शुक्रवार, 24 मार्च 2023

ओ शेरा वाली माँ

तेरे शरण में आई माँ रिद्धि-सिद्धि दे-दे
भर-भर आँचल दे आशीष वंशवृद्धि कर दे
भर दे मेरा हृदय ज्ञान से ध्यान में चित्त रमा दे
मन्नत मांगने तेरी चौखट आई फूटे भाग्य जगा दे
सारे कष्टों,दुखों का करदे निवारण सुख दे-दे भरपूर
अभय वरदान दे अभय हस्त से अभिलाषाएं कर दे पूर ।

कर दे निरोगी काया जग में दे दे जीत
ईर्ष्या,द्वेष मिटा दे माँ कुटुम्ब में भर दे प्रीत
भर दे उर में भक्ति सुख,शान्ति दे दे अपरम्पार 
सृष्टि का आधार तूंही माँ जग की तूंहीं सृजनहार
मान सम्मान और समृद्धि दे दे कर सबका कल्याण
तेरे चरण में शीश नवाऊं माँ दे दे पावन चरणों में स्थान ।

तूं सबकी दुखहर्ता माँ तूं ही पालनहार 
सजा रहे दरबार तेरा तुम रक्षा की अवतार 
आई द्वार तेरे फैलाये झोली कर दे पूरे अरमान 
मेरी आस्था,विश्वास को दे दे बल मांगूं ये वरदान 
लगे सुहावन,मनभावन तेरा रूप ओ शेरा वाली माँ
तेरे नौ रूपों की करूँ उपासना सारे बिगड़े बना दे काम ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 




मैं और अहंकार पर कविता

जैसे धुएं के आवरण में अग्नि का गोला छुपा होता है
वैसे ही प्रत्येक अनुष्ठान तेरा अहंकार में घिरा होता है ।

बचपन कितना सुन्दर निश्चिंत था फिक्र नहीं था कोई 
असमंजस,शर्म की बात ना थी अहंकार नहीं था कोई 
खुश होने पर हँस लेते दु:ख में बिलख-बिलख रो लेते
डांट,फटकार के तुरन्त बाद माँ के गले लिपट सो लेते ।

जब से पग धरे बाहर 'मैं' रूपी विचित्र हवा में बह गये
सम्पूर्ण व्यक्तित्व हो गया बेपटरी संस्कार सब ढह गये 
'मैं" रूपी हवा से पिंड छुड़ा ज्ञान भंडार के द्वार खुलेंगे 
तत्पश्चात कड़वाहट भरे रिश्तों में सुमधुर सौहार्द घुलेंगे ।

मैं ज्ञानी मैं समर्थवान भ्रम में जीवन व्यर्थ बीत जायेगा
कर लें अहं विसर्जित उर भव्य-दिव्य धाम बन जायेगा 
मैं भाव से मुक्त हो तुम परिपूर्णता का आनंद उठाओगे
वरना होगी प्रगति बाधित जीवन भर रो-रो पछताओगे ।

रिश्ते,बुद्धि,शक्ति,सम्पत्ति के,बावजूद विफल क्यों होते
करती ना 'मैं' की विडंबना भ्रमित हर कार्य सफल होते 
आध्यात्मिक जीवन भी प्रभावित 'मैं' के चक्रवात करेंगे
जीवन कर लो अहं के बंधन से मुक्त भगवन आ मिलेंगे ।


सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

मंगलवार, 21 मार्च 2023

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे
निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं
खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा
खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ।

तेरे दीदार को दिल तरसता मेरा
तेरे इन्तज़ार में कैसे दिल तड़पता मेरा
क्या जानो पगले दीवाने दिल का हाल तुम 
कि मेरा होकर भी तेरे लिए दिल धड़कता मेरा ।

ईश्क़ में जख़्म तूने मुझे जो दिया
उसे अंजुमन में मैंने भी आम कर दिया
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
टूटे ख़्वाबों की विरासत भी तेरे नाम कर दिया ।

जाने कैसे रिश्ते में दिल बंध गया
भूला धड़कना पर भूला नहीं नाम तेरा
मिले तो सफर में बहुत लोग मुझको मगर
तड़प,बेचैनी,उलझन में बस तूं तेरी याद चितेरा ।

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार 
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार 
ख़यालों में तेरे हुई बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

बुरा न मानो होली है रंग डाल

उड़ा रंग-बिरंगा अबीर गुलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

अलमस्त रंगरसिया पाहुना ने
प्रेमरस बरसा उर के अँगना में
कर दिया काला गुलाबी गाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

