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फ़रवरी 4, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शहीदों पर कविता-- सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं

शहीदों पर कविता--  सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं  ख़त में लिखा था घर आने का मंसूबें गिनाया था छुट्टियां मनाने का मन पसंद की सूची व्यंजन पकवान की बनी रह गई,खबर आई प्रिये के बलिदान की। मैं पलक पांवड़े थी विछाई डगर पर संग लाव-लश्कर तिरंगा तन ओढ़कर दर आई अर्थी पिया की लुटा संसार मेरा  हुई कल अभी बात थी अवाक़ इस खबर पर। सबर का हमारे वो इम्तहान ले रहे हैं हम हैं कि सबर पे सबर किये जा रहे हैं जिस दिन ठनेगी सबर से सबर की हमारी कहर ढायेंगे सबर ही सबर जो किये जा रहे हैं। तुम्हें धूर्तों है आख़री चेतावनी हमारी   हम अतिशय तुम्हारी जो सहे जा रहे हैं फिर देखना तुम्हारी तुम तबाही का मंजर भड़काया आज ज्वार जो कबसे सहे जा रहे हैं। मूर्खों समझो ना सुस्त जवालामुखी है त्यागेंगे अहिंसा के पाठ जो पढ़े जा रहे हैं असहनीय कर दीं हैं करतूतें अब शांत रहना कैसे शत्रुओं तुम्हें बेंधना तिलिस्म गढ़े जा रहे हैं। वतन के रखवाले हैं हमें प्राण प्यारे  तन तिरंगा लपेटे रतन ये चले जा रहे हैं देशवासियों तुम्हें सौगन्ध है वन्देम...

'' ग़ज़ल '' '' बची अबभी मुझमें शराफ़त बहुत है ''

बची अबभी मुझमें शराफ़त बहुत है  मिलीं   नेकी करने के बदले  हैं रुसवाईयां    पेश अज़नबी से हैं आते मन आहत बहुत है। वक़्त जाया क्यों करना  कभी बेग़ैरतों  पर सख़्त मुझसे ही मुझको भी हिदायत बहुत है। कैसे एहसान फ़रामोश होते मौका परस्त पेश अज़नबी से हैं आते मन आहत बहुत है। जिनके लिए छोड़ सबको आज़ तन्हा हुए ख़ेद,वही करते अब मुझसे कवायद बहुत हैं। परख से मिली कुछ सीख ग़र मेरी आदतों ख़ुद लिए करना वक़्त की हिफ़ाज़त बहुत है। मुश्क़िल घड़ी में सदा साथ जिनके खड़े थे वही स्वार्थसिद्ध होते करते सियासत बहुत हैं। करें तौहीन,मानभंग जो भलमनसाहत की ऐसे ही ख़ुदग़र्ज़ों से मुझको हिक़ारत बहुत है। ज़रुरतमंदों को अब थोड़ा अनदेखा करना चूक होती जरा भी मिलती ज़लालत बहुत है। बह जज़्बातों की रौ में ग़म बाँटे थे जिनके बदले उनके ही सुर मुझको मलानत बहुत है।  अब अज़नबी जैसे हो गए हम उनके लिए  भीड़ संग क्या चले आ गई नफ़ासत बहुत है। जज़्ब  दामन में किये जिनके...