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जनवरी 25, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वसन्त तेरे आ जाने से

वसन्त तेरे आ जाने से  लगे नई नवेली दुल्हन सी प्रकृति हुई उल्लासमयी मन मोहक शाम सुहानी हुई लगे पवन आनन्दमयी , वसंत तेरे आ जाने से । ओढ़ पीताम्बरी ओढनी लहरें फसलें हरे-भरे खेतों में खिलखिला रहे पुष्प वाटिका रंग-विरंग विभिन्न वेशों में , वसंत तेरे आ जाने से । मदमस्त हुई हैं चतुर्दिशाएं मह-मह सुगन्ध है पसरी लदर गए अमुवा मंजर से केश मौलश्री की फहरी , वसंत तेरे आ जाने से । सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति मन में स्फुरण प्रेम का होने लगा असीम ऊर्जा संचरित हुई हर कार्य उत्साह से होने लगा , वसंत तेरे आ जाने से । नव श्रृंगार हुआ प्रकृति का मादक वातावरण हुआ है रंगी वसंतोत्सव में सृष्टि सारी ज्ञान,विवेक का वरण हुआ है , वसंत तेरे आ जाने से । साहित्य,कला,संगीत की जननी माँ सरस्वती का हो रहा वन्दन् वसंतपंचमी शुभ पर्व मनाकर ऋतु किया तेरा सबने अभिनन्दन , वसंत तेरे आ जाने से ।                            शैल सिंह

बेमौसम तब घन बरसेगा

बेमौसम तब घन बरसेगा  गुज़र गए जो लम्हें पल लौट कहाँ अब आने वाले उम्र की दरिया बहती जाये वक्त कहाँ थम जाने वाले , मासूम बड़ा समझाऊँ कैसे  इस उन्मत्त पखेरु मन को तर को प्यासा सूखा सावन जल के दो बूंद बस धन को , मौसम ने तो दगा दिया ही पूरवा ने भी मुँह मोड़ लिया चढ़ते सूरज की धूप सेंककर संग गोधूलि में छोड़ दिया , हरी-भरी बाग़ों में हंसा भी तब कैसा जाल बिछाता था टहनी की हर कली-कली पर तब भँवरा कैसा मँडराता था खुदगर्ज़ बड़ा आवारा बादल उसे क्या लेना बंजर धरती से आसें कछार सी हुई जा रही  उसे क्या लेना धरती,परती से , शबनम की बूँदों से ढाढंस पा तरू अर्धमूर्च्छित सा जीवित है कोई ना जाने मौनव्यथा क्या कब से मन विरहा यह तृषित है , हर आहट पर कातर उम्मीदें चौखट तक जा फिर लौट आतीं अंक निशा के करवट ले लेकर रेशम सी चादर भींगा सुखातीं , किस घड़ी न जाने कब डोरी ये टूट जाये साँसों की आहिस्ता बेमौसम तब यह घन बरसेगा जब जायेगी अर्थी अपने रस्ता ।     ...