करेंगे ,देशभक्त और भी मजबूत और एक जुट होते जायेंगे ,हर किसी को अपनी माँ की अस्मिता प्यारी होती है  सीताराम येचुरी और उनके मुट्ठी भर प्रशंसक ,मैं तो कहूँगी कि ये सब सफेदपोश नक्सलाइट हैं जिनसे भारतीय सुरक्षातन्त्र जद्दोजहद और संधर्ष कर रहा है ,केवल पार्टीबंदी और गोलबंदी कर ये लोग देशद्रोहियों का साथ देकर देश के विकास को रोक नहीं सकते यह देश आगे बढ़ चला है और आगे ही बढ़ता जायेगा । आँखें खोलकर देख लो विरोधियों वर्तमान सरकार की सफल विदेशनीति का असर कि आज पाकिस्तान भी अपने आतंकवादियों की सूचनाएं भारत के साथ साझा कर रहा है । ''हर घर में अफजल पैदा होगा '' के विपरीत इस देश के घर-घर में मोदी जी और अब्दुल कलाम जी जैसे महारथी पैदा होंगे । जिस पर देश नाज़ करेगा ,और आप लोग जिस लाल झंडे की बात कर रहे हो वह इतिहास में भी नहीं इतिहास के डस्टबिन के पन्नों में दबकर रह जायेगा यह देश चन्द भौंकने वालों का नहीं वरन देेश पके प्रति अच्छी भावना रखने वाला सवा सौ करोड़ जनता जनार्दन का है और ये लोग विकास पुरुष का साथ देने के लिए अगली पंक्ति में खड़े हैं ,कन्हैया येचुरी,केजरी नितीश ये लोग एक दिन हाशिये पर आ जायेंगे ,भारत माँ का मखौल उड़ाकर भारत माँ के लोगों से ही समर्थन मांगते शर्म आनी चाहिए ,बार-बार भूल नहीं होगी अब विहार के लोग भी अपने कृत्य पर पछताते होंगे ,कन्हैया का भोंडा भाषण नितीश को बेहद प्रभावशाली लगा क्योंकि एक मदारी को मदारी विरादरी ही तो पसंद करेगी ना ।कन्हैया तो खुद ही किसी टीशन का तमाशा दिखाकर भीख मांगने वाला भिखारी लग रहा था वह मोदी जी पर व्यंग्य बाण छोड़कर अपने आजू-बाजू की भीड़ की मनोरंजन का साधन मात्र था ,अपने छिछोरी शख्सियत का भाषण की जादूगरी से तमाशबीनों के बीच अपना भाव बढ़ा रहा था ये भीड़ केवल मजा के लिए थी कन्हैया सोच लो ये कभी साथ नहीं देंगे '' जहाँ मार पड़ी तहाँ भाग पड़े '' वाली कहावत सुने हो ना ,कितना बहक-बहक कर बहस-बहस कर कह रहा था जब तक चना रहेगा आना जाना लगा रहेगा ,अरे मैं तो कहती हूँ की इसका चुरकना बंद करने के लिए फिर से जेल में ठूंस देना चाहये सारी दादागिरी भूल जायेगा ।
     इसने हमारी न्याय व्यवस्था को ललकारा है हमारी न्याय व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है । अरे मूर्ख इस देश की न्याय व्यवस्थ इतनी अनूठी है इसका कोई विकल्प नहीं है, ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलेगा ,तूने तो कोर्ट की आज्ञा की अवहेलना की है ,पिंजड़े में तड़प रहा था पिंजड़े से निकलते ही भीड़ के बलबूते चिंघाड़ने लगा । कन्हैया बनकर गोपी,गोपिकाओं का हुजूम इकठ्ठा कर ,तुम्हारी बेहूदी हासलीला का बेहूदा प्रदर्शन एन डी टी वी वालों ने दिखाया जिसमें नचनियां जैसा ही एकदम तू लग रहा था ,किससे बराबरी करने चला है अपनी औकात को तो तौला होता ,याद रख पथविहीन जो सपना पाला रखा है वो कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि तूने सवा सौ करोड़ देशवासियों की भारत माता का अनादर और अपमान किया है कहने को बहुत कुछ है पर  ......तुझे बख़्श देती हूँ कि अपनी गन्दी सोच और घिनौनी मानसिकता अपने पास रख हमारे नौजवानों को भटका मत ,वैसे भी भोलेभाले लोग लच्छेदार भाषणों को सुनकर आविर्भूत हो जाते हैं और भीड़ की तरफ आकर्षित हो जाते हैं पर वो कुछ ही लोग होते हैं ,ये भीड़ तो वो है जैसे बहती गंगा में सबका हाथ धोना जिसे तू अपनी ताकत बना बैठा ,देख ले तेरे विरुद्ध लामबन्द होकर बोलने वालों की तादात इंटरनेट,ब्लॉग,फेसबुक,ट्वीटर इत्यादि पर तेरे प्रति और तेरे चहेतों के प्रति ज़हर का ज्वालामुखी ।
             गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी की आजादी के लिए परिश्रम करना पड़ेगा दिल,दिमाग को ठिकाने लगाकर शिक्षा हासिल करनी पड़ेगी हाथ पर हाथ धरकर निठल्लों को आरक्षण भी चाहिए और हर तरह की आजादी भी चाहिए जो मर-मर कर जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं उनका भी हिस्सा आरक्षण की भट्ठी में जा रहा है कोढ़ियों को सब कुछ चाहिए,गर इन्हें आजादी चाहिए तो मुक्त कर देना चाहिए हर चीज से वंचित करके ।
                                                                      शैल सिंह

