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परिवार ही धन,दौलत—

परिवार ही धन,दौलत— जहाँ एकता होती सुमति होती है जिस घर में  वहीं देवी-देवताओं के होते वास देवालय तुल्य घर में  जहाँ कई रिश्तों से मिलकर बनता है एक सुखी परिवार  उसी घर की दहलीज़ पर ही होता सुखी जीवन का संसार । सभी के भाग्य में होता नहीं भरा-पूरा परिवार जहाँ रिश्तों की होती कद्र जहाँ आपस में होता प्यार  ममता,डांट,दुलार,फटकार क़िस्मत में सबके कहाँ होता  परिवार वह शाख़ जिसके छांह में मिलता प्यार अपरम्पार । ये अनमोल रिश्ता बांध रखना प्रेम के धागे में करना सबका स्वागत,सत्कार रह मर्यादा के दायरे में  दादा-दादी,नाना-नानी वटवृक्ष सा,परिवार के गुलदस्ते हैं  हो सौहार्द्र आपस में कटुक ना बात हो एक दूजे के बारे में । सुदृढ़ चारदीवारी है संयुक्त परिवार की माला अपनेपन का उपवन भी प्रथम जीवन की पाठशाला  परिवार के पावन बगिया में रहतीं वृन्दावनि भी हरी-भरी परिवार बिन जीवन विरान,लगे अमृत भी ज़हर का प्याला । ननहर-घर,पीहर-ससुराल रिश्तों की ईमारत हैं क्यूँ सम्बन्ध बिखर रहे भहराकर वक़्त की शरारत है प्रेम,व्यवहार,क्षमा के ईंट गारों से मरम्मत करें दरारों की  परिवार ही...