जाने क्या हश्र हो
ओ मेरी गुड्डी,तारा,मैना,राना
ना अँखियों में ख़्वाब सजाना
सात समन्दर के उस पार का
धोख़े फ़रेबी नीरस संसार का ,
सब्ज़बाग के कितने रंग दिखा
ले जायेंगे बहेलिये बहला कर
मक़सद हासिल कर देंगे छोड़
हाशिये पे बदनसीब बेहाल कर ,
बजेगी शहनाई द्वारे ढोल नगाड़े
भाड़े के टट्टू आएंगे बाराती सारे
विश्वास छलेगी छल भरी दुनिया
ठगे से मलेंगे हाथ हितैषी बिचारे ,
इतनी बेताब ना हो अरे बालाओं
विदेश की सैर लिए कर पीले हाथ
जाने क्या हश्र हो मंजिल पर तेरी
पता चलेगा ख़्वाब बिखरने के बाद ,
किससे करेंगी बयां हाले-दिल शैल
सब अवरुद्ध मार्ग जब हो जाएंगे
चमक-दमक दम घोंटू आबो-हवाएं
निगलेंगी अपने भी पराये हो जाएंगे ,
जब असलियत का होगा पर्दाफ़ाश
क्या होगा तूफानों में घिर जाने पर
निष्ठुर परदेश भी देगा दगा गुड़िया
क्या होगा सामां समूल खो जाने पर ।
शैल सिंह
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