संदेश

नवंबर 10, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भगवन तुमने ही तो कहा था

भगवन तुमने ही तो  कहा था मेरे मन वीणा का तार छेड़कर  निज व्यथा के गीत सुनाना मुझको मेरे मन मन्दिर का द्वार खोलकर बन साधक सदा रिझाना मुझको । कितनी बार नवाया शीश चरण में तेरे गिरिजाघरो,गुरुद्वारों,साईं की ड्योढ़ी मन कामना की खातिर भटक-भटक कितने मंदिरों,मस्जिदों,की चढ़ सीढ़ी । दुःख,संकट,क्लेश,व्यथा तम् आँगन मधुर-मधुर  कब गूँजेगी किलकारी सीना चीर  अधर  पट  खोलूँ  अगर तह  की  हिलक  उठेगी सिसकारी । गहरी आस्था और विश्वास  कवच पर सारा जीवन न्यौछावर किया तुझ पर कोई  खोट  हुई  या चूक  हुई मुझसे कि  पूजा रही अधूरी  रूठा  मुझ पर । दर  आँचल   फैला   बस माँगा  साईं सौगात  में  बिटिया  लिए  ख़ुशहाली बढ़ें  प्रगति  पथ  पर नित स्वामी  मेरे , बेटे के सपनें हो इंद्रधनुषी रंग आली । क्यों  तिरते इतराते पलकों पर आकर सपने सज संवर क्यों खुद ही इठलाते  क्यों सुख सागर की लहरों पर गोते ले  सपनों ...