मैं सीपी के मोती जैसी
हमराह में साथी नहीं संगी कोई अपना भरे जो रंग गहबर सा अधूरा ही रहा सपना मिले मंजिल मेरी मुझको अभिलाषाएं भटकती हैं महत्वाकांक्षा रही सिसकती उमर पल-पल गुजरती है , गगन के सितारों सी चमकने की कल्पना थी जमीं पर पांव चाहत चाँद छूने की तमन्ना थी । अपनों ने दिखा दिवा सपना कंचन सा विश्वास ठगा मेरा खुद की धुरी के चारों ओर बस डाल रही अब तक फेरा , घायल मन की व्यथा मिटा यदि कोई बहलाता चाहे अनचाहे सपनों की यदि मांग कोई भर जाता । सागर से भरी गागर है मन रीता-रीता सा ही मोती सी तरसती तृष्णा घर संसार सीपी सा ही , टूटे साजों पर गीत अधूरे किस्मत काश संवर जाए चाहत पर चातक की शायद स्वाति की बूँद बरस जाए । कस्तूरी जैसी महक मेरी ये जागीर न देखा कोई असहाय साधना की राहें ऐसी तरूण कामना खोई , घरौंदों को आयाम मिले कब किरण भोर की आएगी कब कसौटियों पर खरी उतर शख़्सियत गर्द मचाएगी । विराट कलाओं क...