कितने मौका परस्त तुम
वफ़ा को मेरी बेवफ़ाई का सौग़ात मिला ,
मेरी शाइस्तगी का बेजां इस्तेमाल हुआ
ख़ाकसार होना क्या गुनाह बदहाल हुआ ,
शिद्दत से ऐतबार करना ही ज़ुर्म था मेरा
पुरदर्द,पुरसोज से सम्मान ग़र्क़ हुआ मेरा ,
ऐसी बशारत दे बिस्मिल किया क्यों दोस्त
वाक़िफ़ बरगस्तगी से बुरहान मत दे दोस्त ,
इस बदअहदी का ख़ुदा ही जवाब दे अच्छा
तेरी बदनीयत पर रग़म रहना मेरा अच्छा ,
अर्से की भली दोस्ती का मख़ौल खुद उड़ाया
बाज़ीच मेरा दिल क्या तोड़ जश्न जो मनाया ,
क्या कहेगी दुनिया ऐ खुदगर्ज़ ये भी ना जाना
हम भी होंगे ख़ुश इक़बाल आकर देख जाना ,
ख़यानत तुझे मुबारक़ मेरी सादगी ही देखी
कितने मौका परस्त तुम ये वानगी भी देखी ।
शाइस्तगी--शिष्टता,सभ्यता
ख़ाकसार--विनीत,विनम्र बुरहान--युक्ति ,सफाई
पुरदर्द--दर्द से भरा हुआ बदअहदी--वादा खिलाफी
पुरसोज--जलन और तपन रग़म--घृणा ,नफ़रत
बिस्मिल--आहत बाज़ीच--खिलौना
बशारत--प्रसन्नता ख़यानत--विश्वासघात
बरगस्तगी--विमुखता ख़ुश इक़बाल--सौभाग्यशाली
शैल सिंह
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