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'' चार जवानों की शहादत पर कविता ''

 चार जवानों की शहादत पर कविता  जाते-जाते साल के आखिरी दिन सन सत्रह दे गया ज़ख्म गहरा,कैसे मनाएं साल अट्ठरह , दर किसी के आयी सज अर्थी कोई जश्र में डूबा  देश के लोगों का जश्न मनाना लगे बड़ा ही अजूबा , ऐसे ताजा तरीन ख़बर पे भी किसी ने नज़र न डाली चार जवानों के शोक पर लोग कैसे मना रहे खुशहाली । मन बिल्कुल नहीं लगता नव वर्ष का जश्न मनाने में सरहद पर हुए लाल शहीद देश की गरिमा बचाने में , बन्द ताबूत में ओढ़ तिरंगा कितनों के लाल आये हैं घर जश्न मनाने वालों तुझपर भी तो इसका होता कोई असर , रो-रो तेरा भी होता बुरा हाल ग़र खुद का नयन सूजा होता तब भी तुम जश्न मनाते क्या निज के घर का दीप बुझा होता , जिनकी मेंहदी,महावर,बिंदिया,सिन्दूर धुल दिए गये हैं पानी से जिनके सुहाग ने दी शहादत देश लिए अपनी अनमोल क़ुर्बानी से , उन घरों में पसरे सन्नाटे,सूनी चौखट का दुःख तो आभास किये होते आह ऐसी मर्मान्तक पीड़ा का ओ हृदयहीनों थोड़ा अहसास किये होते। जि...