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सितंबर 6, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

" खड़ी तूफां से लड़कर साहिल पे योद्वा की तरह "

बड़े गुमान से उड़ान मेरी,विद्वेषी लोग आंके थे ढहा सके ना शतरंज के बिसात बुलंद से ईरादे  ध्येय ने बदल दिया मुक़द्दर संघर्ष की स्याही से कद अंबर का झुका दिया मैंने हौसलों के आगे । प्रयास दोहराने में हो लीं साहस विफलतायें भी    विस्तृत भरोसों ने खींचीं कल्पनाओं की रंगोली असम्भव सी मिली जागीर जो है आज हाथों में बन्द अप्रत्याशित प्रतिफल से निंदकों की बोली । कंटीली झाड़ियों,वीहड़ रास्तों पे चलकर अथक बाधाओं को पराजित कर जीता जड़कर शतक खड़ी तूफां से लड़कर साहिल पे योद्वा की तरह ग़र लहरें करतीं अस्थिर कैसे पाते डरकर सदफ़ । पड़ाव ज़िंदगी में आया कितना उतार,चढ़ाव का  खा-खा कर ठोकरें भी हम नायाब हीरा बन गये बहुत लोगों को परखी ज़िंदगी दे देकर इम्तिहान लोग समझे दौर खत्म मेरा देखो माहिरा बन गये । सदफ़--मोती ,  माहिरा--प्रतिभाशाली  सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह

" सफलता पर कविता "

सफलता पर कविता मेरे अपनों ने की ना कभी कद्र हुनर की  सब समझते रहे कतरा मैंने इसके वास्ते विस्तार समंदर सा था जबकि मुझमें भी  बह दरिया की तरह बना लिए मैंने रास्ते । आसमान छूना इतना आसां ना था मग़र दिशा गंतव्य को देना शिद्दत से अड़ गये जूझा संघर्षों से अकेले कोई ना साथ था सार्थकता में जाने कितने रिश्ते जुड़ गये । मंजर जो हौसलों का तरकश दिखाया है ऐ परिहास करने वालों देखो अंत हमारा  कोशिशों के तीर से मैदान में उम्मीदों के बाँधे जीत का सेहरा रच वृतान्त सुनहरा । भटकती अभिलाषाएं भी उत्साह बढ़ाईं मन का विश्वास,साहस फौलादी हो गया  दीयों की तरह जल-जल हर रात तपी मैं हर्ष दहलीज मेरी चूमा जज्बाती हो गया । कतरा--बूंद,  सार्थकता--सफलता, वृतान्त--इतिहास,   हर्ष--खुशी सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह