गुरुवार, 14 सितंबर 2023

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे
ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे 
ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से
कद अंबर का झुका दिया मैंने हौसलों के आगे ।

प्रयास दोहराने में हो लीं साहस विफलतायें भी   
विस्तृत भरोसों ने खींचीं कल्पनाओं की रंगोली
असम्भव सी मिली जागीर जो है आज हाथों में
बन्द अप्रत्याशित प्रतिफल से निंदकों की बोली ।

कंटीली झाड़ियों,वीहड़ रास्तों पे चलकर अथक
बाधाओं को पराजित कर जीता जड़कर शतक
खड़ी तूफां से लड़कर साहिल पे योद्वा की तरह
ग़र लहरें करतीं अस्थिर कैसे पाते डरकर सदफ़ ।

पड़ाव ज़िंदगी में आया कितना उतार,चढ़ाव का 
खा-खा कर ठोकरें भी हम नायाब हीरा बन गये
बहुत लोगों को परखी ज़िंदगी दे देकर इम्तिहान
लोग समझे दौर खत्म मेरा देखो माहिरा बन गये ।

सदफ़--मोती ,  माहिरा--प्रतिभाशाली 
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

पन्द्रस अगस्त पर--

पन्द्रस अगस्त पर--
आज का दिन हम भारत वासियों का ऐतिहासिक दिन है
दो सौ वर्षों के रण से मिले स्वतंत्रता का साहसिक दिन है
ये शुभ दिन वतन की आजादी का जश्न मनाने का दिन है
लाखों कुर्बानियों,बलिदानियों को स्मरण करने का दिन है
रक़्त बहाने वाले क्रान्तिकारियों को याद करने का दिन है 
आज आजादी का अमृत महोत्सव देश मनाने का दिन है
स्वाधीनता समर में शहीदों को संस्मरण कराने का दिन है 
आज का दिन देश के संघर्ष को देश को दर्शाने का दिन है ।
जय हिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम्

शैल सिंह

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

भजन,— दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

        भजन


रटते-रटते नाम तेरा  बीत गये दिन रैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

दृग के दीप जलाये बैठी हूँ तेरे दर पर 
रोम-रोम में तुम ही बसे हो मेरे गिरिधर 
सुध-बुध खोई छवि उर में बसा तिहारा 
विरह में बावरी देह हुई  है सूख छुहारा 
पल-पल तेरी राह निहारूं जी है कुचैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

यमुना तट वृंदावन गोकुल की गलियाँ 
गऊओं के गण कदम के तरू की छैंयाँ 
कितना तड़पाओगे बोलो बंशी बजैया 
गिरि कंदरा, वन-वन ढूंढा तुझे कन्हैया 
एक झलक दिखला दो आँखें हैं बेचैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

चितचोर साँवरे की वो तिरछी चितवन 
कैसे बिसराऊँ बसे जो मन के मधुबन 
बजा के बाँसुरी रिझा के गीत सुना के 
छोड़े सखा किस हाल में प्रीत लगा के 
नहीं निभाये वादा कहकर गये जो बैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

उधो जा कहो संदेशा नन्दलला से मेरी 
विरह तपस में झुलस रही है राधा तेरी 
कह गये एक महिना बीत गये छै मास 
कब आयेंगे कान्हा पूजेंगे मन के आस 
प्रेम दीवानी बना गये कर के इतने सैन 
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।

कुचैन —बेचैन,  गण--समूह,     
बैन—वचन,   सैन---ईशारा, 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

सूखे सावन पर कविता‐---

बेरहम काली-काली घटा घेर-घेर घनघोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

जैसे आषाढ़ मास बीत  गया सूखा-सूखा 
वैसे ना बीत जाये सावन भी रूखा-रूखा 
पपीहा गुहार करे कुहुकिनी कातर पुकारे 
धरा मनुहार करे फलक मोर दादुर निहारे 
उमड़-घुमड़ तड़तड़ाती दामिनी जोर-जोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

क्यूँ बादल की चादर ओढ़े बैठी चितचोर 
तप्त है आकुल धरा व्याकुल हैं जीव ढोर 
सूने-सूने खेत क्यारी सूनी पगडण्डी खोर 
बरसो झमाझम घटा मन कर दो सराबोर 
कहीं कहीं मूसलाधार बरसती तूं मुँहजोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

किसान टकटकी लगाए निहारे आसमान 
प्रियतम का पथ निरख है प्रेयसी परेशान 
कैसा मनभावन सावन जग लगे सुनसान 
बेरस वृष्टि के व्यवहार से झुलसे अरमान 
चमक-चमक ज़ुल्म करे बिजुरी झकझोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

कहें किससे मन की बात पहाड़ लगे रात 
जी जलाये सावन और घटा की करामात 
सखियाँ अपने पिया संग विहँस करें बात 
सताये पी की याद लगे सेज नागिन भाँत 
बदलो मिज़ाज करो नहीं अनीति बरजोर 
आँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 26 जुलाई 2023

आजा घर परदेशी करती निहोरा

आजा घर परदेशी करती निहोरा 

सावन  की कारी  बदरिया  पिया 
तेरी यादों का विष पी  नागिन हुई ।

नाचें मयूरी मोर पर फहरा-फहरा 
पिउ-पिउ बोले वन पापी पपिहरा 
कुहुके कोयलिया हूक उठे हियरा
दहकावे तन-वदन निरमोही बदरा 
सावन की टिसही सेजरिया पिया 
तेरी यादों का विष पी  नागिन हुई ।

सुध-बुध दिये सकल पिया बिसरा 
नैना से लोर  ढूरे बहि जाये कजरा 
झूला न कजरी सखिन संग लहरा
चिन्ता अंदेशा में काया गई पियरा
सावन की विरही  कजरिया पिया 
तेरी यादों का  विष पी नागिन हुई ।

बौरा बरसाये नभ झर-झर फुहरा 
सिहरे कलेजा भींजा जाये अंचरा 
भावे ना रूपसज्जा सिंगार गजरा 
आजा घर परदेशी  करती निहोरा 
सावन की कड़के बिजुरिया पिया 
तेरी यादों का  विष पी नागिन हुई ।

