रविवार, 7 फ़रवरी 2016

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है                                                                                                                                                                                                


        
जिस मांग का सिन्दूर उजड़ गया बिखर गया संसार
जिस घर का इकलौता दीप बुझा कोख़ रही चीत्कार ,

चटक गई जिस संबल की लाठी  नाव अभी मँझधार
जिस बहन की रूठी राखी दृष्टि बहाती अविरल धार ,

सुनो गौर से देशप्रेमियों,बारी तेरी,देना ये क़र्ज़ उतार
रक़्त का कतरा-कतरा कर देना शहादत पर न्योछार ,

राख चिता की बुझ ना पाये दुधारी धार धारो तलवार
सुलग रही सीने में आग मचा दो घमासान हाहाकार ,

आग चिता की बुझी अगर सब जोश धरा रह जायेगा
ग़र नीर नयन के सूख गए ठंडा आक्रोश पड़ जायेगा ,

इसी राख की मल भभूत अंग समर सम्राट उतरना है
कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है ,

घिनौने मनसूबे कर तबाह बैरी को देना असह लताड़
इन चाण्डाल दुश्मनों को जड़ से देना है फ़ेंक उखाड़ ,

हम हैं अहिंसा के पुजारी,शान्ति के द्योतक देते सन्देश
तुम भिखारी मत निपटाओ भूख,बेकारी,करो कलेश ,

कौन सी भट्ठी रोज उगलती ऐसे आतंकी गुण्डे मवाली
कर दिया चैन हराम हमारा क्या दें ऐसी माँ को गाली ।

                                                      शैल सिंह



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