शहीदों पर कविता-- सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं
शहीदों पर कविता-- सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं ख़त में लिखा था घर आने का मंसूबें गिनाया था छुट्टियां मनाने का मन पसंद की सूची व्यंजन पकवान की बनी रह गई,खबर आई प्रिये के बलिदान की। मैं पलक पांवड़े थी विछाई डगर पर संग लाव-लश्कर तिरंगा तन ओढ़कर दर आई अर्थी पिया की लुटा संसार मेरा हुई कल अभी बात थी अवाक़ इस खबर पर। सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं हम हैं कि सबर पे सबर किये जा रहे हैं जिस दिन ठनेगी सबर से सबर की हमारी कहर ढायेंगे सबर ही सबर जो किये जा रहे हैं। तुम्हें धूर्तों है आख़री चेतावनी हमारी हम अतिशय तुम्हारी जो सहे जा रहे हैं फिर देखना तुम्हारी तुम तबाही का मंजर भड़काया आज ज्वार जो कबसे सहे जा रहे हैं। मूर्खों समझो ना सुस्त जवालामुखी है त्यागेंगे अहिंसा के पाठ जो पढ़े जा रहे हैं असहनीय कर दीं हैं करतूतें अब शांत रहना कैसे शत्रुओं तुम्हें बेंधना तिलिस्म गढ़े जा रहे हैं। वतन के रखवाले हैं हमें प्राण प्यारे तन तिरंगा लपेटे रतन ये चले जा रहे हैं देशवासियों तुम्हें सौगन्ध है वन्देम...