उड़ि-उड़ि बैइठे कागा छज्जे मुँड़ेरा 
चिट्ठी ना संदेशा दे शूल चुभे गहरा 
बाबा सुदिन टारि फेरि दिये कंहरा 
लागे ना नैहर में कंत बिना जियरा 
सावन की पिहके पिरितिया पिया 
तेरी यादों का  विष पी नागिन हुई ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 



गुरुवार, 13 जुलाई 2023

परिवार ही धन,दौलत—

परिवार ही धन,दौलत—


जहाँ एकता होती सुमति होती है जिस घर में 
वहीं देवी-देवताओं के होते वास देवालय तुल्य घर में 
जहाँ कई रिश्तों से मिलकर बनता है एक सुखी परिवार 
उसी घर की दहलीज़ पर ही होता सुखी जीवन का संसार ।

सभी के भाग्य में होता नहीं भरा-पूरा परिवार
जहाँ रिश्तों की होती कद्र जहाँ आपस में होता प्यार 
ममता,डांट,दुलार,फटकार क़िस्मत में सबके कहाँ होता 
परिवार वह शाख़ जिसके छांह में मिलता प्यार अपरम्पार ।

ये अनमोल रिश्ता बांध रखना प्रेम के धागे में
करना सबका स्वागत,सत्कार रह मर्यादा के दायरे में 
दादा-दादी,नाना-नानी वटवृक्ष सा,परिवार के गुलदस्ते हैं 
हो सौहार्द्र आपस में कटुक ना बात हो एक दूजे के बारे में ।

सुदृढ़ चारदीवारी है संयुक्त परिवार की माला
अपनेपन का उपवन भी प्रथम जीवन की पाठशाला 
परिवार के पावन बगिया में रहतीं वृन्दावनि भी हरी-भरी
परिवार बिन जीवन विरान,लगे अमृत भी ज़हर का प्याला ।

ननहर-घर,पीहर-ससुराल रिश्तों की ईमारत हैं
क्यूँ सम्बन्ध बिखर रहे भहराकर वक़्त की शरारत है
प्रेम,व्यवहार,क्षमा के ईंट गारों से मरम्मत करें दरारों की 
परिवार ही असली धन,दौलत ज़िन्दगी की यही वरासत है ।

वृन्दावनि‐-तुलसी, ननहर--ननिहाल 
सर्वाधिकार 
शैल सिंह

शनिवार, 8 जुलाई 2023

कभी तूती तेरी बोलती थी---

क्यों कलम निष्प्राण पड़ी तुम खोलो ना जिह्वा का द्वार 
घुमड़ रहा जो तेरे अन्तर्मन में कर दो व्यक्त सारा उद्गार 
भीतर जो तेरे छटपटाहट राष्ट्र,समाज और  जगत लिए 
इतनी अन्दर तेरे कलम है ताक़त उगल दो सारा अंगार ।

एक समय था कवियों की कलम से फूटती थी चिन्गारी 
क्रान्ति लिए शीघ्र उतर विद्रोह पर बन जाती थी कटारी 
ब़रछी,भाले,बाण,कृपाण कभी तेरे आगे शीश नवाते थे 
ज्ञान, बुद्धि,विवेक का दीप जला हर लेती थी अंधियारी ।

शासन तन्त्र का बखिया उधेड़ झुका लेती थी चरणों में
आवाज शोषितों की बन तलवार बन जाती थी वर्णो में
कहाँ गई कलम वह पैनी धार तेरी,सुस्त पड़ी बेबस सी
कभी इतिहास बदलने का दम रख गरजती थी हर्फ़ों में ।

नहीं तुझे सत्ता का भय सत्ताधीशों की चूल हिलाती थी
बेजुबान होते भी बेबस गरीबों की जुबान बन जाती थी
थी विरह,वेदना की सखी तूं दुख-दर्द की सहचरी भी तूं
कहाँ गई वरासत छोड़ जो उर के भाव समझ जाती थी । 

जब भी बग़ावत पर उतरती तेरे पीछे दुनिया डोलती थी 
हिल जाता था सिंहासन जब तूं निर्भीक मुँह खोलती थी 
उठो भरो हुंकार,प्रतिकार कर शोषितों का निनाद लिखो 
क्यों पड़ी नैराश्य तूं भीरू बन कभी तूती तेरी बोलती थी ।

वर्णों--शब्दों,  नैराश्य—निराश,  भीरू--डरपोक,  
निनाद--आवाज 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

बुधवार, 5 जुलाई 2023

ख़ामोश नहीं होना

ख़ामोश नहीं होना --

ख़ामोशी की वाणी से झनझना जातीं दीवारें 
ख़ामोशी और भी संगीन बेहतर लड़ लें प्यारे ।

नाराज भले हो जाना पर निःशब्द नहीं होना
चुप का वार असह्य बहुत,ख़ामोश नहीं होना 
कह सुन लेना पर ख़त्म ना करना वार्तालाप 
लड़ लेना, झगड़ लेना पर ख़ामोश नहीं होना ।

जरा सी ज़िन्दगी है तमाशा ना बने ज़िन्दगी
अन्दर का शोर बता देना ख़ामोश नहीं होना
ख़ामोशी की किताब में दास्तान छुपाते क्यों
आँखें बांच लेतीं हर भाव,ख़ामोश नहीं होना ।

कहीं ख़ामोशी के सन्नाटे में दम ना घुट जाए
शब्द भी लब का पता ऐसा ना हो भूल जाएं
ओढ़ ख़ामोशी का लबादा कह जाते हो सब 
कहीं ख़ामोशी से रिश्तों में विष ना घुल जाएं ।

घातक होती है ख़ामोशी शोर मचाती अन्दर 
ख़ामोशी का रहस्य बता देती जिह्वा अक्सर 
लड़ते भीतर के शोर से निर्वाक् रह बाहर से 
तूफ़ां से पूर्व की ख़ामोशी बरपा जाती कहर ।

निर्वाक्-- मौन
शैल सिंह 

 

गुरुवार, 29 जून 2023

भर उर में भगवा प्रेम

सिंहनाद कर गरज उठी हैं  आज म्यान से तलवारें
जागो हिन्दुस्तानी जागो देश की माँ,बहनें ललकारें
कहीं अनर्थ ना हो जाये अध्याय अहिंसा का पढ़ते
निज स्वार्थ लिए होश हवास खो जयचंद सा बनते ,

