मंगलवार, 23 अगस्त 2022

ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा

ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा


सबके साथ सबके विकास का
सुर में सुर मिला साथ चलने का
न खाऊँगा न किसी को खाने दूँगा
इसी तर्ज़ पर आगे बढ़ते रहने का ,

इक देशभक़्त ने वीणा उठा लिया है 
समूचा भारतवर्ष बदलने का
जन-जन से आह्वान किया है
संग-संग क़दम मिलाकर चलने का ,

दृढ़ संकल्प है उसने ठान लिया
घर-घर नया सवेरा लाने को
मन को ज़िद पर अड़ा लिया है
घना अँधियारा दूर भगाने को  ,

वर्षों से कोने-कोने विष जो
वातावरण में घुला हुआ था
जिन संग हवाओं का दल भी
खूब आकण्ठों डूबा हुआ था ,

इक देशभक्त फ़कीर दीवाना
इन विषधरों से चला है टकराने
इरादों में परिवर्तन का निश्चय ले
देशद्रोही,गद्दारों को समूल मिटाने

उलझा चल रहा काँटों से दामन
काँटे भी पग उसके चूमने लगे हैं
सत्तर सालों का मंज़र देखे नयन
नये भारत का सपने बुनने लगे हैं ,

क़द्रदान अनेकों इस सच्चे हीरे के
बड़े-बड़े धुरंधर हाथ मिलाने लगे हैं
उसके हर फ़ैसले की कर सराहना
देश के हर नागरिक मुस्काने लगे हैं ,

इक स्वप्न है उसने दृढ़ता से दुहराया 
जड़ से समूल भ्रष्टाचार मिटाने का
कूटनीतिक शस्त्रों से देकर शिकस्त  
लक्ष्यों को मंज़िल तक ले जाने का ,

ऐसे बेशकीमती मोती को पहचानो
अरे ओ देशद्रोहियों,गद्दारों,मक्कारों 
जनमानस के तख़्त का शहंशाह वो
विष वमन करो तुम चाहे फुफ़कारो ,

युग स्वर्णिम होगा अब आने वाला
ऐसे ही कद्दावर महापुरुष के हाथों
इस वैरागी के जीवन का स्वप्न मात्र
विश्व देखे भारत को भर-भर आँखों,

देश के लिए अनमोल शख़्स है यह 
ऐसे महापुरुष को  बनाये रखना है
युगान्तकारी कर्मवीर दृढ़ प्रतिज्ञा का 
आत्मबल,देश वालों बढ़ाये रखना है

धैर्य,समर्पण,सहयोग की अलख
हम सबको मिल के जगानी होंगी
अभी,जो झेल रहे हम सब परेशानी
उसका निकलेगा नतीजा भी दूरगामी ,

हम सबके बलबूते ही इस जीवट ने
भृष्टाचारियों से लिया है जम के पंगा
कभी न छोड़ना शीर्ष पर उसे अकेला
ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा ,

मत करो सियासत सस्ती घटिया
विरोध के लिए विरोधी तेवर वालों           
देखो नज़र उठाकर भविष्य देश का
उठो गन्दी राजनीति से ऊपर व्यालों ,

देख वज़ूद हाशिये पर अपना
दिन-रात पप्पू फेंकर रहा है
मोदी मारक अचूक अस्त्र-शस्त्र
ममता की आँतें कुतर रहा है ,

गजगामिनी जी डूबीं अवसाद में 
पूर्जा-पूर्जा साईकिल का कोमा में
मस्तिष्क दिवालिया हुआ 'आपका'
भूक-भूक लालटेन कराहता कोना में ,

इक पारदर्शी कर्मठ,कर्तव्यनिष्ठ योगी के
नेक इरादे,क्षमताएं गौर से कौशल देखो
आतंक पोषितों,भ्रष्ट नेताओं,माफियाओं के
किलों में हलचल मचा घमासान,दंगल देखो ,

देश की मजबूत बुनियाद लिए ही उसने
नोटबंदी जैसा जटिल अहम् कदम उठाया है
क्यों विपक्षी राजनीतिक गलियारों में ही
इस अप्रत्याशित फैसले पर सियापा छाया है ,

हम भारतवंशियों को गर्व आज यह
कि नमो-नमो जी जैसा रतन मिला है
हर मर्ज़ का उसके पास बेहतरीन इलाज है
इस सर्जन के आपरेशन से कोई नहीं गिला है

