नक़ाब पर ग़ज़ल
चलती थी सड़कों पे बेनक़ाब
हुस्न ने परदा गिरा दिया
जब याद ज़माने ने मुझे
उम्र का दरजा दिला दिया ।
क़ैद कर लो हिज़ाब में जरा
ये शोख़ अदाएं ये मस्त जवानी
कह - कह कर बुज़ुर्गों ने मेरे
ज़िस्म का ज़र्रा-ज़र्रा जला दिया ।
मुड़ -मुड़ के देखते थे लोग
जिस गली से कूच करती थी
मेरी बेबसी का ऐ खुदा तूने
अंजाम ये कैसा सिला दिया ।
इस बेबसी में बतायें ज़नाब
मुस्कराएं तो भला हम कैसे
कहाँ से आई ये पाग़ल शबाब
जो हमें परदानशीं बना दिया ।
रुख़ पे कैसा लगा रूवाब ये
किन अल्फ़ाज़ में कहूँ लोगों
इस बेकसूर नूरे हूर को बस
तसब्बुर का आईना बना दिया ।
शैल सिंह
होगा आपका हुश्न या मासूमियत ही आपकी होगी...
जवाब देंहटाएंवजह बनी कातिल में जो कातिल निगाह की होगी!
http://swasasan.com/2014/01/10/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%a8%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b9-%e0%a4%b9%e0%a4%b0-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0/
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