धर्म संस्कृत के रक्षार्थ यदि प्राण विसर्जित हो जाए 
ग़र रामराज्य,हिन्दुत्व लिए जीवन समर्पित हो जाए 
चिंता नहीं करना तोड़ मर्यादा की पांव बंधी जंजीरें
चीरने को शत्रु का सीना तुम्हें उठानी होंगी शमशीरें ,

गूंजे जय श्रीराम का जयकारा भगवा ध्वज लहराये
दिखा हिन्दुत्व की ताकत ब्रम्हांड का सर झुक जाये
सूर्य भी भगवा के लिबास में अपना प्रभुत्व दिखाता 
भगवा रंग में सांध्य की लाली मन को बहुत है भाता ,

हिन्दुस्तान की धरती हिन्दुत्व का परचम लहराना है
घाती गद्दारों को धूल चटा रामराज्य फिर से लाना है
मुगलों,अंग्रेजों का इतिहास बदल भूगोल बदलना है
भगवामय कर भारत,हिंदुत्व का कोहराम मचाना है ,

मिट गये मिटाने वाले नहीं मिटा सनातन धर्म अमर
ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र भले हैं हिन्दुस्तानी हैं मगर
मंदिर,टीका,जनेऊ,कलावा हिन्दुत्व की पहचान रहे
नहीं किसी छलावे में बनना स्वार्थी कायर ध्यान रहे ,

कट्टर हिन्दू बनकर फैलानी तुम्हें शेरों जैसी दहशत
भर उर में भगवा प्रेम,मिटानी तुम्हें आपसी नफ़रत
आतंक,जिहाद के संत्रास से उबाल लहू में आया है
हिन्दुओं में एकता लाने को बागी मशाल जलाया है ,

बनो शेरनियों भारत की काली,दुर्गा झाँसी की रानी 
लव-जिहाद की बलि चढ़ो ना करो कुछ कारस्तानी 
कुछ छुपे संपोले आस्तीन में नित पैंतरे बदल रहे हैं
भीतर-भीतर खेल खेल रहे तेरे देश को कुतर रहे हैं ,

जो सियासी कलमुहें आकंठ नशे में धुत्त हरे रंग के  
उन्हें औकात दिखानी होगी उनका बेड़ा गर्क करके
भाँप राष्ट्रद्रोहियों की शातिर चालें जागा हिन्दुस्तान 
सभी राष्ट्रभक्त हुए रामभक्त गूंजा नारा जय श्रीराम । 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

क्यूँ छेड़े मन का इकतारा

कितने दर्द से गुजरे होंगे शब्द  जज़्बात उकेरने से पहले 
कागज भी कितना तड़पे होंगे मनोभाव उमड़ने से पहले 
अनुबंध किये तुम साथ निभाने का क्यूँ इरादे बदल दिए 
मेरे साये से भी कतराने लगे तुम सैर के रास्ते बदल दिए ।

पास मेरे ऐसे अल्फ़ाज़ नहीं जिसमें व्यक्त करूं एहसास 
दर्द के पास भी जुबां नहीं जो कर सके अन्तस की बात 
कैसे जख़्म दिखाऊँ दहर को जो दिखते नहीं किसी को 
भीतर-भीतर होता उर गीला किससे करूँ बयां जज़्बात ।

कभी ना थकतीं बोझल हो पलकें पर थक जाती है रात 
तन्हाई में तसल्ली भी अक्सर तज देती तन्हाई का साथ 
मेरे अवसाद का कोई करे उपचार या कर दे दवा ईज़ाद 
कोई ना पूछता ख़ैरियत ग़म में, छोड़ देते अपने भी हाथ ।

जैसे शाख़ से सुमन जुदा हो कुम्हलाकर हो जाता तनहा 
वैसे ही थम गया है दिल का स्पंदन याद कर बीता लम्हा 
जब नहीं थे तुम मेरे लकीरों में क्यूँ छेड़े मन का इकतारा 
क्यों ख़ुद को मुझमें छोड़ा सजा आँखो में ख़्वाब सुनहरा ।

दर्द ने ली जब-जब अंगड़ाई  मैंने अश्क़ों से सहला लिया 
टूटे दिल की किरिचें जोड़ रफ़्ता-रफ़्ता दिल बहला लिया 
बेशुमार नज़राना दर्दे-दिल का रख दी दिल के तलघर में 
भर गया हृदय का आगार शायरी का शौक़ अपना लिया ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

शुक्रवार, 9 जून 2023

गर्मी पर कविता

अंबर उगल रहा है आग झुलस रही है धरती
सुलग रहे हैं सूरजदेव तपिश से देह दहकती ,

चिलचिलाती धूप में लपटें लू की गरम-गरम 
सूर्ख हो भानु तेवर दिखलाते होते नहीं नरम ,

सिसकें ताल,तड़ाग कण-कण तपे जगत का 
देख विरानी विकल हैं पनिहारिनें पनघट का ,

तरू के तन पे कड़ी धूप ने पीत वस्त्र पेन्हाये
टप-टप चूवे पसीना देह से सर से पांव नहाये ,

ना कटे पहाड़ सा दिन,ना ढले है जल्दी साँझ 
ना कहीं हवा बतास,घर उगले भट्ठी सी आँच ,

जाने क्यों ऐंठे मेघराज जी कुपित हुए बैठे हैं
सरसाते नहीं धरा की छाती खफ़ा हुए ऐसे हैं ,

एसी,कूलर,पंखा भी राहत देने में मजबूर हुए 
तन को तरावट देने वाले मंहगे हैं तरबूज़ हुए ,
 
तापमान बढ़ता जाता  मानसून कब आयेगा
बंजर भूमि के वक्षस्थल अंकुर कब उगायेगा ,

ऐसा दुष्कर भ्रमण हुआ छुट्टियाँ बीतीं बेकार
गर्मी डाली विघ्न अवकाश में घर बैठे लाचार ,

कुदरत के सौन्दर्य से,जो हम खिलवाड़ किये
बाग,विटप,वृक्ष काट,जंगल से छेड़छाड़ किये ,

