हे मेरे अन्तर्यामी प्रभो
जीवन के सूने स्वप्न सदन में
सृष्टि की समरसता भर दो
उद्भ्रान्त पथिक के विवर मन में
शाश्वत जीवन का रंग भर दो ,
लगता मेरा दुःख सबका दुःख है
सबका दुःख मेरा अपना दुःख है
तभी तो राग एक है रंग अनेक
और भाव एक है बस अंग अनेक ,
हम सब जलती आग के ईंधन हैं
मरना सबको इक दिन सत्य यही
क्षणिक मिलन के मोद में भूलें ना
मिलने औ बिछड़ने के तथ्य कहीं ,
दृढ़ प्रतिज्ञ हों तन-मन से यदि
तो नहीं असम्भव होता कुछ भी
जितनी विकट हो राह लक्ष्य की
हो जाती सुगम पथ कंटकमय भी ,
कभी लक्ष्य नहीं देखता
धुप,ताप,छाँह,बिजलियाँ
पग चल पड़ते हैं बेपरवाह
दिशा की खोज में अन्जान
चाहे लाख काँटों भरी हों
जीवन की हर पगडंडियाँ ।
शैल सिंह
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