संदेश

जनवरी 28, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'' गजल '' ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,

ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते शेर.. हर्फ़ उल्फ़त के पढ़ लेना ग़ौर से लफ्जों की पोशाक पेन्ही हैं ऑंखें अल्फ़ाज़ भले रहते हों मौन मग़र   हृदय की आवाज़ होती हैं आँखें । अफ़साने दिल के सुना देते आँखों-आँखों ज़ुबां कंपकंपा गयीं जो बात कहते-कहते, बेसाख़्ता मिलीं बज़्म में जो निग़ाहें हमारी कुछ तो बुदबुदा गईं पलकें झुकते-झुकते, सूनी इक दूजे के धड़कनों की नाद हमने  जाने क्यूँ लड़खड़ा गये क़दम बढ़ते-बढ़ते, मस्ती सांसों में छाई मुस्कराये है ज़िन्दगी ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते, सजा रखी रात-दिन ख़्यालों की महफ़िल दबे पांव आता है कोई रोज महके-महके, मढ़ा कर नयन के फ़्रेम में तस्वीर उनकी लुत्फ़ खूब उठा रही हूँ ख़्वाब बुनते-बुनते, उकेरुं रोज रेखाचित्र दिल के कैनवास पे क्या-क्या सोचूँ तूलिका से रंग भरते-भरते, डर न होता ज़माने का चाहत के दरमियाँ खोल रख देता ग्रन्थ यह दिल हँसते-हँसते।                             ...

वैयक्तिक द्वेष से किसी की मेधा को चुनौती देने वालों पर कविता --

वैयक्तिक द्वेष से किसी की मेधा को चुनौती देने वालों पर कविता -- जिसने सोच लिया परिस्थितियाँ अनुकूल बनाने की बाधाएं पुल बना देतीं उसे मन्जिल तक पहुँचाने की, जिसकी संकल्पनाएं  बिछातीं लक्ष्य का गलीचा  सदा वह बार-बार की पराजयों से हताश नहीं होता ख़ुदा,  जिसके नज़रिये में जीत हासिल करने का जज़्बा हो सामर्थ्यवान साथ ईमानदार निर्णायक का कुनबा हो, इच्छा शक्ति सकारात्मकता को निराश नहीं करतीं असफलता जीवन में प्रयास के नित नया रंग भरतीं, जिसने हार को चुनौती दे दिया हराकर पछाड़ने की उसकी जीत सुनिश्चित है विजेता बनकर उभरने की, दांव खेलने वाले चाहे जितनी,जैसी विसात बिछा लें  हथेली में खींची लकीरें चाहे जितने भी बार मिटा लें, इक दिन ईश्वर लिखी रचना का स्वयं ही संज्ञान लेंगे जिसलिए तराशे थे उसी मुक़ाम पर पहुँचा दम लेंगे, विधि पर ग्रहण लगा कर विश्वास से छल करने वाले वैयक्तिक द्वेष से किसी के जीवनवृत्त से खेलने वाले देख क़ायनात पुष्प वर्षाती ख़ुद फलित अरमानों पर दुश्मन भी अचंभित दाता के अकस्मात् वर...

वसंत पर कविता " मन पांखी हो देख आवारा "

 " मन पांखी हो देख आवारा " कोयल कूंके पंचम सुर में नवविकसित कलियाँ लें अंगड़ाई भृंगों का गुंजन उपवन गूंजे बहुरंगी तितलियाँ  थिरकें  अमराई  , तन-मन  को दें सुखानुभूति  तरावट घासों पर पड़ी ओस की बूंदें वसंत के मादक सौंदर्य से विरहिनियों की जाग उठी उम्मीदें , ऋतुराज पाहुन ने दर्शन देकर अद्द्भुत उत्साह,आनन्द बढ़ाया है वृक्षों की मर्मर ध्वनि से आह्लादित  रोम-रोम  वा संती वैभव  भरमाया है , मन पांखी हो देख आवारा  हर्षित क्रिड़ायें  करते  कानन  की झकझोरें सुरभित पवन देव चहुंओर आगाज़ करायें फागुन की , तरूवर नव पल्लव पा हुलसें डूबी हर्षोल्लास में दशों दिशाएं स्नेहिल वसन्त  अमृतरस घोलें चहकें चहुंदिशा  कलिकाएं , रमणीय लगे धरा का आँचल  छवि नील गगन की न्यारी मस्त पवन का झोंका भरता मानस में रंग-विरंगी खुमारी , बूढ़ों,बच्चों,नौजवान युवकों के रोआँ-रोआँ नवोत्कर्ष है छाया होली का हुड़दंग चमन में मधुमासी गंध अलौकिक भाया , पनघट पनिहारनें डगर निरेखें छलिया ने कैसी प्रीत निभाई परिणय का दो संदेशा फागुन बेला सुमिलन की प्रित...