   

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

ऐसी गलती बार-बार करुँगी


मिस्टर कन्हैया जेल जाना तो तुम्हारे लिए वरदान सावित हो गया ,जे एन यू से बहुत सारे नेता निकले लेकिन उनमें से गिने-चुने लोगों को ही यह देश जान पाया और तुम तो जेल से बाहर आकर अच्छी खासी भीड़ जुटाकर अपनी धाक ज़माने में कामयाब हो गए । एस सी एस टी ओ बी सी का कार्ड खेलकर तथा रोहित वेमुला का नाम उछालकर जिस तरह से युवाओं को भरमाने की विसात बिछा रहे हो वह तुम्हारी राजनीतिक कूटनीति की एक चाल मात्र है इससे इतर कुछ भी नहीं । जब कि तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि जैसे इस देश में आये दिन विक्षिप्त लोग ख़ुदकुशी ,आत्महत्या करते हैं ,वैसे ही एक केस रोहित वेमुला का भी है वैसे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है जो लोग अपनी समस्याओं से संघर्ष नहीं कर पाते वे इस तरह का कायरता पूर्ण कार्य अख्तियार कर लेते हैं।
    कन्हैया तुम्हें भी अच्छी तरह पता होगा कि जिस नरेंद्र मोदी का आज तुम दहाड़कर मखौल उड़ा रहे हो इन  मानसिक दिवालियेपन वाली भीड़ों के समक्ष जिनका अपना कोई वजूद नहीं वरना सौ बार ये हुजूम सोचता कि कैसे देशद्रोही का हम जश्न मना रहे हैं और भाषण सुन रहे हैं ,वही भीड़ तुम्हारे साथ जेल की काल कोठरी में क्यों नहीं गयी इस भीड़ को देखकर तुम्हारे हौसले इतने बुलंद हो गए कि सख्त हिदायत के बावजूद भी जेल से निकलते ही गिरगिट जैसा रंग बदल लिया । मैंने भी एन डी टी वी पर गौर से तुम्हारा भाषण सुना ,तो सुनो  मोदी जी भी निहायत गरीब परिवार से ताल्लुक रखते है और उच्च जाति के भी नहीं हैं, देश हित के लिए संघर्ष करते हुए ही वह आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं । तुम भी पढ़े-लिखे हो बिहार के ऊंची जाति में सम्भवतः पैदा हुए हो आज जो तुम अपना बड़बोलापन इस बिन पेंदी की लुटिया वाली भीड़ के सामने उछाल रहे हो उसके पीछे छिपी तुम्हारी मंसा भी जगजाहिर हो गई है ,तुम किसी दलित फलित के लिए नहीं आवाज उठा रहे हो बल्कि अपने घृणित उद्देश्यों के लिए ट्रम्प कार्ड खेल रहे हो । चूँकि हमारे देश की जनता बेहद भोलीभाली है और सम्भव है वो तुम्हें एम एल ए एम पी भी बना दें पर याद रखो तुम जिस लाल झंडे की बात कर रहे हो वह झंडा पुरे विश्व से दशकों पहले उखड चुका है ,तुम कहते हो कि मेरा परिवार तीन हजार रुपये में चलता है उस परिवार का बेटा इस तरह की बदजुबानी बोल रहा है अरे तुम्हें तो किसी तरह पढाई लिखाई कर अपने परिवार के लिए रोटी रोजी की जुगत में लग जाना चाहिए था अपने परिवार का सम्बल बनना चाहिए था पर तुम तो गन्दी सियासत का भद्दा दांवपेंच खेलकर रातोंरात राष्ट्र विरोधी नारा लगाकर