हो रहा रिएक्शन विपक्षी,विद्रोही खेमों में 
जनता कर रही हर ऐक्शन का अनुमोदन 
अर्थक्रान्ति के उसके साहसिक प्रस्ताव पर
बच्चे,बूढ़े,नौजवान,विश्व भी कर रहा समर्थन ।

व्यालों--साँप

  जय हिन्द ,जय भारत ,जय मोदी ।

                                  शैल सिंह



सोमवार, 22 अगस्त 2022

नज़्म ' जब से तोड़ा रिश्ता उससे हर ताल्लुक का '

जब से तोड़ा रिश्ता उससे हर ताल्लुक का



याद कभी आये ना वो मेरे सपनों में भी
सख्ती से दरबान पलकों को ताक़ीद कर दी कसम से
लौटा दी नफ़रत की सूद सहित पाई-पाई उसे भी
ज़िक्र कभी छेड़ें हवाएं भी ना ताकीद कर दी कसम से
जब से तोड़ा हर रिश्ता उससे ताल्लुक का
खुद को तन्हाई,गम,उदासी से फ़ारिग कर ली कसम से
मुद्दतों बाद मिला सुकून मेरी रूह को
दिल की विरां महफ़िल फिर गुलजार कर ली कसम से
कहांँ थी काबिल ही वो मेरे मिज़ाज़ के
सच में किस सांचे में ढाला था उसको ख़ुदा ने कसम से ।
                                                          

अगर ठान लो लक्ष्य हासिल है करना


घूंट इंतजार का होता कड़वा बहुत है
इंतजार इक दिन दिखाएगी मंजिल तुम्हारी ।
माना सफ़र इतना आसां नहीं है
मगर राह तकती है मंजिल तुम्हारी
अगर ठान लो लक्ष्य हासिल है करना
मिलके रहेगी हर सूरत में मंजिल तुम्हारी
कर्म और श्रम पे अपने ग़र है विश्वास इतना
स्वतः चलकर आयेगी तुम तक मंजिल तुम्हारी
छोड़ना ना कभी हार के भय से संघर्षों की ताकत
अवश्य ही होगी संघर्षों से प्राप्त तुम्हें मंजिल तुम्हारी ।
                   
                                                    

तरस आता लोगों की मुर्दा सोच पर 


साज़िशों के बाज़ार में आलोचनाओं का शिकार हुआ जाता हूँ
लोग कहाँ समझे मुझे फ़िजां के शोर में शर्मसार हुआ जाता हूँ
देश के लिए क्या ना किया तरस आता लोगों की मुर्दा सोच पर 
बेग़ैरतों की बेवफ़ाई,अपनी वफ़ाओं का कर्ज़दार हुआ जाता हूँ
मोहब्बत मुल्क़ से की बताओ देशवासियों इसमें दोष क्या मेरा
बस फेंकू और लफ्फाज़ी के सौग़ात का क़िरदार हुआ जाता हूँ। 

शैल सिंह 

समंदर पर कविता , ख़ारे प्रवृत्ति का स्वभाव क्यों बदल ना सके

समंदर पर कविता 
ख़ारे प्रवृत्ति का स्वभाव क्यों बदल ना सके


साहिल से टकरा मुड़ जाना शगल बस तेरा
ऐ समंदर ये शरारत तुम्हारी अच्छी नहीं ।

रेत पर जो बनाए थे सपनों के घरौंदे
चल दिए लीलकर तुम बदी की तरह
ऊँची लहरों का रखो पास अपने गुमां
बह सकते नहीं तुम जब नदी की तरह।

कंठ तर कर सकते नहीं जब तुम नीर से
जल के महानद में डूबे आकंठ किस काम के
स्वाती की इक बूंद को सीप तरसा करे
इतने विशाल होकर भी तुम किस काम के।

आचमन भी जिस जल का दुष्कर लगे
जिससे अभिषेक शिवालय का हो ना सके
तेरी बादशाहत बस कायम लवण के लिए
ख़ारे प्रवृत्ति का स्वभाव क्यों बदल ना सके ।

राज क्या है तुम्हारे विस्तृत साम्राज्य का
जब-तब मचाती हलचल तेरी तह सूनामी है क्यूँ
दुनिया की कड़वाहटें समेट तूं आक्रोशित होता
या तट पर देख सैलानियों को होता बेकाबू है तूँ ।

