'' महिला दिवस पर ''
महिला दिवस पर व्यवधानों से कर के दोस्ती दिक्कतों की परवाह ना की तोड़ पांवों की बेड़ियां उनने ऊँची हौसलों को उड़ान दी , संघर्ष बन गई ताक़त उनकी तय अंतरिक्ष की दूरी कर लीं पाल-पोस ख़्वाबों को अपने तराश मन्सूबों को निखार लीं , सशक्त कर भूमिकाओं को ख़ुद को इक नई पहचान दीं तोड़कर मानकों की परिधियाँ कुचली मनोवृत्ति को संवार लीं , ख़ाहिश नहीं महिमामण्डन की कोई चाहत नहीं सहानुभूति की भभक उठीं सदियों की वेदनायें उबलती सिसकियाँ जो दबी थीं , बेहतर समाज की वे भी भागीदार प्रगतिशील हुईं आज़ की नारियाँ परम्पराओं की तोड़ सींखचों को प्रतिभावान हुईं हमारी भी बेटियाँ , जरुरत है समाज की सोच में संकीर्ण नजरिये में बदलाव की वरना विवश हो ले लेंगी हाथ में ख़ुद निडर कमान विधान की । ...