ठंडी के मौसम पर कविता
“ ठंडी के मौसम पर कविता “ सर्दी तूं बड़ी बेदर्दी है लगती बर्फ़ से भी तूं ठंडी है धुंध में लिपटे सूर्य देवता नहीं किसी से हमदर्दी है , कुहासों से टपकतीं बूँदें दिखतीं रूई के फाहों सी काँपते बूढ़े, बच्चे,जवान ठिठुरन टीसती घावों सी , मुँह उगले सिगार सा धुँआ देगी कब गर्मी दस्तक पल-पल कॉफी,चाय के गरम चुस्कियों की तलब , रोज़ नहाना बड़ा अखरता याद आ जाता बचपन ठंडी के मौसम में होता सूरज का भी दुर्लभ दर्शन , मख़मली हवा भी नहीं सुहाती चुभती तीरों जैसी किट-किट बजते दाँत काम करे ना मफ़लर,जर्सी , कुहरे का धारे अंगरखा फ़िज़ा ठंड से है अनबूझ शीत लहर का भी प्रकोप उस पर बारिश की बूँद , ढल जाती साँझ भी जल्द होती लम्बी-लम्बी रात पक्षी भी दुबक जाते नीड़ में देती ऐसी सर्दी मात , लस्सी,शरबत,आइसक्रीम,दही लिए तरसता मन खाँसी,जुकाम से सभी बेज़ार उसपे कोरोना बम , अलाव तापती मजलिसें याद आता अपना गाँव छिम्मी छिलती आजी,काकी आँगना वाला ठाँव , नये भात के साथ निमोना घुघनी औ रस कच्चा बैठकर खाना गुनगुनी धूप में रेवड़ा,चिउड़ा,गट्टा , कहाँ गया वो दौर सुहाना जहाँ थीं ख़ुशियाँ हर्ष ...