रंग दिया मुझे संवरिया ने ऐसे
सब इसी रंग में रंगने को तरसें
देख के गुलज़ार दिल का हाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

पी भंग घर-घर हुड़दंग मचाते
हुरियारे हर रंग अंग पे लगाते
झूम बजाते ढोल,मंजीरे झाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

सब नाचते गाते मस्त उमंग में
जोगीरा सर रर कहते तरंग में 
बुरा न मानो होली है रंग डाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

मन घोले केसर फगुनी बयार
मन से मिलाये मन ये त्योहार 
मलाल मिटा के करदे निहाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

है सबके लिए मंगलकामनाएँ 
हिल-मिल प्यार से पर्व मनाएँ 
रहे ना कोई भी मन में मलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

रविवार, 5 मार्च 2023

फागुन और वसन्त --कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली

" कपोल गुलाबी करवा गोरी हुई और छबीली "

मन के धुलें मलाल,अबीर गुलाल से प्यार में
मुबारक सबको होली,भींगें रंगों के फुहार में ।

आया फाल्गुन का महीना बहे फगुनी बयार 
साँसों में घुला चंदन मौसम हो गया गुलज़ार 
दिल हुआ बावरा मिश्री घोले प्राणों में पूरवा 
मधुऋतु का उल्लास लगे खिली-खिली दुर्वा ।

कुसुमित हो गईं कलियां महक उठा उपवन 
रूनझुन बाजी पायल पाँवों में उठा थिरकन 
पत्रविहीन टहनियों पर फूटी फिर से कोंपल
बरस वसंती वर्षा भींगा गई धरा का आँचल ।

हुरियारे हुड़दंग मचाकर पनघट चौपालों पर
थिरकें गागा फगुआ,ढोल,मृदंग के थापों पर
यौवन से गदराये वृक्ष,मंजर सुगंध बिखराया
शोख़ हुईं कलियों पर भ्रमरा उन्मत्त मंडराया ।

कुंकुम,केसर सजा थाल,ऋतुराज पाहुन का
पपीहे,कोयल करें चहक सत्कार फागुन का
इन्द्रधनुषी हुआ अनन्त,छटा बिखरी रंगों की 
झूमकर आई होली,चूनर भींगो गई अंगों की ।

प्रकृति की छवि न्यारी साफ-स्वच्छ आकाश
करें विहार विहंग व्योम में उर में भर उल्लास 
प्रकृति कर आबन्ध फागुन से,दी ढेरों सौगात 
सुर्ख रंगो में चरम पे यौवन टहकें टेसू पलाश ।

बौराया हर नटखट मन,मस्ती भरे त्यौहार में
बदला मिज़ाज बूढ़वों का होली के ख़ुमार में
कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली
कवियों की कविताएं भी करने लगीं ठिठोली ।

दुर्वा--दूब
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

किस्मत की लाना कांवर 

वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन

व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण पर
तुम बिन चादर कैसे, प्रकृति ओढ़े तन पर 
दिग-दिगन्त बिखरा दो सौरभ,निकुंज करें अभिनंदन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

चमकूं कैसे भला बताओ,इस निस्सीम गगन में
सुन्दर,स्वप्न सजेंगे कब,बेबस शिथिल नयन में
अलि मधुपान करें कैसे,मस्त पराग के कण का
कब आगाज करोगे,विमल बहार के क्षण का 
ठसक से आ सिंगार करो,सूना कितना नन्दन वन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

कनक रश्मियां मचल रहीं,कोना-कोना चमकाने को
सौरभ को देतीं नेह निमंत्रण,महक से जग महकाने को
मेहमान वसन्ती परदेसी,कब पतझड़ संग तेरी भांवर
सहवास करूं पंखुड़ियों संग,किस्मत की लाना कांवर 
तपता तन ले मृदु अंगड़ाई,सहर्ष दे जाओ नवजीवन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

लता कुञ्ज की बदहाली,कब निखरेगी काया
कब हेमन्त की मंजुल,मोहक,पावन बरसेगी माया
वातावरण,फ़िज़ा में कैसे मदमस्त होंगी रंगरलियां
तपते विराने वन में गुम हैं सतरंगी लड़ियां
लहराता देखूँ नूर तुम्हारा,दो ना अनूठा दरपन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन।

