दुष्कर्म जैसे वारदात और नाबालिगों को शह देती व्यवस्था पर
ऐसे अपराधियों की सजा पर बिना मतलब बार-बार बहस क्यों छिड़ती है।कम उम्र का बच्चा अपना पौरुष बल दिखलाकर एक किशोरी का ,अपने से बड़ी उम्र की महिला का अस्मत तार-तार करने में सक्षम होता है ,
उस समय तो अपनी उम्र से बड़ा हो जाता है फिर इतने जघन्य अपराध के लिए सजा के वक्त नाबालिग क्यों करार दिया जाता है और सभी लोग मनोवैज्ञानिक क्यों बन जाते हैं ,इसी लिए बार-बार ऐसी घटनाएँ दुहराई जाती हैं ,इसका निदान तभी सम्भव है जब बालिग ,नाबालिग का मोहरा ना इस्तेमाल कर अपराध के बदले कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित की जाये।
दिल्ली और मुंबई के रेप कांड पर
कलुषित हो रही संस्कृति मानवता का ह्रास होतासुरभित उपवन है आज समरसता का सार खोता
चमन से मद में सौरभ,नीला अम्बर बहक गया है
हर सुमन,कली-कली जंगल-जंगल दहक गया है।
विद्रूप हो गया है समाज का मन फटिक सा दर्पण
हृदय पात्र क्यूँ है रीता करो न अधर पे हँसी अर्पण
जहाँ विचरते आज़ाद पंछी वहाँ कोलाहल चीत्कारें
जहाँ जीवन की प्रत्यूषायें वहाँ बरसें हलाहल अंगारें।
मस्तिष्क की शिराओं में वासना का वास भरता
मन के मचानों पर उन्मत्त राक्षस निवास करता
क्यों सोच का फ़लक इतना शापग्रस्त हो गया है
व्यभिचार की मण्डियों में ओछा सहवास करता।
कहाँ वो संदल सा सुवास कहाँ खोया मधुर बंधन
हर कोण को कलंकित करता सदी का परिवर्तन
क्या हैं रिश्तों की परिधियाँ आज हो रहा उल्लंघन
मस्तिष्क की शिराओं में वासना का वास भरता
मन के मचानों पर उन्मत्त राक्षस निवास करता
क्यों सोच का फ़लक इतना शापग्रस्त हो गया है
व्यभिचार की मण्डियों में ओछा सहवास करता।
कहाँ वो संदल सा सुवास कहाँ खोया मधुर बंधन
हर कोण को कलंकित करता सदी का परिवर्तन
क्या हैं रिश्तों की परिधियाँ आज हो रहा उल्लंघन
कपटी विकृतियों का दंगल कर रहा अभिनन्दन।
आशनाईयाँ कैसी माँ-बहन-बेटियों की आबरू से
कंचन शुचिता सिसकती रूबरू हो हैवानियत से
आशनाईयाँ कैसी माँ-बहन-बेटियों की आबरू से
कंचन शुचिता सिसकती रूबरू हो हैवानियत से
दुर्भिक्ष हो रहीं भावनाएं दुर्भावना के नदी में बहके
आत्मावलोकना ना करके मन का तट तोड़ बहते।
नाबालिगों को शह देती लचर कानून की व्यवस्था
क्यों कुकृत्य करते वख़त आड़े आती नहीं अवस्था
सख़्त सज़ा जघन्य अपराध की मिले दुष्कर्मियों को
बहसों के दरम्यान मत भटकाईये असली मुद्दों को।
अभद्रता की सीमाएं लांघते नाबालिग सयाने बनके
अस्मिता को रौंदते जो सोलहवें वर्ष का घड़ा भरके
नाबालिग करार देकर सजा का प्रावधान ग़र घटेगा
ऐसी दरिन्दगी का हिसाब समाज स्वयं ही कर लेगा
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें