" वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मेरी कलम से "
लहर-लहर लहराया है परचम भगवा का हिन्दुस्तान में हर्ष रहा चहुँओर केसरिया कंवल खिला है रेगिस्तान में हो मोदी,की चर्चा है सारे जहान में । सबका विकास साथ सबका है नारा इसी विश्व...
ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''