कुछ शेर
छोड़कर जब चली मैं शहर आपका
अहदे-वफ़ा के महकते रस्ते वो लम्हें
साथ आया याद का कारवां आपका ,
तेरी अता करूँ या परस्तिश ऐ मौला
कभी तो गुजारिश मेरी भी सुन ले
भर दे झोली मेरी भी मता-ए-ऐश से
मुज्ज़तर बहुत हूँ तारीक मेरा हर ले ,
तेरी अता करूँ या परस्तिश ऐ मौला
कभी तो गुजारिश मेरी भी सुन ले
भर दे झोली मेरी भी मता-ए-ऐश से
मुज्ज़तर बहुत हूँ तारीक मेरा हर ले ,
भर दिए वक़्त ने तो हर ज़ख़्म लेकिन
वक़्त गुजारने में क्या से क्या गुजर गई
क्या मालूम उन्हें शबे-फ़िराक़ की सदा
क्या मालूम उन्हें शबे-फ़िराक़ की सदा
ख़ामशी ना जाने क्या-क्या निगल गई ।
अता--तारीफ़ , अज़ाब--मुश्क़िल ,
मता-ए-ऐश--सुख चैन की पूंजी
मुज्तर--घायल,दुखी, तारिक--अँधेरा,
अता--तारीफ़ , अज़ाब--मुश्क़िल ,
मता-ए-ऐश--सुख चैन की पूंजी
मुज्तर--घायल,दुखी, तारिक--अँधेरा,
शबे-फ़िराक़--जुदाई की रात
शैल सिंह
शैल सिंह
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