'हिंदी दिवस पर'
हम सभी देश वासियों के लिए यह शर्म की बात है कि हिंदी राष्ट्र भाषा होते हुवे भी अपनों के द्वारा अपने ही देश में हिंदी दिवस मनाने का प्रयोजन जगह- जगह पर किया जा रहा है ।अंग्रेजी की गुलाम हिंदी है या हिंदी की गुलाम अंग्रेजी ,इसी पर आधारित मेरी यह रचना पढ़िए और अपनी राय सुझाइए। 'हिंदी दिवस पर' रफ्ता-रफ्ता सेंध लगा अंग्रेजी घर में हिन्दी के हुई सयानी मेहमाननवाजी में खायी धोखा अपने ही घर में हुयी बेगानी / जड़ तक दिलो दिमाग पे छाई चट कर दी भावों भरा खजाना बेअदब हर कोने ठाठ बघारती मातृभाषा हिंदी भरती हर्जाना / ये कितनी ढीठ है घाघ अंग्रेजी किस दुनियाँ से परा कर आयी हम पर हावी हो ऐसे फिरती घर में हिंदी की बनी लुगाई / वक्त की मार में हो गयी बीमार अ...