प्रकृति दे रही उसका प्रतिफल मिज़ाज बदल  
तरसें गाछ के छांव को चलो करें आज पहल ,

फिर करें मिशन शुरू हम,नये पेड़ लगाने का
प्रकृति देगी अभयदान जगत को मुस्काने का ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 
 

रविवार, 30 अप्रैल 2023

दिखा दो जोश तरुणाई का

ऐ भारत के मेरे नौजवानों  ललकारो अपने  यौवन को 
बाधाओं,व्यवधानों  को काटो, संवारो  अपने लक्ष्यों को,   

भरो यौवन में साहस,संकल्प करो अद्भुत कुछ करने को
यौवन की आँधी  समाधान कर दे  दुर्लभ समस्याओं को ,

लक्ष्यहीन जीवन भी  क्या जीवन है सदा लक्ष्यनिष्ठ बनो
यौवन को गतिमान बना  युवाशक्ति जगा  सत्यनिष्ठ बनो ,

नहीं व्यर्थ गंवाओ जीवन अपना  त्याग दो विकृतियों को     
पहचानो अपनी क्षमता,उबारो दलदल से दुष्प्रवृत्तियों को ,

गम्भीर चुनौतियों से लड़ना सुखदेव,भगतसिंह बनना होगा
राष्ट्रहित लिये महावीर,गौतम सा युवाओं तुझे उभरना होगा ,

दिग्भ्रमित हो मत करो उल्लंघन समाज की मर्यादाओं को
सही मार्ग अपनाओ छोड़ो बेकार,विकृत निरंकुशताओं को ,

जलाकर नई क्रान्ति की ज्वाला  फिर से नया आगाज करो
जाति,धर्म में नहीं बंटना  देश लिए यह प्रण तुम आज करो ,

पहल करो एकता की मशाल से,नये भारत की अरूनाई का
राष्ट्र विकास के लिए एकजुट हो दिखा दो जोश तरुणाई का ,

धर्म,संस्कृत की अलख जगा,देश का जग में ऊँचा नाम करो 
वीर शिवाजी,राणा जैसा आतंक,अनाचार का प्रतिकार करो ,

बनाओ खुद को चट्टानों सा मजबूत भरो भुजाओं में ताकत 
ऐ भारत माँ के वीर पुत्रों दिखला दो वो दुनिया को नज़ाकत ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


शनिवार, 22 अप्रैल 2023

दो पाट हैं इक नदी के हम

दो पाट हैं इक नदी के हम

जगे तो भी आँखों में
सोये तो भी आँखों में
जर्रे-जर्रे में महफ़िल के   
तन्हाई की पनाहों में ,       

हँसी के फुहारों में       
रोये तो भी आहों में 
चलूँ तो परछाई बन     
संग-संग साथ सायों में ,   

नजर फेरूं जिधर भी
हर पल साथ रहते हो
मुझे तुम छोड़ दो तन्हा
क्यूँ वार्तालाप करते हो ,

मत आ आकर घिरो 
नयन की घटाओं में 
छुप-छुप कर ना बैठो
उर के बिहड़ सरायों में ,

खटकाओ ना सांकल मौन की
ना दो शान्ति पर दस्तक 
बना लूंगी आशियाँ अपना
यादों के उजड़े दयारों में ,

जो गुजरी है वो काफी है
अब ना कोई सौग़ात बाकी है
दो पाट हैं हम इक नदी के 
बस मुसाफिर हैं कगारों में

दर्द से तड़प से मोह हमें
अब तो हो गई है बेइंतहा
ज़िन्दगी के शेष पन्नों को
उड़ाना है मुझे बहारों में ।

शैल सिंह

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

पिरो दी हूँ एहसास दिल का अल्फ़ाज़ों में


हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए
तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए ।

ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा
तुझे दिल में नज़र में अपने बसा लूँगी मैं
माँगकर तुझको मन्नत में हमदम ख़ुदा से
नाम की तेरे मेंहदी हथेली में रचा लूँगी मैं ।

सजाऊँ दिल में अक़्स ग़ैर का आसां नहीं
गिरफ़्तार इस क़दर हूँ तेरी मोहब्बत में मैं
ऐसे गुजरा करो ना यूँ कतराकर बग़ल से 
समझती ख़ुद को रईस तेरी सोहबत में मैं ।

लगे बिन तुम्हारे जहाँ में कोई अपना नहीं 
रहे हाथों में तेरे हाथ मेरा,बस सपना यही
डूब मर जाना क़ुबूल तेरे ईश्क़ की नदी में 
मगर तुझसे बिछड़ कर जीना तमन्ना नहीं ।

जरा दे दो तसल्ली तुम अपना बनाने की
नामंजूर तेरे आगे सारी ख़ुशियाँ जहाँ की
पिरो दी हूँ दिल का एहसास अल्फ़ाज़ों में
करो दिल पे हुकूमत तुम मैं मना कहाँ की ।

अब तक हैं फ़ासले क्यों तेरे मेरे दरमियाँ 
क्या मुझमें कमी है कैसी मुझमें ख़ामियाँ
दिल के दर्पण में नक़्श तेरा जो संवारी हूँ
उसके आगे लगे मुझे फीकी सारी दुनिया ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

बेवफ़ा तेरी चालाकी भी कितनी हसीन थी---

बेवफ़ा तेरी चालाकी भी कितनी हसीन थी---

बड़ी चालबाज़ी से बेबसी का बहाना बनाकर 
ख़ुद से कर दिये बेगाना ईश्क़ में दीवाना बनाकर
इक बार मुड़कर देख लेते अश्क ग़र आँखों में बेवफ़ा
जाते ना छोड़ तन्हा मोहब्बत के शस्त्र का निशाना लगाकर ।

बीता दी सारी ज़िन्दगी तुझे अपना बनाने में
हो सकी ना और की ना होने दिया तेरा जमाने ने
जज़्ब करके अश्क़ आँखों में जबरदस्ती मुस्कुराती हूँ   
खुश हो ग़म दफ़न कर सीने में दुनिया के दस्तूर निभाती हूँ । 

