छोड़ दे रूठना बरस झमाझम
छोड़ दे रूठना बरस झमाझम श्यामल-श्यामल मेघराज जरा शुभग श्याम पताका फहराओ मेघ लगाकर सूरमा मंडरा कर जिद्दी धूप पर नैना बान चलाओ । आग बबूला हो उग्र प्रभाकर हौले-हौले आसमान से उतरे प्रचण्ड ताप संग तप्त हवाएं भरी दोपहरी व्योम से बिफरे । बरसा कर ज्वाला वर्चस्व का धमक चक्रवात का दिखलाए स्वेद निथारे आर्द्रता शरीर की जगती का कण-कण तड़पाए । आकुल धरती का मर्म ना जाने करती बिजली गिराकर घायल गर्मी का प्रकोप उत्पात मचाये छले पर्वत से टकराकर बादल । छप-छप कर के लुत्फ़ उठाएं कागज की नाव चला कर हर्षें चाय की चुस्की गरम पकौड़ी खायें खूब झूम घटा ग़र बरसे । किस विरह में डूबी कारी घटा क्यूं न रिमझिम फुहार बरसाए छोड़ दे रूठना बरस झमाझम नथुनों में सोंधी ख़ुश्बू भर जाए । शुभग--सुन्दर शैल सिंह