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अप्रैल 16, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दो पाट हैं इक नदी के हम

दो पाट हैं इक नदी के हम जगे तो भी आँखों में सोये तो भी आँखों में जर्रे-जर्रे में महफ़िल के    तन्हाई की पनाहों में ,        हँसी के फुहारों में        रोये तो भी आहों में  चलूँ तो परछाई बन      संग-संग साथ सायों में ,    नजर फेरूं जिधर भी हर पल साथ रहते हो मुझे तुम छोड़ दो तन्हा क्यूँ वार्तालाप करते हो , मत आ आकर घिरो  नयन की घटाओं में  छुप-छुप कर ना बैठो उर के बिहड़ सरायों में , खटकाओ ना सांकल मौन की ना दो शान्ति पर दस्तक  बना लूंगी आशियाँ अपना यादों के उजड़े दयारों में , जो गुजरी है वो काफी है अब ना कोई सौग़ात बाकी है दो पाट हैं हम इक नदी के  बस मुसाफिर हैं कगारों में दर्द से तड़प से मोह हमें अब तो हो गई है बेइंतहा ज़िन्दगी के शेष पन्नों को उड़ाना है मुझे बहारों में । शैल सिंह

पिरो दी हूँ एहसास दिल का अल्फ़ाज़ों में

हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए । ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा तुझे दिल में नज़र में अपने बसा लूँगी मैं माँगकर तुझको मन्नत में हमदम ख़ुदा से नाम की तेरे मेंहदी हथेली में रचा लूँगी मैं । सजाऊँ दिल में अक़्स ग़ैर का आसां नहीं गिरफ़्तार इस क़दर हूँ तेरी मोहब्बत में मैं ऐसे गुजरा करो ना यूँ कतराकर बग़ल से  समझती ख़ुद को रईस तेरी सोहबत में मैं । लगे बिन तुम्हारे जहाँ में कोई अपना नहीं  रहे हाथों में तेरे हाथ मेरा,बस सपना यही डूब मर जाना क़ुबूल तेरे ईश्क़ की नदी में  मगर तुझसे बिछड़ कर जीना तमन्ना नहीं । जरा दे दो तसल्ली तुम अपना बनाने की नामंजूर तेरे आगे सारी ख़ुशियाँ जहाँ की पिरो दी हूँ दिल का एहसास अल्फ़ाज़ों में करो दिल पे हुकूमत तुम मैं मना कहाँ की । अब तक हैं फ़ासले क्यों तेरे मेरे दरमियाँ  क्या मुझमें कमी है कैसी मुझमें ख़ामियाँ दिल के दर्पण में नक़्श तेरा जो संवारी हूँ उसके आगे लगे मुझे फीकी सारी दुनिया । सर्वाधिकार सुरक्षित  शैल सिंह