वफ़ा की धवल धार में नहला दोगे ना
आजकल बहुत आतीं मुझे हिचकियाँ
ज़िक्र महफ़िलों में मेरी किया ना करो
ओढ़ चादर सन्नाटे की सांवली रात में
छुपकर सरगोशियां भी किया ना करो ,
ज़िक्र महफ़िलों में मेरी किया ना करो
ओढ़ चादर सन्नाटे की सांवली रात में
छुपकर सरगोशियां भी किया ना करो ,
ग़र करते हो मुझसे शिद्दत से उल्फ़त
इस रिश्ते को खुलकर इक नाम दे दो
लुका-छुपी कर पहलू में ना बैठा करो
ग़र परवाह मोहब्बत का है नाम दे दो ,
मिश्री घुली बातों से यूँ भरमाकर तुम
उलझी लटों से ना मन बहलाया करो
भोली अरमां को अपने मोहताज़ कर
सैर स्वप्निल संसार के ना कराया करो ,
मन-मस्तिष्क पर दर्ज़ उपस्थिति कर
तेरी आहट की प्रतिध्वनियां तरंग भर
कहीं कर ना दें मुझे इस कदर बावरी
कहीं कर ना दें मुझे इस कदर बावरी
कि लग जाए जमाने की बदरंग नज़र ,
चूम पलकें दिया शह जरा ये बता दो
ज़िन्दगी भर पनाहों में जगह दोगे ना
प्रेम की बरखा में अंतर्मन है भिंगोया
वफ़ा की धवल धार में नहला दोगे ना ।
बड़ी शातिराना यक़ीन चलती है चाल
सलाह मशवरा कर अब मुहर लगाओ
और छुपा लो आग़ोश में सदा के लिए
भरो चंपई रंग प्यार दहर को दिखाओ ।
दहर--संसार
शैल सिंह
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