रविवार, 4 नवंबर 2012

'शबनमीं मोती'

                  शबनमीं मोती

अश्क़ों का जाम पीते उम्र तन्हा गुजार दी 

एहसान आपने जो ग़म मुफ़्त में उधार दी। 

       वफ़ाओं के क़तरे भीगोयेंगे कभी दामन तेरा

       जब चुपके से तोड़ेंगे ज़ब्त ख़यालों का घेरा। 

लाखों इनायत करम आरजूवों प्यार में 

लम्हा-लम्हा काटा सफ़र है बेक़रार में।

         बहुत अख़्तियार था बेज़ुबाँ दर्द पे साथियों 

         उदास टूटे नग़मों की जमीं पे गर्द साथियों। 

मुस्कराती रही दिल जला बेशरम चाँदनी 

मखमली आँचल भिंगोती बेमरम चाँदनी। 

          

ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है

कैसे भूले गली तुम शहर की मेरे निशां अब तक जहाँ तेरे पग के पड़े हैं खुला दरवाजा तकता राह आज तक तेरा खिड़की पे पर्दे का ओट लिए अब तक खड़े हैं ...