ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा
ख़िजाँ में फूल खिले ऐसा किया है दंगा सबके साथ सबके विकास का सुर में सुर मिला साथ चलने का न खाऊँगा न किसी को खाने दूँगा इसी तर्ज़ पर आगे बढ़ते रहने का , इक देशभक़्त ने वीणा उठा लिया है समूचा भारतवर्ष बदलने का जन-जन से आह्वान किया है संग-संग क़दम मिलाकर चलने का , दृढ़ संकल्प है उसने ठान लिया घर-घर नया सवेरा लाने को मन को ज़िद पर अड़ा लिया है घना अँधियारा दूर भगाने को , वर्षों से कोने-कोने विष जो वातावरण में घुला हुआ था जिन संग हवाओं का दल भी खूब आकण्ठों डूबा हुआ था , इक देशभक्त फ़कीर दीवाना इन विषधरों से चला है टकराने इरादों में परिवर्तन का निश्चय ले देशद्रोही,गद्दारों को समूल मिटाने उलझा चल रहा काँटों से दामन काँटे भी पग उसके चूमने लगे हैं सत्तर सालों का मंज़र देखे नयन नये भारत का सपने बुनने लगे हैं , क़द्रदान अनेकों इस सच्चे हीरे के बड़े-बड़े धुरंधर हाथ मिलाने लगे हैं उसके हर फ़ैसले की कर सराहना देश के हर नागरिक मुस्काने लगे हैं , इक स्वप्न है उसने दृढ़ता से दुहराया जड़ से समूल भ्रष्टाचार मिटाने क...