महकी थी कभी ज़िन्दगी तेरे नाम से दिलवर
कैसे भूलूँ मुलाक़ातें,इंतजार में वो साँझ का पहर
दिल दरक उठा जो देखीं आँखें उस मुक़ाम का मंजर
नफ़रत सी हो गई उस ठौर से जहाँ मिला करते थे अक्सर ।

बेवफ़ा तेरी चालाकी भी कितनी हसीन थी
मेरे ही दिल में धोखेबाज़ था मैं उसके अधीन थी 
ऐसी हुई वर्षात दिल पर आशनाई के अमोघ शस्त्र से
आज तक विक्षिप्त हो भींज रही मैं अपराधबोध के अब्र से ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

ओ शेरा वाली माँ

तेरे शरण में आई माँ रिद्धि-सिद्धि दे-दे
भर-भर आँचल दे आशीष वंशवृद्धि कर दे
भर दे मेरा हृदय ज्ञान से ध्यान में चित्त रमा दे
मन्नत मांगने आई चौखट तेरी फूटे भाग्य जगा दे
सारे कष्टों,दुखों का करदे निवारण सुख दे-दे भरपूर
अभय हस्त से अभय वरदान दे अभिलाषाएं कर दे पूर ।

कर दे निरोगी काया जग में दे दे जीत
ईर्ष्या,द्वेष मिटा दे माँ कुटुम्ब में भर दे प्रीत
भर दे उर में भक्ति सुख,शान्ति दे दे अपरम्पार 
सृष्टि का आधार तूंही माँ जग की तूंहीं सृजनहार
मान सम्मान और समृद्धि दे दे कर सबका कल्याण
तेरे चरण में शीश नवाऊं माँ दे दे पावन चरणों में स्थान ।

तूं सबकी दुखहर्ता माँ तूं ही पालनहार 
सजा रहे दरबार तेरा तुम रक्षा की अवतार 
आई द्वार तेरे फैलाये झोली कर दे पूरे अरमान 
मेरी आस्था,विश्वास को दे दे बल मांगूं ये वरदान 
लगे सुहावन,मनभावन रूप तेरा ओ शेरा वाली माँ
तेरे नौ रूपों की करूँ उपासना बिगड़े बना दे सारे काम ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 




मैं और अहंकार पर कविता

जैसे धुएं के आवरण में अग्नि का गोला छुपा होता है
वैसे ही प्रत्येक अनुष्ठान तेरा अहंकार में घिरा होता है ।

बचपन कितना सुन्दर निश्चिंत था फिक्र नहीं था कोई 
असमंजस,शर्म की बात ना थी अहंकार नहीं था कोई 
खुश होने पर हँस लेते दु:ख में बिलख-बिलख रो लेते
डांट,फटकार के तुरन्त बाद माँ के गले लिपट सो लेते ।

जब से पग धरे बाहर 'मैं' रूपी विचित्र हवा में बह गये
सम्पूर्ण व्यक्तित्व हो गया बेपटरी संस्कार सब ढह गये 
'मैं" रूपी हवा से पिंड छुड़ा ज्ञान भंडार के द्वार खुलेंगे 
कड़वाहट भरे रिश्तों में तत्पश्चात सुमधुर सौहार्द घुलेंगे ।

मैं ज्ञानी मैं समर्थवान भ्रम में जीवन व्यर्थ बीत जायेगा
कर लें अहं विसर्जित,उर भव्य-दिव्य धाम बन जायेगा 
मैं भाव से मुक्त हो तुम परिपूर्णता का आनंद उठाओगे
वरना होगी प्रगति बाधित जीवन भर रो-रो पछताओगे ।

बुद्धि,शक्ति,सम्पत्ति,रिश्तों के,बावजूद विफल क्यों होते
करती ना 'मैं' की विडंबना भ्रमित हर कार्य सफल होते 
आध्यात्मिक जीवन भी प्रभावित 'मैं' के चक्रवात करेंगे
अहं के बंधन से कर लो जीवन मुक्त भगवन आ मिलेंगे ।


सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

मंगलवार, 21 मार्च 2023

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे
निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं
खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा
खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ।

तेरे दीदार को दिल तरसता मेरा
तेरे इन्तज़ार में कैसे दिल तड़पता मेरा
क्या जानो पगले दीवाने दिल का हाल तुम 
कि मेरा होकर भी तेरे लिए दिल धड़कता मेरा ।

ईश्क़ में जख़्म तूने मुझे जो दिया
उसे अंजुमन में मैंने भी आम कर दिया
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
टूटे ख़्वाबों की विरासत भी तेरे नाम कर दिया ।

जाने कैसे रिश्ते में दिल बंध गया
भूला धड़कना पर भूला नहीं नाम तेरा
मिले तो सफर में बहुत लोग मुझको मगर
तड़प,बेचैनी,उलझन में बस तूं तेरी याद चितेरा ।

तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार 
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार 
ख़यालों में तेरे हुई बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

बुरा न मानो होली है रंग डाल

उड़ा रंग-बिरंगा अबीर गुलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

अलमस्त रंगरसिया पाहुना ने
प्रेमरस बरसा उर के अँगना में
कर दिया काला गुलाबी गाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

रंग दिया मुझे संवरिया ने ऐसे
सब इसी रंग में रंगने को तरसें
देख के गुलज़ार दिल का हाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

पी भंग घर-घर हुड़दंग मचाते
हुरियारे हर रंग अंग पे लगाते
झूम बजाते ढोल,मंजीरे झाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

नाचते गाते सब मस्त उमंग में
जोगीरा सर रर कहते तरंग में 
बुरा न मानो होली है रंग डाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

मन घोले केसर फगुनी बयार
मन से मिलाये मन ये त्योहार 
मलाल मिटा के करदे निहाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

है सबके लिए मंगलकामनाएँ 
हिल-मिल प्यार से पर्व मनाएँ 
रहे ना कोई भी मन में मलाल
कोरी चुनरी मेरी कर दी लाल,

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

रविवार, 5 मार्च 2023

फागुन और वसन्त --कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली

" कपोल गुलाबी करवा गोरी हुई और छबीली "

मन के धुलें मलाल,अबीर गुलाल से प्यार में
मुबारक सबको होली,भींगें रंगों के फुहार में ।