मुट्ठी भर लोगों के बीच में हीरो बन गए ,तीन हजार रूपये की बात कहकर सुर्खियां बटोरकर देश के प्रति अपनी ओछी सोच का झंडा फहराकर प्रसिद्धि पाने में तो तुम कामयाब हो गए ,चंद देशद्रोहियों को बटोरकर मिडिया में उभर भी गए तुम्हारा केवल यही मकसद ही था शायद यही तीन हजार अगले कुछ दिनों में तुम्हें करोड़ों का मालिक बनाने का रास्ता तैयार कर दें । ये जो तुम्हारे आस -पास भीड़ इकट्ठी हुई है वो तुम्हारे साथ जेल की हवा खाने तो नहीं गई जेल में तो घिग्घी बंध गई थी जमानत पर जमानत माँगा जा रहा था जेल से छूटते ही फिर तुम और दोगुने रूप में सनक गए और कोर्ट की सख्त हिदायत भी भूल गए तुम जिस भीड़ के बल पर उछल रहे हो वो ही एक दिन तुम्हें गच्चा देंगे छोड़ देंगे पगलाने के लिए और फिर फ्रस्टेशन में तुम भी एक दिन रोहित वेमुला की तरह विक्षिप्तता की मौत मरोगे ।
      मैं तो कहूँगी कि प्रसिद्धि ,शोहरत ,और धनवान बनने के लिए कभी भी कोई राष्ट्र विरोधी नारा लगाकर ऊपर उठने की कोशिश ना करे पहले यह मजबूत ताकतवर देश है तब हम हैं , निवेदन है कि विश्व पटल पर  भारत की उभरती हुई छवि को कोई भी पागलपन की हद पार कर धूल धूसरित ना करे । जेल से निकलने के बाद की हेकड़ी बहस-बहस कर मटक मटक कर टी वी पर कन्हैया की भाषण बाजी और कटाक्ष,व्यंग्य सभी ने देखी होगी जो सभी देशप्रेमियों को सभी बुद्धिजीवियों को तिलमिलाने के लिए काफी है ,मैं तो कहूँगी जो इस तरह के सिरफिरों का मकसद है उसमें कभी भी इन्हें कामयाब नहीं होने देना है ऐसे ही लोगों द्वारा देश,समाज ,घर परिवार ,आस-पड़ोस दूषित होता है ।
     मैं तो प्रशासन से सरकार से यही कहूँगी कि जितने भी इस तरह के लोग हैं जो बिना परिश्रम के चंद घंटों में सियासत की भोंडी रोटी सेंककर अपनी शख्सियत का बोलबाला दिखाना चाहते हैं उन्हें तत्काल पकड़कर देश की सीमाओं पर तैनात कर देना चाहिए ताकि दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपनी ताकत का सबको वो अहसास कराएं ।सियाचिन की गला देने वाली बर्फ का इन्हें भी मजा चखना चाहिए ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों कारगिल तिब्बत इत्यादि सीमाओं पर बिना देर के इन्हें तैनात कर देना चाहिए ,पर ऐसे दगाबाजों से ये भी डर है ये अपने फ़ायदे के लिए दुश्मनो से मिल भी जायेंगे । अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देशद्रोह की भाषा बोलने के लिए है तो मैं भी यह घृष्टता करुँगी देशद्रोहियों के विरुद्ध बोलने की ,ये मेरे मन की बात है ,अभिव्यक्ति की आजादी अगर गलत बोलने के लिए है तो मैं सही बोलने के लिए ऐसी गलती बार-बार करुँगी ।
                                                                                  शैल सिंह 

