'' गजल '' ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते,
ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते शेर.. हर्फ़ उल्फ़त के पढ़ लेना ग़ौर से लफ्जों की पोशाक पेन्ही हैं ऑंखें अल्फ़ाज़ भले रहते हों मौन मग़र हृदय की आवाज़ होती हैं आँखें । अफ़साने दिल के सुना देते आँखों-आँखों ज़ुबां कंपकंपा गयीं जो बात कहते-कहते, बेसाख़्ता मिलीं बज़्म में जो निग़ाहें हमारी कुछ तो बुदबुदा गईं पलकें झुकते-झुकते, सूनी इक दूजे के धड़कनों की नाद हमने जाने क्यूँ लड़खड़ा गये क़दम बढ़ते-बढ़ते, मस्ती सांसों में छाई मुस्कराये है ज़िन्दगी ऐसा मय पिला गईं दो आँखें चलते-चलते, सजा रखी रात-दिन ख़्यालों की महफ़िल दबे पांव आता है कोई रोज महके-महके, मढ़ा कर नयन के फ़्रेम में तस्वीर उनकी लुत्फ़ खूब उठा रही हूँ ख़्वाब बुनते-बुनते, उकेरुं रोज रेखाचित्र दिल के कैनवास पे क्या-क्या सोचूँ तूलिका से रंग भरते-भरते, डर न होता ज़माने का चाहत के दरमियाँ खोल रख देता ग्रन्थ यह दिल हँसते-हँसते। ...