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नारी दिवस पर

नारी दिवस पर  मैं शक्तिस्वरूपा नारी जननी सम्पूर्ण जगत की त्याग,दया,ममता की मूरत गौरव निज संस्कृति की मैं लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती हूँ अवतार अनवरत शक्ति की युग निर्मात्री लिए सीमाएं,लक्ष्मण रेखाएं क्यूँ बनीं प्रकृति की सीता,द्रौपदी,गंगा,कुन्ती को कीं कलुषित मानसिकता कुत्सित की वही सबल बन अबला निष्ठुर जग की निर्मम अवरोधों को खंडित की सह समाज के विषम थपेड़े नियति से लड़ खुद लिए उसने नव राह सृजित की उड़ रही गगन में,हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ हिस्सा स्वयं स्वरूपा ख़ुद को महिमामंडित की ।                                                                                  शैल सिंह