आया फाल्गुन का महीना बहे फगुनी बयार 
साँसों में घुला चंदन मौसम हो गया गुलज़ार 
दिल हुआ बावरा मिश्री घोले प्राणों में पूरवा 
मधुऋतु का उल्लास लगे खिली-खिली दुर्वा ।

कुसुमित हो गईं कलियां महक उठा उपवन 
रूनझुन बाजी पायल पाँवों में उठा थिरकन 
पत्रविहीन टहनियों पर फूटी फिर से कोंपल
बरस वसंती वर्षा भींगा गई धरा का आँचल ।

हुरियारे हुड़दंग मचाकर पनघट चौपालों पर
थिरकें गागा फगुआ,ढोल,मृदंग के थापों पर
यौवन से गदराये वृक्ष,मंजर सुगंध बिखराया
शोख़ हुईं कलियों पर भ्रमरा उन्मत्त मंडराया ।

कुंकुम,केसर सजा थाल,ऋतुराज पाहुन का
पपीहे,कोयल करें चहक सत्कार फागुन का
इन्द्रधनुषी हुआ अनन्त,छटा बिखरी रंगों की 
झूमकर आई होली,चूनर भींगो गई अंगों की ।

प्रकृति की छवि न्यारी साफ-स्वच्छ आकाश
करें विहार विहंग व्योम में उर में भर उल्लास 
प्रकृति कर आबन्ध फागुन से,दी ढेरों सौगात 
सुर्ख रंगो में चरम पे यौवन टहकें टेसू पलाश ।

बौराया हर नटखट मन,मस्ती भरे त्यौहार में
बदला मिज़ाज बूढ़वों का होली के ख़ुमार में
कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली
कवियों की कविताएं भी करने लगीं ठिठोली ।

दुर्वा--दूब
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 


सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

किस्मत की लाना कांवर 

वासन्ती उपहार लिये कब,आओगे गांव हमारे मधुवन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन

व्यग्र शाख पर कोंपल,मुस्कान बिखेरें कैसे
बंजर मरू धरा का मन,हरा-भरा हो कैसे
कैसे आलोक बिखेरे,अंशुमाली कण-कण पर
तुम बिन चादर कैसे, प्रकृति ओढ़े तन पर 
दिग-दिगन्त बिखरा दो सौरभ,निकुंज करें अभिनंदन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

चमकूं कैसे भला बताओ,इस निस्सीम गगन में
सुन्दर,स्वप्न सजेंगे कब,बेबस शिथिल नयन में
अलि मधुपान करें कैसे,मस्त पराग के कण का
कब आगाज करोगे,विमल बहार के क्षण का 
ठसक से आ सिंगार करो,सूना कितना नन्दन वन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

कनक रश्मियां मचल रहीं,कोना-कोना चमकाने को
सौरभ को देतीं नेह निमंत्रण,महक से जग महकाने को
मेहमान वसन्ती परदेसी,कब पतझड़ संग तेरी भांवर
सहवास करूं पंखुड़ियों संग,किस्मत की लाना कांवर 
तपता तन ले मृदु अंगड़ाई,सहर्ष दे जाओ नवजीवन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

लता कुञ्ज की बदहाली,कब निखरेगी काया
कब हेमन्त की मंजुल,मोहक,पावन बरसेगी माया
वातावरण,फ़िज़ा में कैसे मदमस्त होंगी रंगरलियां
तपते विराने वन में गुम हैं सतरंगी लड़ियां
लहराता देखूँ नूर तुम्हारा,दो ना अनूठा दरपन
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन।

अलमस्त चहकने को व्याकुल अधीर खग,मृग हैं
पद-रज चूमें कब तेरा,बावरे से पागल दृग हैं
चाह क्षितिज में उर्वसी सी मैं मादक इतराऊं
नव उमंग से मस्त कड़ी,मैं मल्हार की गाऊं
मधुमासी परिधान पहन,करना कलियों का आलिंगन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

तरस रही कबसे विलास को,पुरवा की पटरानी
जैसे गांव की अल्हड़ गोरी,पनघट से भरती पानी
पीहर से सौगात लिये,चुनरी सतरंगी मनभावन 
छमक-छमक तुम आना,अलबेले पाहुन आँगन
पतझड़ की सूनी गलियों में सुन कोकिल क्रन्दन 
महकाने, हर्षाने जगती, आह्लादित करने वन, उपवन ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 












सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

पतझड़ और वसंत ऋतु

पतझड़ और वसंत ऋतु


झर गये पात सब,हुईं ठूंठ डालियाँ
उजड़े नीड़ पंछियों के हुईं सूनी टहनियाँ  
मुहब्बत ख़िज़ाँ को हो गई सनकी हवाओं से
तो कर बैठा दग़ाबाज़ी ख़िज़ाँ गुमां में बहारों से,

निर्वस्त्र हुए शाख़ उद्दंड हवा के झोंकों से 
विरान हुए सारे बाग बिन खगों के क़स्बों के 
धन्य केलि तेरी कुदरत मनमौजी अठखेलियाँ
कभी सर्द हवाएँ कभी गर्म हवाओं की शोखियाँ,

दृश्य होगा मनोहारी द्वारे आयेंगे ऋतुराज
स्वागत में भू पर पीले,भूरे सजायेंगे वृक्ष पात
पतझड़ ने किया अवशोषण प्रत्येक पदार्थ का
होगा सब्ज़ा का संचार रूत आयेगा मधुमास का,

फिर से होगा कायाकल्प खिलेंगे बहार में
झरे पत्ते ख़िज़ाँ में नई कोंपलों के इन्तज़ार में
उन्मत्त हवा के रूख में जो दरख़्त थे सहक गये
पा सौग़ात सजल नैनों से मधुमास के महक गये,

कलियों ने खोला घूँघट मंडराने लगे भृंग
मधुमक्खियों,तितलियों के उड़ने लगे झुण्ड 
लहलहा उठी सरसों छा गई हरियाली चहुँओर
कोकिल ने छेड़ी मधुर तान लद गये आम्रों पे बौर ।

