'' कोरोना पर कविता ''
कोरोना पर कविता हर ओर है पसरा सन्नाटा चहुँओर ख़ौफ़नाक है मंज़र मची तबाही शहर गली में इक वायरस ने घोंपा है ख़ंजर , कारागृह हो गया है घर क़ैदी भाँति क़ैद हुए सब घर में ग़ुम हुईं रौनक़ें बाज़ारों की फासले बना रह रहे सब डर में , विरक्ति सी हो रही चीजों से नीरस सा हो गया है मन इंसा इंसा के काम ना आता धरा रह जा रहा दौलत औ धन , ऐसा संक्रामण का रूप भयंकर हर व्यक्ति संदिग्ध सा लग रहा मानवों को लील रही महामारी श्मशान लाशों के ढेर से पट रहा , अलसाई सी सुबह लगे लगे तन्हा-तन्हा सी शाम सांसों की डोर है डरी-डरी अवरूद्ध पड़े जा रहे सब काम , छाई सर्वत्र उदासी ख़ामोशी भयावह सी लगती नीरवता कब काल आ भर ले आग़ोश में हर पल इस संशय में है कटता , देख दारुण सी व्यथा जगत की करुण क्रन्दन सुन कर्ण फटे ऐसी दहशत फैला रखी कोरोना कि अपने भी सम्पर्क से परे हटें , ऐसी आपदा विपदा में भी कोई किसी के काम ना आये असहा...