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" वसन्त ऋतु पर कविता "

'' वसन्त ऋतु पर कविता " शरद ऋतु  की कर विदाई  ऋतुराज अतिथि गृह आये पतझड़  को  नवजीवन  दे मुरझाये प्रकृति संग हर्षाये , ऋतुपति हैं ऋतुओं के राजा  इनकी शोभा अतीव निराली अनुपम सौंदर्य  से परिपूरित बिखेरें दिग्-दिगन्त् हरियाली , मधुमाती  गंध  से वातावरण  मह-मह माधव  ने  महकाया  वसुन्धरा  पर  मुक्त पाणि से अगणित अपूर्व नेह बरसाया , अम्बर ने  मादक  रंग बिखेरा छवि विभावरी करे सम्मोहित  कली  जूही  की  प्रियतम  के बंध आलिंगन  हुई आलोड़ित , मधुमासी नेह कलश में भींग  महक उठी प्रमुदित अमराई लद बौराया  अमुवा मंजर से  कोयल चहक कुहुक इतराई , क्यारी-क्यारी बिछी हरीतिमा बाग़ सोलह सिंगार कर हुलसे प्रदीप्त सौंदर्य से दसों दिशायें  अलौकिक आह्लाद उर विहँसे , महुआ नख-शिख रस में मात टप-टपा-टप   चूवे  जमीं  पर श्वेत सुमन से छतर-छतर नीम कौमार्य से झरे इठला मही पर , सुआ, सारिका,सारंग, शिखी पा वासन्ती वात्सल्य हैं हर्षित मातंग, मरा...