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मार्च 8, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'' महिला दिवस पर ''

महिला दिवस पर  व्यवधानों से कर के दोस्ती दिक्कतों की परवाह ना की   तोड़ पांवों की बेड़ियां उनने  ऊँची हौसलों को उड़ान दी  , संघर्ष बन गई ताक़त उनकी  तय अंतरिक्ष की दूरी कर लीं   पाल-पोस ख़्वाबों को अपने   तराश मन्सूबों को निखार लीं , सशक्त कर भूमिकाओं को ख़ुद को इक नई पहचान दीं  तोड़कर मानकों की परिधियाँ कुचली मनोवृत्ति को संवार लीं , ख़ाहिश नहीं महिमामण्डन की कोई चाहत नहीं सहानुभूति की भभक उठीं सदियों की वेदनायें  उबलती सिसकियाँ जो दबी थीं , बेहतर समाज की वे भी भागीदार प्रगतिशील हुईं आज़ की नारियाँ परम्पराओं की तोड़ सींखचों को  प्रतिभावान हुईं हमारी भी बेटियाँ , जरुरत है समाज की सोच में संकीर्ण नजरिये में बदलाव की वरना विवश हो ले लेंगी हाथ में  ख़ुद निडर कमान विधान की ।                                        ...

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरे ये वक्तव्य

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरे यह वक्तव्य  माँ,बहन,बेटी,पत्नी,प्रेमिका का मत हममें बस फर्ज तलाशिये आन्तरिक ताक़त पहचानिये बस हमारा ज़ज्बा निखारिये।  क्यों हमारे लिए ही केवल  तय किये गए मानक क्यों हमारे लिए ही केवल  खींची गईं रेखाएँ  क्यों खुदा ने भी की बेईमानी लिंगभेद कर  मानक और पाबंदियाँ  दोनों लिङ्गों के लिए क्यों नहीं  क्योंकि ख़ुदा भी मर्द है हमें कमजोर पहलू की  स्वामिनी बनाकर क्यों ? पुरुष को हैवानियत और  दानवता का दर्प दिया  जब-जब दर्द मिला  मौला तेरे लिए बद्दुवा निकली  तुमने किया भेदभाव और  नारी मुखर हुई मजबूत होकर  अगर नारी सशक्त हुई है  अगर नारी क़ामयाब हुई है  अगर नारी ने अन्याय के ख़िलाफ़  आवाज़ उठाई है ,बेहूदे समाज से  यदि जंग लड़ी है ,तो खुद को जगाकर  भगवान उसमें तेरा क्या योगदान ये ज़ज्बा जागा है तो अन्याय के कारण  अगर नारी सुदृढ़ हुई है तो भेदभाव के कारण  तुमने तो हमें गाय और देवियों की उपाधि देकर ...