प्रेम पर कविता '' चाँद नभ का ना बन सताओ मुझे ''
किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे हो कर वाक़िफ़ मगर हो यों बेख़बर क्या जानो मज़ा इश्क़ के नशे का दिखता सूना हृदय भी रंगों का नगर । मेरे हर जिक़्र में नाम लब पर तेरा इस तरह तुम बसे हो जाँ औ ज़िग़र संग मेरे सफर में चलो तुम अगर हसीं हो जायेगा हर कदम हमसफ़र । ग्रन्थ लिख डाले मैंने कई प्यार के पढ़कर भी अगर देख लेते भर नज़र करते मंथन अगर वेदना सिंधु का नैना बह जाते तेरे भी झर-झर निर्झर । बीती रातें कई मेरी करवटें बदल नर्म बिछौने पर ना नींद आई रात भर पीर का हिस्सा बन विरह में पगी मैं बरसात में भी जलती रही उम्र भर । पतझड़ सा जीवन चमन हो गया बहारें आईं गईं कितनी रहीं बेअसर चाँद नभ का ना बन सताओ मुझे चाहत आओ न नैनों के आँगन उतर । मैंने माना कि मौन प्रेम मेरा रहा निठुर तेरी भी रही प्रीत ऐ मीत मगर कृष्ण के मीरा सी मैं दीवानी बन हुई लहरों से टकराती नैया सी जर्ज़र । किस क़दर डूबी हूँ प्यार में मैं तेरे हो कर वाकिफ़ मगर हो यों बेख़बर........