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये



हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये


चाहे जितनी कर लो नारेबाज़ी कश्मीर नहीं हम देने वाले
चाहे जीतनी चलो पैंतरेबाजी ये जागीर नहीं हम देने वाले
हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पे आँख उठाये
जिसे प्रिय है इतना पाकिस्तान जाके पाकिस्तान बस जाये ,

हमें नहीं ज़रुरत घाती गद्दारों,दुराचारी अलगाववादियों की
कितने नमकहराम होते हैं हमारे ही टुकड़ों पर पलने वाले
इन आस्तीन के साँपों को हमारा आदर,सत्कार नहीं भाता
इनको चाहे जितना मक्खन दो होते मन के ये कपटी काले ,

हम नहीं कोई तमाशाई जो ख़ामोश अतिक्रमण इनका देखें
ग़र हिंदुस्तान में इन्हें रहना है तो वन्दे मातरम कहना होगा
उन्हें भी नहीं बख़्शना जिनकी सह पाकर मचा रहे बवण्डर
इसी ज़मीं का गुण गाकर इन्हें हिन्द के लिए ही मरना होगा । 

                                                         शैल सिंह



रविवार, 7 फ़रवरी 2016

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है                                                                                                                                                                                                


        
जिस मांग का सिन्दूर उजड़ गया बिखर गया संसार
जिस घर का इकलौता दीप बुझा कोख़ रही चीत्कार ,

चटक गई जिस संबल की लाठी  नाव अभी मँझधार
जिस बहन की रूठी राखी दृष्टि बहाती अविरल धार ,

सुनो गौर से देशप्रेमियों,बारी तेरी,देना ये क़र्ज़ उतार
रक़्त का कतरा-कतरा कर देना शहादत पर न्योछार ,

राख चिता की बुझ ना पाये दुधारी धार धारो तलवार
सुलग रही सीने में आग मचा दो घमासान हाहाकार ,

आग चिता की बुझी अगर सब जोश धरा रह जायेगा
ग़र नीर नयन के सूख गए ठंडा आक्रोश पड़ जायेगा ,

इसी राख की मल भभूत अंग समर सम्राट उतरना है
कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है ,

घिनौने मनसूबे कर तबाह बैरी को देना असह लताड़
इन चाण्डाल दुश्मनों को जड़ से देना है फ़ेंक उखाड़ ,

हम हैं अहिंसा के पुजारी,शान्ति के द्योतक देते सन्देश
तुम भिखारी मत निपटाओ भूख,बेकारी,करो कलेश ,

कौन सी भट्ठी रोज उगलती ऐसे आतंकी गुण्डे मवाली
कर दिया चैन हराम हमारा क्या दें ऐसी माँ को गाली ।

                                                      शैल सिंह



बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...