भ्रमजाल
भ्रमजाल रातें होतीं रुपहली वे तारों वाली आसमान चाँद जवानी से भरपूर कभी चाहत चढ़ाया परवान मेरा कुन्दन सा उसका स्पर्शों का नूर । लय सांसों की होती जाती मद्धम जब प्यार-मिलन का होता संगम विहंस बाहुपाश कभी भरते वे जो दे देता था सहरा भी साथ विहंगम । बिन कहे जुबां से अंतर्मन की बातें आँखें न जाने क्या-क्या कह जातीं मेरा शर्माना मधुर मुस्काना उसका आहिस्ता ओढ़ती गिरती बल खाती । छितरा जाती मुख पर घोर उदासी कह अलविदा विलग जब होते हम होते प्रभात ही चाँद तारों वाला भी अलग पुनः ख़्वाब भी बुन लेते हम । तब एक झलक बस पा जाने को हृदय बेचैन,बेक़रार सा रहता था लो इंतजार अब ख़तम हुआ जब दूर से देखके उसे दिल कहता था । पर इन आँखों को धोखा हुआ या हो गयी थी हतप्रभ मैं देख नज़ारा गलबंहियां डाले संग परी थी कोई बांहें जो कभी होती थीं हार हमारा । दर्द संग ख़ुशी कि हुई सच से रूबरू सूरत की असलियत शर्मिन्दगी देगी क्या पता था अजीब...