अलमस्त चहकने को व्याकुल अधीर खग,मृग हैं
पद-रज चूमें कब तेरा,बावरे से पागल दृग हैं
चाह क्षितिज में उर्वसी सी मैं मादक इतराऊं
नव उमंग से मस्त कड़ी,मैं मल्हार की गाऊं
मधुमासी परिधान पहन,करना कलियों का आलिंगन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

तरस रही कबसे विलास को,पुरवा की पटरानी
जैसे गांव की अल्हड़ गोरी,पनघट से भरती पानी
पीहर से सौगात लिये,चुनरी सतरंगी मनभावन 
छमक-छमक तुम आना,अलबेले पाहुन आँगन
पतझड़ की सूनी गलियों में सुन कोकिल क्रन्दन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 












सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

पतझड़ और वसंत ऋतु

पतझड़ और वसंत ऋतु


झर गये पात सब,हुईं ठूंठ डालियाँ
उजड़े नीड़ पंछियों के हुईं सूनी टहनियाँ  
मुहब्बत ख़िज़ाँ को हो गई सनकी हवाओं से
तो कर बैठा दग़ाबाज़ी ख़िज़ाँ गुमां में बहारों से,

निर्वस्त्र हुए शाख़ उद्दंड हवा के झोंकों से 
विरान हुए सारे बाग बिन खगों के क़स्बों के 
धन्य केलि तेरी कुदरत मनमौजी अठखेलियाँ
कभी सर्द हवाएँ कभी गर्म हवाओं की शोखियाँ,

दृश्य होगा मनोहारी द्वारे आयेंगे ऋतुराज
स्वागत में भू पर पीले,भूरे सजायेंगे वृक्ष पात
पतझड़ ने किया अवशोषण प्रत्येक पदार्थ का
होगा सब्ज़ा का संचार रूत आयेगा मधुमास का,

फिर से होगा कायाकल्प खिलेंगे बहार में
झरे पत्ते ख़िज़ाँ में नई कोंपलों के इन्तज़ार में
उन्मत्त हवा के रूख में जो दरख़्त थे सहक गये
पा सौग़ात सजल नैनों से मधुमास के महक गये,

कलियों ने खोला घूँघट मंडराने लगे भृंग
मधुमक्खियों,तितलियों के उड़ने लगे झुण्ड 
लहलहा उठी सरसों छा गई हरियाली चहुँओर
कोकिल ने छेड़ी मधुर तान लद गये आम्रों पे बौर ।

सब्ज़ा—-हरियाली  , 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 16 जनवरी 2023

हम बस यही अब चाहते हैं

हम बस यही अब चाहते हैं


सिकुड़कर अब सुरक्षा के कवच में
सारी ज़िन्दगी हम नहीं रहना चाहते
नजरिये सोच फ़ितरत में सभी के
अबसे बदलाव हैं हम देखना चाहते ।

कड़ा भाई का ना हो हमपर पहरा 
परिजन सभी के चिंतामुक्त हों
ना पति बच्चों को हो फ़िकर कोई
अकेले हों कहीं भी पर भयमुक्त हों ।

ना किसी अपराध का हो डर कहीं
ना अश्लीलता,भद्दगी का घर कहीं
दिन हो या रात हो या गली रिक्त हो
नुक्कड़,राह निर्भय,निडर,उन्मुक्त हो ।

ना हो हावी किसी पर असभ्यता
लोक लाज हो,हो हया में मर्यादिता 
दिखे हर मर्द की आँखों में निपट
निज माँ,बहन,बेटियों सी आदर्शिता 

ना दरिंदों,दनुज की ग्रास बनें बेटियां
ना निर्मम दहेज की बलि चढ़ें बेटियां
ना कहीं दुष्कर्म,पाप का हो जलजला
ऐसा अमन हो देश में सबका हो भला ।

ना आतंक,जिहाद का हो डर,भय कहीं
सफ़र बेफिक्र हो दुर्गम भले हो पथ कहीं
असुरक्षा के भाव से ना हो भयभीत कोई 
साथ किसी मज़हब का हो मनमीत कोई ।









कुछ शेर

                   कुछ शेर 


1--
मेरे सुकून भरे लमहों में क्यों आते हैं ख़याल तेरे 
मेरी सोई हुई तड़प को क्यों जगा जाते हैं याद तेरे
जैसे सारी रात परेशाँ रहती मैं,रहतीं पलकें बोझल 
वैसे तेरे भी ख़्वाबों में शब भर करें तफ़रीह याद मेरे ।
2--
हर रात ख़्वाबों में आते हों क्यों,बेहिसाब सताते हो क्यों 
सताने का तरीक़ा भी लाजवाब,सामने नहीं आते हो क्यों 
जागती तो दिखाई देते नहीं,सोने में दीदार कराते हो क्यों 
तेरे शौक़ भी अजीब हैं यार,जगाकर याद दिलाते हो क्यों ।
3--
जिन अल्फाज़ों में पिरोई थी मैंने सिसकियाँ मेरी
सबने लफ्ज़ों के मर्म को समझा बस शायरी मेरी
कोई भी ना समझा अश्क़ों में भींगे हुए मेरे दर्द को 
खोल रख दी लिखी काजल से ज़िन्दगी डायरी मेरी ।
4---
ग़र चल ना सको साथ मेरे तुम ज़िन्दगी भर
तो दे देना सारी ज़िन्दगी तूं अपनी मुझे उम्र भर
न कभी याद आओ तुम मुझे ना आऊँ याद मैं तुझे 
चाहें टूट कर इस तरह कि हो जायें पागल इस क़दर ।
5--
बेखटके ना आया करो यादों मेरी दहलीज़ पर
तुझे कब का लटका चुकी हूँ  मैं तो सलीब पर 
कुछ हसीन लमहों को मान लूँगी वो ख़्वाब था
ज़िंदगी को छोड़ दिया हमने उसके नसीब पर 
6--
दर्द छुपाते,छुपाते मैंने मुस्कुराना सीख लिया 
चुप रहते-रहते चुप से गुनगुनाना सीख लिया
खलती नहीं है अब तन्हाई,क्यूँकि तन्हाई का
तन्हा सफर तय करना तन्हा मैंने सीख लिया
7--
उनसे नज़र क्या मिली आँखें हुईं चार 
होंठ बुदबुदाये भी नहीं और हो गया प्यार 
बड़ी जल्द ब्रेकअप भी ताज़्जुब है यार
इतना जल्द तो चढ़ता उतरता नहीं बुखार ।
8--
रोज घूमते हम साथ-साथ हाथों में डाले हाथ
मगर नहीं हुआ कभी असलियत का आभास 
छुपाती रही मेकअप के पर्त में वो मुहासों के गढ्ढे 
शादी के बाद खुली पोल तो देख हो गया बदहवास ।
9--
मैंने पर्दा तो किया था उनसे मगर
पर्दे के भीतर से थी बस उनपे नज़र
उनको भी हो गई जाने कैसे खबर
ऐसा हुआ वाकया बन गये हमसफ़र ।
10--
जैसे ख़ुद को तपा चमकता सूर्य क्षितिज पर
वैसे हम भी संघर्षों की तपिश में तपें क्षिति पर
मुश्किलें भी हार जायेंगी जो राह रोके खड़ी थीं
खबर बन जायेगी स्याही अख़बारों की भीत पर ।
11--                         
मेरी क़ामयाबी के पीछे का संघर्ष देखा होता
मेरे पांवों के तलवों का खूनी फ़र्श देखा होता
बहुतों बार बिखरी साज़िशों का शिकार हो मैं
कैसी चुनौतियों से लड़ मिला अर्श देखा होता ।
12--
पहले ही तुम अपने इरादे बता दिये होते 
साथ निभाने के झूठे वादे ना किये होते
जरा भी अन्दाज़ा होता ऐसे भुला दोगे तुम 
तो इन्तज़ार में तेरे इस क़दर ना टूटे होते ।

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी

बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी

जबसे ख़्वाब तेरा सजाने लगी हूँ
नाम का तेरे काजल लगाने लगी हूँ
लोग कहते बड़ी खूबसूरत हैं आँखें मेरी
चिलमन और भी अदा से उठाने गिराने लगी हूँ ।

जबसे अलकें गिराने लगी माथ पर
इठलाती बलखाती चलने लगी राह पर
लोग कहते बड़ी शोख़ है नज़ाकत मेरी
कटि नागन सी और भी मटकाने लगी मार्ग पर ।

जबसे जिक्र पर तेरे मुस्कराने लगी हूँ
हाल दिल का निग़ाहों से बताने लगी हूँ 
लोग कहते बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी
खिलखिला और भी बिजलियाँ गिराने लगी हूँ ।

जबसे जाम पी है नशीली आँखों का
गुदगुदाता रहता है पल चाँदनी रातों का 
लोग कहते बड़ी नाज़ों सी है नफ़ासत मेरी
ढाती और भी क़यामत हूँ होता असर बातों का ।

