शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई

'' ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई ''
                     [ १ ]     

मेरी ख़ामोशियों से मत अंदाज़ लगा लेना
कि हम भूल गए तुझे गुनहगार बता देना ,

बड़ी सादगी से ख़ंजर कर दिल के आर-पार
हमनफ़स राब्ता तोड़ की नई राह अख़्तियार ,

तुझसे निज़ात पाकर ख़ुश हम भी कम नहीं
वरना खाते ज़िन्दगी भर धोख़े कोई ग़म नहीं,

फ़ितरत का दिखाया तूने है बेहतरीन नमूना
फुर्सत में बैठकर ख़ुद को दिखा लेना आईना ,
                      
                         [ २ ]

ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई नामुराद कितनी हुई रूसवाई

घात लगाकर तूने दिया है दोस्त ,धक्का विश्वास की सीढ़ी से
अर्से की वेरही बाड़ तोड़ ,नई बाड़ लगाई स्वार्थ की सीढ़ी से ,

सम्मानों की पसलियाँ चूर-चूर कर ,ख़ूब मान बढ़ाया रसूखों से
बेवफ़ाई का काँटा कैसे निकालूँ ,तेरे वेहयाई के ढींठ सुलूकों से ,

हम तो टिके रहे उसूलों पर ख़ैर ,तुम सिद्धांतों को रौंद बढ़े आगे
हमने ही मार्ग प्रशस्त किया औ ,हमीं को शिक़स्त दे छल से भागे ,

सरे बाज़ार मख़ौल उड़वाया है ,क्या ख़ूब बेमिसाल सम्बन्धों का
ज़मीर नीलाम कर शर्म न आई , सहारा बेतुके तर्क के कन्धों का ,

                                                                शैल सिंह

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

और टूट ना जाये तन्हाई का पहरा

और टूट ना जाये तन्हाई का पहरा



तन्हई की चादर ओढ़े 
जब-जब होती हूँ तनहा
शब्दों का सुन्दर वस्त्र धारकर
मानस पटल पर हो जाता आच्छादित  
कवि मन पर गुजरा लमहा ,

झट कलम हाथ में गह लेती हूँ
भाव प्रवण बन जाती कविता
बाँध के अहसासों का सेहरा
कहीं अल्फ़ाज़ न धुँधले पड़ जाएं
और टूट ना जाये तन्हाई का पहरा ,

कविता की कड़ियों में गूँथ भर,
लेती हूँ जीवन का ककहरा
जी भर जी लेती जीवन अवसान तलक
वरना कहाँ समझ सका कोई भी
नर्म भावों का भाव सुनहरा ,

ज्ञान मेरा बस आत्मज्ञान बन
सिमट कर ख़ुद में ही है ठहरा
शौक़ शान संगीत बना लेखन
बन गयी लेखनी सम्बल मेरी
रिश्ते शिद्दत से निभा के गहरा ,

उम्र के दर पर छल ना जाये
डर है कभी ये पूँजी भी
और हो जाये धुप्प अँधेरा
ख़ुदा इस वैशाखी को देना बरक्कत
बल देना पोरों में आँखों में रौशनी लहरा ।
                                                   शैल सिंह








सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

आज़ अपने मन की ख़ुशी परोसते हुए बहुत ही प्रसन्नता हो रही है , ''भोर की ओर '' गद्य-पद्य संयुक्त संग्रह कई पायदानों से गुजर कर आज मुझे हस्तांतरित हुई । ''भोर की ओर '' २२ कवियों /लेखकों का अनोखा संयुक्त संग्रह है । सम्पादकीय लिखने के साथ-साथ इसमें मेरी पाँच कवितायेँ और पाँच कहानियां भी प्रकाशित हैं ।
संपादक ई.सत्यम शिवम ,सह-संपादक शैल सिंह एवं ई.अर्चना नायडू के प्रयासों का उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ के सौजन्य से यह नायाब तोहफ़ा मेरे ख़याल से '' भोर की ओर ''से सम्बद्ध सभी कवियों ,लेखकों को प्राप्त हो गए  होंगे । 





बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...