सब्ज़ा—-हरियाली  , 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

ढल रही है ज़िन्दगी की उमर धीरे-धीरे

                                                
अब तलक उस लमहे को रोके खडी हूँ 
जिसे छोड़ा अधूरा था उसने जिस हाल में
कई अरसे गुजर गये आयेगा वो इन्तज़ार में
कशमकश में जीती रही ज़िन्दगी भरी बहार में ।

मिट ना जाएं कहीं उसके पग के निशां
किसी बटोही को उस पथ ना जाने दिया 
खुला रख छोड़ा है दरीचे का पट आज तक
इक दीदार लिए ही कभी पर्दा ना गिराने दिया
राह शिद्दत से आज भी निहारतीं आँखें उसी का
आस में किसी ग़ैर का नाम अधरों पर ना आने दिया ।

नींद भी उसी की तरह बेवफ़ा हो गई है
सपने पलकों पर बिछाकर दगा दे रही है
मुद्दत से खड़ी हूँ उसी मोड़ पे मैं इन्तज़ार में
मुझको मेरी ही मोहब्बत कैसी सजा दे रही है
कैसे भूल जाऊँ धड़कता दिल ख़यालों में उसके
लगे रूह उसकी मेरे साये से प्रकट हो सदा दे रही है ।

ढल रही है ज़िन्दगी की उमर धीरे-धीरे 
रोज रेत की भाँति मुट्ठी से फिसलती हुई
चंद हसरतों की ख़ातिर चल रहीं साँसें मगर
जीना दूभर लगे चले साथ मौत भी छलती हुई 
कब तक बहलाती दिल दिलासों के खिलौनों से 
ख़्वाब देखती रह गई ज़िन्दगी मोम सी पिघलती हुई ।
सदा--आवाज 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 16 जनवरी 2023

हम बस यही अब चाहते हैं

हम बस यही अब चाहते हैं


सिकुड़कर अब सुरक्षा के कवच में
सारी ज़िन्दगी हम नहीं रहना चाहते
नजरिये सोच फ़ितरत में सभी के
अबसे बदलाव हैं हम देखना चाहते ।

कड़ा भाई का ना हो हमपर पहरा 
परिजन सभी के चिंतामुक्त हों
ना पति बच्चों को हो फ़िकर कोई
अकेले हों कहीं भी पर भयमुक्त हों ।

ना किसी अपराध का हो डर कहीं
ना अश्लीलता,भद्दगी का घर कहीं
दिन हो या रात हो या गली रिक्त हो
नुक्कड़,राह निर्भय,निडर,उन्मुक्त हो ।

ना हो हावी किसी पर असभ्यता
लोक लाज हो,हो हया में मर्यादिता 
दिखे हर मर्द की आँखों में निपट
निज माँ,बहन,बेटियों सी आदर्शिता 

ना दरिंदों,दनुज की ग्रास बनें बेटियां
ना निर्मम दहेज की बलि चढ़ें बेटियां
ना कहीं दुष्कर्म,पाप का हो जलजला
ऐसा अमन हो देश में सबका हो भला ।

ना आतंक,जिहाद का हो डर,भय कहीं
सफ़र बेफिक्र हो दुर्गम भले हो पथ कहीं
असुरक्षा के भाव से ना हो भयभीत कोई 
साथ किसी मज़हब का हो मनमीत कोई ।









कुछ शेर

                   कुछ शेर 


1--
मेरे सुकून भरे लमहों में क्यों आते हैं ख़याल तेरे 
मेरी सोई हुई तड़प को क्यों जगा जाते हैं याद तेरे
जैसे सारी रात परेशाँ रहती मैं,रहतीं पलकें बोझल 
वैसे तेरे भी ख़्वाबों में शब भर करें तफ़रीह याद मेरे ।
2--
हर रात ख़्वाबों में आते हों क्यों,बेहिसाब सताते हो क्यों 
सताने का तरीक़ा भी लाजवाब,सामने नहीं आते हो क्यों 
जागती तो दिखाई देते नहीं,सोने में दीदार कराते हो क्यों 
तेरे शौक़ भी अजीब हैं यार,जगाकर याद दिलाते हो क्यों ।
3--
जिन अल्फाज़ों में पिरोई थी मैंने सिसकियाँ मेरी
सबने लफ्ज़ों के मर्म को समझा बस शायरी मेरी
कोई भी ना समझा अश्क़ों में भींगे हुए मेरे दर्द को 
खोल रख दी लिखी काजल से ज़िन्दगी डायरी मेरी ।
4---
ग़र चल ना सको साथ मेरे तुम ज़िन्दगी भर
तो दे देना सारी ज़िन्दगी तूं अपनी मुझे उम्र भर
न कभी याद आओ तुम मुझे ना आऊँ याद मैं तुझे 
चाहें टूट कर इस तरह कि हो जायें पागल इस क़दर ।
5--
बेखटके ना आया करो यादों मेरी दहलीज़ पर
तुझे कब का लटका चुकी हूँ  मैं तो सलीब पर 
कुछ हसीन लमहों को मान लूँगी वो ख़्वाब था
ज़िंदगी को छोड़ दिया हमने उसके नसीब पर 
6--
दर्द छुपाते,छुपाते मैंने मुस्कुराना सीख लिया 
चुप रहते-रहते चुप से गुनगुनाना सीख लिया
खलती नहीं है अब तन्हाई,क्यूँकि तन्हाई का
तन्हा सफर तय करना तन्हा मैंने सीख लिया
7--
उनसे नज़र क्या मिली आँखें हुईं चार 
होंठ बुदबुदाये भी नहीं और हो गया प्यार 
बड़ी जल्द ब्रेकअप भी ताज़्जुब है यार
इतना जल्द तो चढ़ता उतरता नहीं बुखार ।
8--
रोज घूमते हम साथ-साथ हाथों में डाले हाथ
मगर नहीं हुआ कभी असलियत का आभास 
छुपाती रही मेकअप के पर्त में वो मुहासों के गढ्ढे 
शादी के बाद खुली पोल तो देख हो गया बदहवास ।
9--
मैंने पर्दा तो किया था उनसे मगर
पर्दे के भीतर से थी बस उनपे नज़र
उनको भी हो गई जाने कैसे खबर
ऐसा हुआ वाकया बन गये हमसफ़र ।
10--
जैसे ख़ुद को तपा चमकता सूर्य क्षितिज पर
वैसे हम भी संघर्षों की तपिश में तपें क्षिति पर
मुश्किलें भी हार जायेंगी जो राह रोके खड़ी थीं
खबर बन जायेगी स्याही अख़बारों की भीत पर ।
11--                         
मेरी क़ामयाबी के पीछे का संघर्ष देखा होता
मेरे पांवों के तलवों का खूनी फ़र्श देखा होता
बहुतों बार बिखरी साज़िशों का शिकार हो मैं
कैसी चुनौतियों से लड़ मिला अर्श देखा होता ।
12--
पहले ही तुम अपने इरादे बता दिये होते 
साथ निभाने के झूठे वादे ना किये होते
जरा भी अन्दाज़ा होता ऐसे भुला दोगे तुम 
तो इन्तज़ार में तेरे इस क़दर ना टूटे होते ।