शैल सिंह 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

शनिवार, 7 जनवरी 2023

कितनी शान से इतराता है तूं

ऐ चाँद उतर आ जरा जमीं पर 
ये दुनिया तुझको भी नहीं बख़्शेगी 
ग़र हटा दो मुख से घूँघट बदली का
देख नज़ारा दुनिया यूँ ही सहकेगी ,

कभी बन ईद का चाँद ठसक से
कितनी शान से इतराता है तूं
कभी सुहागिनों के करवाचौथ का 
बन चाँद छुप मनुहार करवाता है तूं

चाँद सा मुखड़ा से नवाजते तुझे लोग
छतों की मुंडेरों से निहारते तुझे लोग
जब लगता तुम पर ग्रहण ऐ चाँद 
क्यों इसी चाँद से आँख भी चुराते लोग  

कभी तुम ग़ज़लों का सरताज बन
महफ़िलों को कर देते हो गुलज़ार 
कभी शेरो,शायरी,नज़्म में सज तुम
सूने बज़्म को भी कर देते हो आबाद 

कभी तुम चौदहवीं का चाँद बन
कहलाते हो बड़े ही हो लाज़वाब 
कभी तुम तनहा बादलों के पीछे
छुप-छुपकर कर देते हो नाशाद

कभी ईश्क़ की दौलत बन तुम
सज जाते हो आँखों में बन ख़्वाब 
कभी जेहन में,कुरेदकर जख़्मों को,
दोस्तों का अक़्स उतार देते हो जनाब

कभी उपमानों की कतार का
बन जाते हो चन्दा सा उजियार 
कभी उतरकर समंदर,दरिया में 
सुरमई चाँद बन जाते हो यार

किसी के होते पलकों के चाँद तुम 
किसी के इन्तज़ार के महबूब तुम 
किसी के हमसफ़र होते तुम चाँद 
किसी की उपमा के होते चार चाँद

तुझसे होती खूबसूरत शाम भी चाँद 
तेरी रोशनी में छलकते जाम भी चाँद 
कहर ढाते हो ईश्क़, हुस्न की बदा पे
इसीलिए करते हो रस्क अपनी अदा पे ।

शैल सिंह 
सर्वाधिकार सुरक्षित 


रविवार, 1 जनवरी 2023

नव वर्ष पर कविता " समरसता की गागर छलके "

समरसता की गागर छलके

नव वर्ष लाये ऐसा उपहार 
हम सबके सपने हों साकार 
खुशियों की दे अनमोल सौगात 
कर दे राहों में फूलों की बरसात ,

महकी हुई मधुमासी हवाएं हों
सहकी हुई फिजाएं हों
परिन्दे चहकें बगिया गमके 
उल्लसित सभी दिशाएं हो ,

आत्मीयता से भरा हो मन 
सुखमय हो हर घर उपवन 
रिश्तों में हो मधुर मिठास 
नव वर्ष में हो अतिरिक्त खास ,

सर्वत्र उत्कर्ष,उल्लास,हर्ष हो 
ऐसा हम सभी का नया वर्ष हो
मर्यादा का कभी ना हो उलंघन 
हम सबके भावों में हो समर्पण ,

बीते वर्ष की खटास,वैमनस्यता
भूलें अनबन,उदासी,असफलता
लक्ष्यों को साकार करने हेतु 
करें संघर्ष हम मिले सफलता ,

ऊँच-नीच,भेदभाव मिटायें 
मन में कोमलता का भाव जगायें
नव वर्ष में नये कार्य सम्पन्न हों
नहीं कोई भूखा,गरीब विपन्न हो 

कोशिशों,हौसलों के पंख लगाकर
अपने अरमानों के उड़ान को,
उतार लाएं मेहनत,श्रम से हम
फलक से जमीं पर आसमान को ,

अतीत की अच्छी स्मृतियों से 
वर्तमान को बनायें सुन्दर और
समरसता की गागर छलके 
आये वर्ष भर अनेक अवसर और ,

दुख,दर्द,मुसीबत,बिमारी हेतु
करें प्रार्थना जड़ से हो नदारद 
सन दो हजार तेईस सभी को 
तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारक ।

शैल सिंह
सर्वाधिकार सुरक्षित 



ओ शेरा वाली माँ

तेरे शरण में आई माँ रिद्धि-सिद्धि दे-दे भर-भर आँचल दे आशीष वंशवृद्धि कर दे भर दे मेरा हृदय ज्ञान से ध्यान में चित्त रमा दे मन्नत मांगने तेरी...