रविवार, 13 जुलाई 2014

रिमझिम सावन जो बरसे

रिमझिम सावन जो बरसे 


एक तो किल्लत बिजली की
उसपर से हवा भी गुम हो
मौसम की मार सही ना जाए
कैसी बेशरम गर्मीं तुम हो ,

करत निहोरा मानसून का
बीता गया मास आषाढ़
सावन उमस में काट रहे
कब होगी नदियों में बाढ़ ,

पेट की अगन बुझाने को
मरना खपना बदा रसोई में
टपर-टपर टिप चुवे पसीना
दम निकले आटा की लोई में ,

बड़े बुज़ुर्ग दुवारे दालान में
रुख पर डाले घूँघट कनिया
कोठरी भीतर अऊंस रही 
लेके हाथ में डोले बेनिया ,

डीह-डिहुआरिन पूज रहे सब
टोटका करि करि मेंह बुलावे
मँहगाई करे हाल बेहाल
कैसे जल बिन जिनिस उगावें ,

जरई सुख रही क्यारी में
रोपनी मूसलाधार को तरसे
प्यासी धरती निष्ठुर मौसम
भींगे रिमझिम सावन जो बरसे ।

कनिया--दुल्हन ,अऊंस--उमस
     शैल सिंह



होली पर कविता

होली पर कविता ---- हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई  प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई, मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत हो...