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी

बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी

जबसे ख़्वाब तेरा सजाने लगी हूँ
नाम का तेरे काजल लगाने लगी हूँ
लोग कहते बड़ी खूबसूरत हैं आँखें मेरी
चिलमन और भी अदा से उठाने गिराने लगी हूँ ।

जबसे अलकें गिराने लगी माथ पर
इठलाती बलखाती चलने लगी राह पर
लोग कहते बड़ी शोख़ है नज़ाकत मेरी
कटि नागन सी और भी मटकाने लगी मार्ग पर ।

जबसे जिक्र पर तेरे मुस्कराने लगी हूँ
हाल दिल का निग़ाहों से बताने लगी हूँ 
लोग कहते बड़ी कातिल है मुस्कुराहट मेरी
खिलखिला और भी बिजलियाँ गिराने लगी हूँ ।

जबसे जाम पी है नशीली आँखों का
गुदगुदाता रहता है पल चाँदनी रातों का 
लोग कहते बड़ी नाज़ों सी है नफ़ासत मेरी
ढाती और भी क़यामत हूँ होता असर बातों का ।

शैल सिंह 
सर्वाधिकार सुरक्षित 

शनिवार, 7 जनवरी 2023

कितनी शान से इतराता है तूं

ऐ चाँद उतर आ जरा जमीं पर 
ये दुनिया तुझको भी नहीं बख़्शेगी 
ग़र हटा दो मुख से घूँघट बदली का
देख नज़ारा दुनिया यूँ ही सहकेगी ,

कभी बन ईद का चाँद ठसक से
कितनी शान से इतराता है तूं
कभी सुहागिनों के करवाचौथ का 
बन चाँद छुप मनुहार करवाता है तूं

चाँद सा मुखड़ा से नवाजते तुझे लोग
छतों की मुंडेरों से निहारते तुझे लोग
जब लगता तुम पर ग्रहण ऐ चाँद 
क्यों इसी चाँद से आँख भी चुराते लोग  

कभी तुम ग़ज़लों का सरताज बन
महफ़िलों को कर देते हो गुलज़ार 
कभी शेरो,शायरी,नज़्म में सज तुम
सूने बज़्म को भी कर देते हो आबाद 

कभी तुम चौदहवीं का चाँद बन
कहलाते हो बड़े ही हो लाज़वाब 
कभी तुम तनहा बादलों के पीछे
छुप-छुपकर कर देते हो नाशाद

कभी ईश्क़ की दौलत बन तुम
सज जाते हो आँखों में बन ख़्वाब 
कभी जेहन में,कुरेदकर जख़्मों को,
दोस्तों का अक़्स उतार देते हो जनाब

कभी उपमानों की कतार का
बन जाते हो चन्दा सा उजियार 
कभी उतरकर समंदर,दरिया में 
सुरमई चाँद बन जाते हो यार

किसी के होते पलकों के चाँद तुम 
किसी के इन्तज़ार के महबूब तुम 
किसी के हमसफ़र होते तुम चाँद 
किसी की उपमा के होते चार चाँद

तुझसे होती खूबसूरत शाम भी चाँद 
तेरी रोशनी में छलकते जाम भी चाँद 
कहर ढाते हो ईश्क़, हुस्न की बदा पे
इसीलिए करते हो रस्क अपनी अदा पे ।

शैल सिंह 
सर्वाधिकार सुरक्षित 


रविवार, 1 जनवरी 2023

नव वर्ष पर कविता " समरसता की गागर छलके "

समरसता की गागर छलके

नव वर्ष लाये ऐसा उपहार 
हम सबके सपने हों साकार 
खुशियों की दे अनमोल सौगात 
कर दे राहों में फूलों की बरसात ,

महकी हुई मधुमासी हवाएं हों
सहकी हुई फिजाएं हों
परिन्दे चहकें बगिया गमके 
उल्लसित सभी दिशाएं हो ,

आत्मीयता से भरा हो मन 
सुखमय हो हर घर उपवन 
रिश्तों में हो मधुर मिठास 
नव वर्ष में हो अतिरिक्त खास ,

सर्वत्र उत्कर्ष,उल्लास,हर्ष हो 
ऐसा हम सभी का नया वर्ष हो
मर्यादा का कभी ना हो उलंघन 
हम सबके भावों में हो समर्पण ,

बीते वर्ष की खटास,वैमनस्यता
भूलें अनबन,उदासी,असफलता
लक्ष्यों को साकार करने हेतु 
करें संघर्ष हम मिले सफलता ,

ऊँच-नीच,भेदभाव मिटायें 
मन में कोमलता का भाव जगायें
नव वर्ष में नये कार्य सम्पन्न हों
नहीं कोई भूखा,गरीब विपन्न हो 

कोशिशों,हौसलों के पंख लगाकर
अपने अरमानों के उड़ान को,
उतार लाएं मेहनत,श्रम से हम
फलक से जमीं पर आसमान को ,

अतीत की अच्छी स्मृतियों से 
वर्तमान को बनायें सुन्दर और
समरसता की गागर छलके 
आये वर्ष भर अनेक अवसर और ,

दुख,दर्द,मुसीबत,बिमारी हेतु
करें प्रार्थना जड़ से हो नदारद 
सन दो हजार तेईस सभी को 
तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारक ।

शैल सिंह
सर्वाधिकार सुरक्षित 



बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...