रिमझिम सावन जो बरसे
रिमझिम सावन जो बरसे एक तो किल्लत बिजली की उसपर से हवा भी गुम हो मौसम की मार सही ना जाए कैसी बेशरम गर्मीं तुम हो , करत निहोरा मानसून का बीता गया मास आषाढ़ सावन उमस में काट रहे कब होगी नदियों में बाढ़ , पेट की अगन बुझाने को मरना खपना बदा रसोई में टपर-टपर टिप चुवे पसीना दम निकले आटा की लोई में , बड़े बुज़ुर्ग दुवारे दालान में रुख पर डाले घूँघट कनिया कोठरी भीतर अऊंस रही लेके हाथ में डोले बेनिया , डीह-डिहुआरिन पूज रहे सब टोटका करि करि मेंह बुलावे मँहगाई करे हाल बेहाल कैसे जल बिन जिनिस उगावें , जरई सुख रही क्यारी में रोपनी मूसलाधार को तरसे प्यासी धरती निष्ठुर मौसम भींगे रिमझिम सावन जो बरसे । कनिया--दुल्हन ,अऊंस--उमस शैल सिंह