संदेश

जून 25, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कविता एक शहीद की पत्नी की दारून व्यथा

एक शहीद की पत्नी की दारून व्यथा डाल ओहार ताबूत तिरंगे की अर्थी आई पिया की मैं सन्न रह गई जन सैलाब का उमड़ा हुज़ूम दर देख शव संग पिया की मैं सन्न रह गई , ख़त का मजमून पूरा पढ़ा भी न था शहादत की खबर यूँ बता दी गई थे जिनके लिए बेसबर दो नयन झट चंन्दन की चिता सजा दी गईं , राह तकती महावर लगी एड़ियां सुर्ख हीना हथेली रची रह गई गजरे की लड़ियों गूंथीं वेणियां सेज फूलों सजी की सजी रह गई , तोड़ बिखरा गईं कांच की चूड़ियां झट माथे की बिंदिया मिटा दी गई मेरे सिंगार के सारे असवाब भी धू-धू करती चिता में जला दी गईं , श्वेत वस्त्रों का अभरण पेन्हाया गया स्वर्णाभूषण वदन से हटा दी गईं चाँद से मुखड़े पर थी भरी माँग जो टार घूँघट झट लाली उठा दी गईं , टूटा कैसा क़हर मुझपे हा जिन्दगी ज़िन्दगी भर को बिधवा बना दी गई ओढ़ जाऊँ कहाँ लिबास वैधव्य का शोक संग जब सगाई करा दी गई । मिली कैसी सजा मेरे जाबांज़ को जवां ज़िन्दगी वतन पर लूटा दी गई देशभक्त सीमा प्रहरी की ये दुर्दशा मेरी हसीं देखो दुनिया मिटा दी गई , एक क़तरा गिरा देश की आँख से दो बूँद श्रद्धांजलि की बस चढ़ा दी गईं लुटा संसार मेरा सदा के ल...