पुलवामा काण्ड पर लिखी पुरानी कविता
मौजूदा हालात पर सर बांध तिरंगा सेहरा माँ कर दुधारी तलवार थमा फौलादी बाँहें मचल रहीं उबल रहा जिस्म में लहू जमा । माथे तिलक लगा विदा कर प्रण है रण में जाना मुझको बैरी दुश्मन का शीश काट चरणों में तेरे चढ़ाना मुझको । चीत्कार रहा है सिहर कलेजा पिता,पति,पुत्र खोया है वतन घोंपा है कायरों ने पीठ में छुरा शांति,वार्ता के सब व्यर्थ जतन । बूंद-बूंद कतरे-कतरे का देखना लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का खौल रहा है घावों का गर्म लहू करूंगा घातक वार हथौड़ों का। शैल सिंह