तेरी गहराईयों में इतनी गहन ख़ामोशी क्यों
तेरी उत्ताल तरंगों से जी है बहलता सभी का 
तूं तो खुद के प्यास की तलब बुझा पाता नहीं
पर शेर,ग़ज़ल,कविता तुझी से संवरता सभी का ।

देखा उगते सूरज को हमेशा तेरे आगार से
देखा चाँद ढलता भी समाते तेरी आगोश में
मुश्किल थाह पाना समंदर तेरी गहराई का
मोतियों का भण्डार भी कोख़ के तेरी कोश में ।

चांदी जैसी चमकती दुधिया सी मौज़ें तेरी
बयां करतीं,फन के हो कुशल अदाकार तुम 
इतना हुनर तुममें आया कहाँ से समंदर
कैसे लगा लेते आकर्षण का बाज़ार तुम ।

देखा क्रोध भी ज्वार भाटे सा अति का तेरा
क्यों अवश होता सीमाओं की हदें तोड़कर
फिर मुड़ जाता मौन,निश्छल अबोध की तरह
बर्बादी,तबाही का बदसूरत मंज़र छोड़कर ।

जाने बिना भीमकाय आकार की उपलब्धियां
माफ़ करना कसा बेवजह तंज समंदर देवता
समुद्र मंथन से ही फूटी थी अमृत की धारा
जाना जग के लिए क्या तेरी समंदर विशेषता ।

आगार---गृह,घर
 शैल सिंह 

आत्मविश्वास सबसे बड़ी ताक़त है

 आत्मविश्वास सबसे बड़ी ताक़त है


कुछ लोग कांटे बिछाए बहुत चाह की राह में
मगर कांटे भी कर लिए मुहब्बत मेरी चाह से ,

कोशिशें बहुत किये लोग मनोबल तोड़ने की
मगर साथ निबाहा मेरा धैर्य ने धैर्य के हाथ से ,

रस्सी आत्मविश्वासन की थामे रहीं मुरादें मेरी
नहीं तो ख़ाब हो जाता धराशाई छल विद्वेष से ,

चक्रवात आया बहुत,ज़िद मेरी जूझ लहरों से  
लाकर खड़ी कर दी कग़ार पे क़श्ती गैरत से ,

शक़ खुदा को भी ना था क़ाबिलियत पर मेरी
बख़्श दी रब ने भी चाहत मेरी क़ाबिलियत से ,

कबतक मिटायेगा द्वेष से कोई हस्तरेखा  मेरी
जल-जल ख़ुद ख़ाक होंगे वैरी मेरी हैसियत से ,

कैसी-कैसी परिस्थितियों से गुजरी यह ज़िंदगी  
मिली तब आकर मुझसे मेरी मन्ज़़िल ख़ुशी से ।
                       
शैल सिंह   

रविवार, 21 अगस्त 2022

'' ग़ज़ल '' '' लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा ''

'' ग़ज़ल ''

'' लौटा सको अगर तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा ''


तरस जायेंगे बन्द दरवाजे तेरे
कभी दर पे आ तेरे दस्तक ना दूँगी
मेरे अहसानों का मोल चुकायेगा क्या तूं
तजुर्बों को अब कभी अपने ना शिक़स्त दूँगी
अगर लौटा सको तो लौटा दो वो हसीं वक्त मेरा
जो लूट गया नाजायज़ किसी को वो हर्गिज़ ना दूंगी।

लगी देर ना तेरी फ़ितरत बदलते 
इल्म था ये मगर मैंने वफ़ादारी निभाई
चोट खाया है दिल मिला वफ़ा का सिला ये
जख़्म होता वदन पर तो देता दहर को दिखाई
वक़्त का पहिया भी बदलेगा करवट देखना कभी
कैसे किसी को इल्जाम दूँ जब ख़ुद को ही ठग आई।

मेरी खामोशियाँ भी मुझे कोसती हैं
ये दर्द की ही इन्तेहा कि बयां कर सकूँ ना
छींटे किरदार पर भी कत्तई नहीं बर्दाश्त होंगे
संग हवाओं के भी चलने का हुनर ला सकूँ ना
शख़्सियत नीलाम मेरी क्यों फ़रेबों के बाज़ार में
कि नफ़रत भी बेवफ़ाओं से मुकम्मल कर सकूँ ना।

                                             शैल सिंह 

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...