''मदर्स डे पर''
मदर्स डे पर [ १ ] माँ के वात्सल्य प्रेम सा दूसरा कोई अहसास नहीं होता माँ के आँचल सा दूजी किसी वस्तु में सुवास नहीं होता माँ के फटकार में दुलार की नीम सी गरमाहट होती है कभी किसी और रिश्ते या प्यार में ये आभास नहीं होता । जिग़र के टुकड़ों के लिए माँ तो तपा खरा सोना होती है उस त्यागमूर्ति जैसा मर्मस्पर्शी कोई बलिदान नहीं होता दुनियां प्यार पे लिख ले चाहे जितने भी उपन्यास क्यूँ ना ममता के भंडार सा कोई भी मार्मिक दास्तान नहीं होता । [२ ] महबूबा के दामन में नहीं माँ के कदमों में ज़न्नत होती है , अज़ीम ,मुकद्दस है रिश्ता ये इसकी ख़ुश्बू कभी ना हो रुसवा , झंझावात आये चाहे जितनी ज़िंदगी में माँ की मोहब्बत नहीं होती कभी रुसवा , कभी फ़र्ज से ना मुकरना करना ख़िदमत ये बुनियाद कभी होती नहीं रुसवा। ...