मौजूदा हालात पर
सर बांध तिरंगा सेहरा माँ
कर दुधारी तलवार थमा
फौलादी बाँहें मचल रहीं
उबल रहा जिस्म में लहू जमा ।
माथे तिलक लगा विदा कर
प्रण है रण में जाना मुझको
बैरी दुश्मन का शीश काट
चरणों में तेरे चढ़ाना मुझको ।
चीत्कार रहा है सिहर कलेजा
पिता,पति,पुत्र खोया है वतन
घोंपा है कायरों ने पीठ में छुरा
शांति,वार्ता के सब व्यर्थ जतन ।
बूंद-बूंद कतरे-कतरे का देखना
लूंगा हिसाब जाहिल भौंड़ों का
खौल रहा है घावों का गर्म लहू
करूंगा घातक वार हथौड़ों का।
शैल सिंह