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सम्भावनाओं का घर

मनोमस्तिष्क में बस गया है एक गांव  एक बेचैनियों का एक स्मृतियों का घर एक शिकायतों का एक मोहब्बतों का घर ऑंखों की दहलीज़ पर एक ऑंसुओं का घर एक मिलन के अविस्मरणीय निशानियों का घर एक तलाश का घर कुछ अनकहे दास्तानों का घर एक आहटों का घर खिलखिलाती महफ़िलों का घर  एक उदासीयों का घर एक टीसती खामोशियों का घर  कभी आओगे बीते लम्हे याद कर,सम्भावनाओं का घर कभी तो गुफ्तगू करने तुम भी आओ ना इन गांवों के घर।  शैल सिंह  सर्वाधिकार सुरक्षित 

कुछ उन्मुक्त छन्द

छलकता जब भी प्रेम के एहसास का पैमाना  शब्दों के मोती से कर लेती दिल्लगी मनमाना कविताएं बन जाती मेरे उक्तियों की संजीवनी  शायरी में उतर आता उर के उद्गार का आईना । मेरी कविताओं की बुनियाद तुम हो प्रिये  कविताएं अनकही बातों की संवाद प्रिये  दर्द ने जब भी शरारत किया जज़्बातों से  लेखनी ने शब्द-शब्द में अनुवाद कर दिए । मिलन के वो सुनहरे पल सांझ सुरमई  तेरे भुजपाश में जब लाज से दुहरी हुई  हया का पर्दा हटा जो चूमा कपोलों को  मन कलिका खिली शर्म से हुई छुईमुई । क्यों बहार बन कर आये जीवन में मेरे  लेना नहीं था जब सातों वचन संग फेरे  क्यूं किये मन वीणा के तंत्रों को झंकृत  दक्षता नहीं वाद्ययंत्र में तरन्नुम क्यूं छेड़े । क्यों उमड़-घुमड़ कर बादल के जैसे  आषाढ़ सा मन का आँगन छू कर के मन के मोर की बढ़ाकर के विह्वलता लौट गये घहराकर तरसा बिना बरसे । धड़कन बनके धड़कते हो तुम हृदय में  जी रही ऑंखों के सपने संजो सांसों में  जब से देखी हैं तेरी सूरत इन ऑंखों ने  दूसरी बसी ना कोई मूरत इन ऑंखों में । जब भी खटकता सांकल दहलीज़ का ...